यहां तक कि देश की सर्वोच्च अदालत ने भी सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा दिन के लिए निर्धारित सूची से अडानी से संबंधित मामले को अचानक हटा दिये जाने पर चिंता व्यक्त की है। विपरीत पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा की गयी ऐसी मनमानी पर आपत्ति जतायी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार से शिकायत की जो याचिका पर सुनवायी कर रहे थे। याचिका पर सुनवायी करते हुए संजय कुमार ने कहा कि उन्हें रजिस्ट्री अधिकारियों ने बताया कि यह कार्रवाई ऊपर से मिले निर्देशों के मद्देनजर की गयी है।
पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति बोस ने फिर एक रजिस्ट्री अधिकारी को चैंबर में बुलाया और उन्हें निर्देश दिया कि मामले को अगले दिन के लिए शीर्ष आइटम के रूप में सूचीबद्ध किया जाये। ऐसे ही नाटकीय उदाहरण हैं जब महत्वपूर्ण मामलों को अचानक सूची से बाहर कर दिया गया है, जाहिर तौर पर 'ऊपरी निर्देशों के तहत'। स्पष्ट है कि इस प्रकार न्याय देने की प्रक्रिया को भी प्रभावित किया गया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एक सेवारत मुख्यमंत्री से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले की सुनवायी कथित तौर पर रजिस्ट्री लिस्टिंग में हेरफेर के माध्यम से 30 से अधिक बार स्थगित की गयी है।
'ऊपर से निर्देश' संवैधानिक संस्थानों के कामकाज में एक बेहद परेशान करने वाली घटना है और शासन और न्याय वितरण की पूरी प्रक्रिया को चुनौती देती है, खासकर जब पसंदीदा पार्टियों की बात आती है। यही बात अडानी समूह के खिलाफ आलोचना और आरोपों पर शासक प्रतिष्ठान की प्रतिक्रिया पर सवालिया निशान लगाती है। दुर्भाग्य से, यह समूह के विरुद्ध कुछ न्यायिक चुनौतियों के परिणाम पर भी लागू होता है। इस संदर्भ में, हिंडनबर्ग रिपोर्ट के निष्कर्षों के मद्देनजर अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की सेबी जांच की पर्याप्तता के खिलाफ याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले ने भी इस अर्थ में आलोचना को आकर्षित किया है जिसमें संदेह की सुई अडानी समूह के बजाय अमेरिकी संस्थान हिंडनबर्ग की ओर की गयी।
यह सामान्य ज्ञान है कि भारतीय बाजार नियामक सेबी बाजार और खुदरा निवेशकों के हितों की रक्षा करने के बजाय अडानी समूह के हितों की रक्षा के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहा है, जो नियामक का प्रमुख मिशन है। जब भी दोनों के बीच टकराव हुआ है, सेबी ने समूह का पक्ष लिया है।
जब सेबी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पता चला कि अडानी समूह द्वारा कथित स्टॉक हेरफेर की जांच करने के लिए उसे बुलाया गया था, तो नियामक ने एक बेकार रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि जांच अत्यधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है और वह बार-बार न्यायालयों में समय की छूट मांग रहा है।
उदाहरण के लिए, सेबी ने सर्वोच्च न्यायालय की सुनवायी कर रही पीठ को बताया कि उसने 12 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के 'आर्थिक हित शेयरधारकों' का विवरण एकत्र करना अभी शेष है, जो अडानी समूह की कंपनियों के सार्वजनिक शेयरधारक हैं। इसने इस तर्क के तहत आगे कहा कि इन विदेशी निवेशकों से जुड़ी कई संस्थाएं टैक्स हेवन क्षेत्राधिकार में स्थित हैं, जिससे ऐसे आर्थिक हित वाले शेयरधारकों को स्थापित करना एक चुनौती बन गया है।
सेबी इस तर्क के माध्यम से न्यायपालिका के साथ-साथ जनता दोनों की आंखों पर पट्टी बांधने में कामयाब रही है। वास्तव में, सेबी जांच की पर्याप्तता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह में सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले ने बाजार नियामक को अपनी तथाकथित 'जांच' समाप्त करने के लिए तीन महीने का एक और विस्तार दिया है।
जाने-अनजाने में, अदालत ने समूह द्वारा संदिग्ध प्रथाओं की जांच करने के बजाय मोदी सरकार से यह जांच करने के लिए कहा है कि शॉर्ट सेलिंग पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट द्वारा कानून का कोई उल्लंघन किया गया है या नहीं। हालाँकि, इस तरह के रुख से पता चलता है कि अदालत दूत को गोली मारने के दृष्टिकोण के जाल में फंस गयी है। क्या अडानी समूह ने कोई गलत काम किया है, इसकी जांच खुद मोदी सरकार से करने को कहकर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को समूह को क्लीन चिट देने का मौका दे दिया है।
सेबी को इसी तरह की क्लीन चिट, यह घोषणा करते हुए कि बाजार नियामक की ओर से कोई नियामक विफलता नहीं हुई है, ने समूह के आलोचकों को निराश किया है, जो मानते हैं कि सेबी 'ऊपर से निर्देश' के आदेश पर कवर-अप ऑपरेशन कर रहा है। ये निर्देश वास्तव में कहां से आते हैं, इसका पता लगाने के लिए किसी को रॉकेट विज्ञान में महारत हासिल करने की आवश्यकता नहीं है। फिर यही बात भारत के अग्रणी समूह के प्रभाव को और अधिक चिंताजनक बनाती है। (संवाद)
मोदी सरकार पर अडानी समूह के दबदबे का कोई अन्त नहीं
'ऊपर से दिए गए निर्देश' पर न्यायिक प्रक्रिया भी तोड़ी गयी
के रवीन्द्रन - 2024-01-25 12:27
मोदी सरकार पर अडानी समूह की पकड़ की सीमा का एक और प्रदर्शन हुआ है जो संभवतः अडानी विरोधियों के विश्वास को भी हिला देगा, जो पहले से ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा माने जाने वाले विवादास्पद समूह द्वारा अपने लाभ के लिए किये और नहीं किये जाने वाले विवादस्पद कृत्यों के कारण हताशा में हैं।