कुछ आलोचक इससे भी आगे बढ़ते हैं और असम में उनके कुछ हालिया निर्णयों/कदमों में गहरे राजनीतिक उद्देश्य पढ़ते हैं। उन्हें डर है कि स्पष्ट रूप से मुसलमानों को लक्षित करने वाले उनके नवीनतम प्रस्तावों का पूर्वोत्तर के पड़ोसी राज्यों, यहां तक कि पश्चिम बंगाल पर भी, अप्रत्यक्ष रूप से, एक मजबूत प्रभाव पड़ सकता है।
इस तरह की आलोचना पर जोर देने की जरूरत है, परन्तु असम के मुख्यमंत्री जिसकी कोई परवाह नहीं करते। फिर भी उनपर कभी भी किन्हीं मामूली राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पोषित करने का आरोप नहीं लगाया गया है। उत्तर प्रदेश में अपने समकक्ष श्री आदित्यनाथ योगी के साथ, शर्मा उन मुट्ठी भर गतिशील भाजपा नेताओं में अग्रणी बनकर उभरे हैं जिनकी पहुंच और प्रभाव अब उनके मूल क्षेत्रों की सीमाओं से परे भी फैल गया है।
दोनों ही मामलों में, उनके प्रभुत्व और सफलता की कुंजी किसी भी राजनीतिक विवाद को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए, कुछ विशिष्ट कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए उनका एक अदम्य उत्साह ही रही है।
भले ही वह 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए जोरदार प्रचार कर रहे हैं और श्री गांधी के भारत जोड़ो न्याय यात्रा कार्यक्रमों को यथासंभव असुविधाजनक बना रहे हैं, असम में अपने राज्य के भीतर वह द्विविवाह/ बहुविवाह विवादों और अवैध बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए नये कानून का सक्रिय रूप से समर्थन कर रहे हैं।
असम स्थित मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि राज्य सरकार नये अधिनियम की घोषणा से पहले फरवरी के बजट सत्र में ही ऐसे मामलों पर गहन चर्चा करना चाहेगी। आधिकारिक राय यह है कि बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ जारी है। कुछ मुस्लिम पुरुषों के बीच एक से अधिक पत्नियाँ रखने की प्रथा नाबालिगों के अवैध विवाह के अलावा, पूरे समाज के लिए समस्याएँ पैदा करती है।
ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाने के प्रमुख प्रयासों के अभाव में, हाल के वर्षों में राज्य की जनसंख्या में वृद्धि हुई है। अधिक चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में कई स्थानों पर जनसांख्यिकीय संतुलन में काफी बदलाव आया है, जिससे कई समुदाय अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
राज्य के अधिकारियों ने ऐसे संवेदनशील मुद्दों से निपटने में पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाया है। ऐसे मामलों पर सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक सुनवाइयां भी आयोजित की गयी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी ही एक सभा में लगभग 150 लोगों ने आधिकारिक रुख का समर्थन किया, जबकि केवल 2-3 लोगों ने इसके खिलाफ बात की। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, एक अन्य बैठक में कोई विरोध नहीं हुआ। इन रुझानों से प्रतीत होता है कि लोगों के व्यापक वर्गों के बीच आधिकारिक लाइन के प्रति एक स्तर तक समर्थन है।
जैसी कि उम्मीद की जा सकती है, विपक्षी दल और नेता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रस्तावों को अमानवीय, सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण बताते हुए इसकी कड़ी निंदा करते हैं। उन्हें लगता है कि सिर्फ मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। उनका आरोप है कि असम में विभिन्न विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के क्षेत्रों और संरेखण को फिर से परिभाषित करने वाले हालिया परिसीमन अभ्यास में, प्रशासन के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाये गये थे कि विपक्षी दलों को नुकसान हो, और कहा जा रहा है कि 126 विधानसभा सीटों में से 100 पर ऐसी व्यवस्था की गयी है।
इसलिए, कांग्रेस और एआईयूडीएफ नेताओं (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) के अनुसार, लगातार बढ़ती आबादी के माध्यम से असम में विदेशी मुसलमानों की घुसपैठ की बड़े पैमाने पर 'कल्पित समस्या' को पहले ही आधिकारिक तौर पर संभाल लिया गया था, जैसा कि श्री शर्मा ने खुद कुछ मौकों पर खुले तौर पर स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, 'लाखों घुसपैठियों' का पता लगाने और उन्हें बाहर निकालने के लिए पिछली एनआरसी पहल, जिसे विपक्ष ने विनाशकारी कहा था, सहित बार-बार आधिकारिक पूछताछ और अभियान चलाये गये।
जैसा कि अपेक्षित था, एआईयूडीएफ की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर, साथ ही प्रशासन द्वारा संभाले गये अधिकांश अल्पसंख्यक-संबंधी मामलों पर सबसे अधिक नकारात्मक रही है। सांसद और एआईयूडीएफ सुप्रीमो श्री बदरुद्दीन अजमल कहते हैं, “असम में मुसलमान भाजपा से नहीं के बराबर मदद और सुरक्षा की उम्मीद कर सकते हैं, खासकर शर्मा के कार्यकाल के दौरान।”
निश्चित रूप से श्री शर्मा ने इसका जोरदार विरोध किया है, जो मूल असमिया भाषी मुसलमानों और बंगाली भाषी बांग्लादेशी अप्रवासी मुसलमानों (स्थानीय बोलचाल में 'मियां') के बीच स्पष्ट अंतर बनाये रखने में हमेशा सावधान रहे हैं।
पर्यवेक्षकों के अनुसार, यह मुसलमानों का दूसरा वर्ग है जो आम तौर पर राज्य प्रशासन या प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक ताकतों/ पार्टियों से कथित तौर पर कठोर व्यवहार का शिकार होता रहा है।
सुश्री सुस्मिता देव, जो हाल ही में कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हुईं, ने भी संबंधित मुद्दे पर प्रशासन के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अवैध बांग्लादेशियों को अलग-थलग करने और मताधिकार से वंचित करने के लिए हाल ही में रोक दिये गये एनआरसी अभियानों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि लगभग 20 लाख लोगों ने अपनी कुछ बुनियादी मानवीय सुविधाएं खो दी हैं।
ये वे लोग थे जिनकी नागरिकता की स्थिति एनआरसी अधिकारियों द्वारा अपरिभाषित/ संदिग्ध छोड़ दी गयी थी। भाजपा के अधीन न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार ने अपनी वर्तमान स्थिति को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से फिर से परिभाषित करने की परवाह की।
विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि अधर में लटके हुए ये जाहिरा तौर पर राज्यविहीन लोग, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं, अब कई मामलों पर आधिकारिक मदद पाने के हकदार नहीं हैं। (संवाद)
जनसंख्या नियंत्रण नीति से डरे हए हैं असम में अल्पसंख्यक
हिमंत बने हिंदुत्व एजंडे का प्रतीक, पर राज्यविहीन हुए हिंदू परेशान
आशीष विश्वास - 2024-01-23 12:00
यह बहस का विषय बना हुआ है कि असम के मुख्यमंत्री श्री हिमंत विश्व शर्मा भारत के सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री हैं या नहीं, जैसा कि शीर्ष कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी ने दावा किया है। अभी जिस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, वह है श्री शर्मा द्वारा उन नीतियों को आगे बढ़ाना जिस उनके राजनीतिक विरोधी संपूर्ण 'हिंदुत्व' एजंडा कहते हैं।