जब से श्रीमती सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य के आधार पर लोक सभा के स्थान पर अपेक्षाकृत कम परेशानी वाले राज्यसभा चुनाव में भाग लेकर उच्च सदन में जाने का फैसला किया, तभी से उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के राजनीतिक हलकों और मीडिया में इस बात पर बहस हो रही थी कि क्या राहुल या प्रियंका रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। केरल में अपने निर्वाचन क्षेत्र वायनाड के लिए मतदान के बाद राहुल गांधी ने सबको चौंका दिया कि वह रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे और गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे केएल शर्मा अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से मुकाबला करेंगे, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल को हार मिली थी।

कांग्रेस पार्टी ने रायबरेली और अमेठी में चुनाव को गंभीरता से लेते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को रायबरेली और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अमेठी में चुनाव अभियान का नेतृत्व करने के लिए तैनात किया है। इन घटनाक्रमों से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और भाजपा मुश्किल में फंसती दिख रही है क्योंकि अब भाजपा के लिए यह सुरक्षित लड़ाई नहीं रह गयी है जैसा कि भाजपा नेताओं ने पहले सोचा था।

40 वर्षों से अधिक समय तक निर्वाचन क्षेत्र में रहने का अनुभव अमेठी में कांग्रेस पार्टी के केएल शर्मा के पक्ष में जाता है। प्रियंका गांधी ने भी दोनों लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव को काफी गंभीरता से लिया है। वह गांव-गांव तक पहुंचने के लिए अपनी टीम के साथ डेरा डाले हुए हैं। स्मृति ईरानी से अमेठी वापस लेने के लिए प्रियंका अपने प्रचार के तरीके से खूब मेहनत कर रही हैं।

रायबरेली में स्थानीय लोगों को गांधी परिवार के साथ पुराने संबंधों की याद आती है जब इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी यहां से निर्वाचित हुए थे। तब से इंदिरा गांधी, श्रीमती शीला कौल, और श्रीमती सोनिया गांधी रायबरेली से निर्वाचित होती रहीं। राजीव गांधी के बेहद करीबी कैप्टन सतीश शर्मा भी रायबरेली से चुने गये थे।

प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मौजूदा सांसद और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की जीत को लेकर हर कोई आश्वस्त है। एकमात्र सवाल मार्जिन को लेकर है। भाजपा और राजनाथ सिंह के समर्थकों ने जीत के अंतर का लक्ष्य करीब पांच लाख वोटों का रखा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजनाथ सिंह के परिवार के सदस्यों और स्थानीय भाजपा नेताओं ने संघ परिवार के अन्य अग्रणी संगठनों की मदद से मतदाताओं से मिलने का सराहनीय काम किया। समाजवादी पार्टी (सपा) ने राजनाथ सिंह को चुनौती देने के लिए मौजूदा विधायक रवि दास मेहरोत्रा को मैदान में उतारा है।

1991 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी की भाजपा की इस सीट पर वापसी के बाद से लखनऊ हमेशा से भाजपा के लिए सुरक्षित सीट रही है। वाजपेयी के बाद, उनके करीबी सहयोगी लालजी टंडन भी 2009 में निर्वाचित हुए थे।

लखनऊ के पुराने लोगों को अभी भी 1967 का लोकसभा चुनाव याद है जब कॉफी हाउस में बैठे पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने शीर्ष उद्योगपति और कांग्रेस उम्मीदवार वीआर मोहन के खिलाफ न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था।

न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला जो कि एक महान उर्दू विद्वान थे, आम आदमी की आवाज बने और उन्होंने वीआर मोहन को हराया। इतना ही नहीं बॉलीवुड अभिनेता बलराज साहनी जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला के लिए प्रचार करने लखनऊ आये थे। (संवाद)