शीर्ष अदालत की चिंता नगरपालिका और नगर परिषद चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की संवैधानिक योजना को लागू करने के लिए कदम उठाने में नागालैंड सरकार की विफलता को लेकर थी। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से अपना हाथ नहीं झाड़ सकती, खासकर तब जब राज्य में राजनीतिक व्यवस्था केंद्र के अनुरूप हो।
“मैं आपको इस मामले से हाथ झाड़ने नहीं दूंगा। आप अन्य राज्य सरकारों के खिलाफ अतिवादी रुख अपनाते हैं जो आपके प्रति उत्तरदायी नहीं हैं, लेकिन आपकी अपनी राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन कर रही है और आप कुछ नहीं कहना चाहते हैं, ” न्यायमूर्ति कौल ने कहा।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर हिंसा के मामले में उतनी ही तत्परता दिखाने से इनकार कर दिया। 6 मई तक, कानून और व्यवस्था मशीनरी की पूरी विफलता के मद्देनजर लाखों नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की मांग करते हुए अदालत के समक्ष कई जनहित याचिकाएँ लायी गयी थीं। सरकार की ओर से दिये गये आश्वासनों से संतुष्ट होकर, अदालत ने निर्णायक रूप से कार्य करने में संकोच किया। समय पर की गई कार्रवाई से कई लोगों की जानें बचायी जा सकती थी और स्थिति को उस भयावह मोड़ से रोका जा सकता था जो तब से अब तक सामने आया है।
अदालत ने अब स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया है, लेकिन पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है। शीर्ष अदालत ने मणिपुर की स्थिति को बहुत गंभीरता से लिया है और निष्कर्ष निकाला है कि पिछले दो महीनों से राज्य में संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गयी है। मामले की सुनवाई कर रही पीठ का नेतृत्व कर रहे मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एफआईआर दर्ज होने और बयान दर्ज होने में देरी हुई है।
अदालत ने सोमवार को अगली सुनवाई के दौरान मणिपुर के पुलिस महानिदेशक की व्यक्तिगत उपस्थिति की भी मांग की है। इसमें कोई शक नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का रुख निर्णायक है, लेकिन यह थोड़ा देर से आया है। इस संबंध में, समय पर हस्तक्षेप करने में शीर्ष अदालत की ओर से निरंतरता की एक निश्चित कमी है।
राष्ट्रीय लॉकडाउन के मद्देनजर बड़े पैमाने पर रिवर्स माइग्रेशन के मामले में भी काफी दुविधाएं थीं, जब अदालत शुरू में सरकार की दलीलों को स्वीकार करने से संतुष्ट थी, लेकिन अंतत: उसने कदम उठाया और झिझक रही सरकार को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया और यह अदालत का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप था। जिससे स्थिति ठीक हो गयी। यही हाल कोविड टीकाकरण का भी था, जिसमें सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारियों से बचना चाहा।
मोदी सरकार इसी तरह मणिपुर मुद्दे पर भी टाल-मटोल कर रही है और राजनीतिक लाभ के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने से इनकार कर रही है, लेकिन इस प्रक्रिया में सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में बड़ी क्षति हो रही है। 'जघन्य' अपराधों के बारे में चिंतित होने का दिखावा करते हुए भी, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से छह महीने की समय अवधि के भीतर सभी मामलों की सुनवाई पूरी करने का आदेश देने को कहा था।
यह बहुत संतोष की बात है कि अदालत ने सरकार के झांसे में आने से इनकार कर दिया है। दरअसल, मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र और मणिपुर सरकार को अल्टीमेटम दिया था कि या तो अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की जाये या फिर न्यायपालिका को कार्रवाई करने के लिए अलग कर दिया जाये। बलात्कार और नग्न परेड की पीड़ितों ने केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की थी। वे इस जघन्य अपराध की जांच के लिए सीबीआई जांच के बजाय एक स्वतंत्र विशेष जांच दल चाहते थे।
महिलाओं की याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने सीबीआई को पीड़िताओं के बयान लेने से रोक दिया। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि महिलाओं के यौन उत्पीड़न और परेड तथा अपराध के वायरल वीडियो में मणिपुर पुलिस और भीड़ के बीच 'सहयोग' रहा है। आरोप है कि पुलिस ने महिलाओं को भीड़ से दूर ले जाने के बजाय उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया, जो कानून-व्यवस्था के पूरी तरह से खराब होने का संकेत है। (संवाद)
मणिपुर की स्थिति बिगड़ने के दोष से सर्वोच्च न्यायालय भी बच नहीं सकता
संकट के शुरुआती दौर में दायर जनहित याचिकाओं पर निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई
के रवीन्द्रन - 2023-08-03 15:15
सर्वोच्च न्यायालच ने पिछले हफ्ते गैर-भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ 'अतिवादी रुख' अपनाने तथा अन्य राज्यों में अपनी पार्टी की सरकारों द्वारा संवैधानिक उल्लंघनों के मामले में कुछ नहीं करने के लिए मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी। लेकिन जैसा कि किसी को उम्मीद थी, यह सख्ती मणिपुर के संबंध में नहीं आयी, जहां एक खास सांप्रदायिक रंग के जातीय संघर्ष में 100 से अधिक लोगों की जानें चली गयीं, बल्कि नागालैंड से संबंधित एक मुद्दे के संबंध में आयी।