लखनऊ- आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी राहुल गांधी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अस्ल बीमारी समझ चुके है। यह अंदाजा उन्ही की बातों से पिछले दिनो लखनऊ में उस वक्त लगा जब वह मीडिया से मुखातिब हुए। पार्टी का मर्ज जानकर उन्होंने यह तो जाहिर कर दिया कि वह एक सियासी डाक्टर बन चुके है, लेंकिन अस्ल सवाल यह है कि क्या वह इतने माहिर डाक्टर है कि मुर्दा हो चुकी अपनी पार्टी में फिर से जान डाल सके। उन्होंने साफ कहा कि उनकी पार्टी तंजीम (संगठन) उत्तर प्रदेश में बहुत कमजोर है। उनकी पार्टी की जो अस्ल बीमारी है उस पर उन्होंने ज्यादा जोर नही दिया। वह है ग्रुपबाजी और बेअसर व बेजमीन लोगों का पार्टी पर कब्जा। पार्टी में ग्रुपबाजी को सबसे ज्यादा तरजीह तो सलमान खुर्शीद ने ही अपने दौर में दी। नतीजा यह कि जब तक सलमान खुर्शीद पार्टी के रियासती सदर रहे। यह पार्टी सिर्फ तीन लोगों की होकर रह गई थी। इन तीन लोगों में सलमान खुर्शीद, सत्यदेव त्रिपाठी और आबिद हुसैन थे। चौथे विजिटिंग खजान्ची थे राजेश पति (आबू) त्रिपाठी लेकिन वह कभी कभी पार्टी दफ्तर आते थे। तीन लोगों की सलमान एण्ड कम्पनी के अलावा पार्टी दफ्तर में बाकी कोई लीडर झांकता तक नही था। अब सलमान की जगह पर रीता बहुगुणा जोशी है, लेकिन ग्रुपबाजी का असर अब भी कायम है। पार्टी में ग्रुपबाजी का नंगा सच बारह नवम्बर को उस वक्त पार्टी दफ्तर के सामने दिखा। जब अन्दर जाने के लिए अस्सी बरस की बुजुर्ग लीडर हामिदा हबीबुल्लाह और स्वरूप कुमारी बख्शी से अट्ठारह बरस के एनएसयू आई लीडरान तक पुलिस और सिक्योरिटी वालों से जूझते दिखे। क्योंकि जिन लोगों ने अन्दर जाने के पास जारी कराए थे उन लोगों ने अपने ही ग्रुप के लोगों के लिए पास बनवा लिए थे। पार्टी दफ्तर के गेट के बाहर पुलिस वालों के साथ द्दक्का मुक्की कर रहे यूथ कांग्रेस के लोगों के सब्र का पैमाना छलका तो उन्होंने अपने ही लीडरों के खिलाफ जमकर नारेबाजी शुरू कर दी।मीडिया से मुखातिब हुए तो राहुल गांद्दी बोले कि उन्हें वोट बैंक नही अवाम में कांग्रेस की पैठ बनानी है। वह शायद यह भूल रहे थे कि आज की कांग्रेस नेहरू और इंदिरा गांद्दी के दौर की कांगे्रस नही रही जब वोट बैंक के बजाए अवाम तक कांग्रेस की पहुंचाया जा चुका था। आज उत्तर प्रदेश और बिहार समेत आद्दे से ज्यादा मुल्क की सच्चाई और हकीकत यह है कि इलाकाई पार्टियों ने आम लोगों को द्दर्म जात-पात और बिरादरी व तबकों में तकसीम कर दिया है। ऐसी सूरतेहाल में अवाम तो कहीं बचे नही सबके सब वोट बैंक बन चुके है। अब अगर राहुल को वोट बैंक नही चाहिए तो अवाम में भी उनकी पार्टी के लिए कोई जगह नही बन सकेगी।उन्होंने कोई चार घंटे तक को आर्डीनेशन कमेटी की मीटिंग में कमेटी मेम्बरान के साथ बातचीत की, कहने को तो कई अहम मुद्दा पर तबादले ख्याल हुआ लेकिन इतनी देर तक सर खपाने के बावजूद पार्टी कोई ठोस फैसला नही कर सकी। बस एक ही फैसला हुआ कि कोआर्डीनेशन कमेटी की मीटिंगे अब डिवीजनल सतह पर भी होगी। कानपुर में दो दिन की मीटिंग बुलाई जाएगी। आखिरी दिन एक रैली होगी जिसे पार्टी की आल इंडिया सदर सोनिया गांद्दी खिताब करेंगी। कहने को राहुल गांद्दी कई बार कह चुके है कि उनकी पहली तरजीह यूथ को पार्टी के साथ जोड़ने की है। यूथ को पार्टी के साथ जोड़ने का उत्तर प्रदेश में एक बेहतरीन मौका भी है। वह यह कि मायावती हुकूमत ने कालेजों और यूनिवर्सिटीज की तलबा यूनियनों के एलक्शन रूकवा रखे है। अमेठी दौरे के वक्त राहुल गांद्दी ने सरकार के इस कदम को गलत करार दिया था तो यूथ ने उनके बयान का खैरमकदम भी किया था। अगर इसी मुद्दे पर राहुल एक दो बार सड़कों पर निकल पड़ते तो शायद उत्तर प्रदेश में यूथ और तलबा का एक बड़ा तबका उनके पीछे दौड़ता दिखता। वह सड़कों पर निकल भी नही सकते, शायद उनकी सिक्योरिटी में तैनात एस.पी.जी उन्हें इसकी इजाजत नही दे रही है। अब अगर कोई लीडर यूथ की कयादत में सड़क पर खड़ा नही हो सकता तो यूथ तबका उसके पीछे खड़े होने के लिए कैसे तैयार हो सकता है।कोआर्डिनेशन कमेटी में राहुल के साथ घंटों बैठकर कांग्रेस को मजबूत करने के मश्विरे देने वालों में तीन चौथाई मेम्बरान ऐसे है जिनके साथ सौ वोट भी नही है, लेकिन यहां भी ग्रुपबाजी चली और जो इस किस्म के कांग्रेसी हैं, जिनकी समाज और अवाम में कुछ पकड़ हो उन्हें कोआर्डीनेशन कमेटी में शामिल ही नही किया गया। चूंकि ज्यादा लोग बेअसर और सियासी एतबार से बिल्कुल बेजमीन लोग है इसलिए उन सभी ने मश्विरे भी ऐसे ही दिए होंगे कि पार्टी और राहुल गांद्दी कुछ भी करे उनकी सेहत पर कोई खास फर्क न पड़ सके । इस मीटिंग के बाद पार्टी ने यह इशारा तो दिया कि वह किसी भी दूसरी पार्टी खुसूसन मायावती के बहुजन समाज पार्टी का दुमछल्ला बन कर नही रहेगी, लेकिन पार्टी वाजेह तौर पर ऐसा कोई प्रोग्राम भी तय नही कर सकी जिसके जरिए किसी अहम अवामी मुद्दे पर मायावती सरकार को घेरा जा सके या सरकार के खिलाफ कोई आन्दोलन खड़ा किया जा सके।इस वक्त उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड में खुश्कसाली (सूखा) और भुकमरी, तो बाकी पूरे प्रदेश में शकर मिलों के वक्त पर न चलने से काश्तकारों के सामने खड़ी सख्त मुश्किलात और तलबा यूनियनों के इंतखाबात पर पांबदी यही ऐसे मुद्दे है जिनको उठाने और जिनके लिए आन्दोलन चलाने वाली कोई भी पार्टी अवाम में अपने लिए एक अच्छा मकाम हासिल कर सकती है। राहुल गांद्दी की कोआर्डीनेशन कमेटी की मीटिंग में शिरकत के बावजूद यह फैसला नही हो पाया कि गन्ना काश्तकारों, बुंदेलखण्ड में भूक और सूखे से परेशान लोगों और यूनियनों एलक्शनों के लिए बेचैन तलबा के मामलात पर पार्टी का क्या रूख रहेगा?कोआर्डीनेशन कमेटी की मीटिंग में राहुल गांद्दी ने एक बात तय करा दी कि जिन जिला और शहर सदरों को पिछले एलक्शन में टिकट दिए गए और वह पांच हजार वोट भी न पा सके उन्हें हटा दिया जाएगा। अगर इसी फैसले पर सख्ती से अमल हो जाए और यह भी देखा जाए कि कोआर्डीनेशन कमेटी में शामिल लोग पिछले सत्रह-अट्ठारह सालों में कितने एलक्शन लड़े है और उन्हें कितने वोट मिले हैं तो पार्टी को ठीक करने का काम ज्यादा बेहतर तरीके से हो सकेगा। यह भी पता चल जाएगा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी की तबाही की अस्ल वजह क्या है? बिजनौर जिले में सबसे ज्यादा तकरीबन चालीस-चालीस फीसद आबादी दलितों और मुसलमानों की है। बाकी बीस फीसद में ठाकुर, जाट, वैश्य और ब्राहमण है। सबसे कम आबादी तकरीबन दो फीसद ब्राहमण की ही है इसके बावजूद वहां के जिला सदर सुद्दीर पराशर (ब्राहमण) है। वह असम्बली एलक्शन लड़े थे तो तीन हजार आठ सौ बारह (३८१२) वोट उन्हें मिले थे। इसी तरह ऐटा के जिला सदर अजय चतुर्वेदी ऐटा असम्बली हल्के के उम्मीदवार थे उन्हें चार हजार नो सौ पचपन वोट मिले थे। सबसे कम वोट पाने वालों में जेपी नगर के कांग्रेस सदर संदीप भारद्वाज रहे। उन्हें मुस्लिम अक्सरियती असम्बली हल्के हसनपुर से मैदान में उतारा गया था। पार्टी के एक बड़े लीडर की जिद की वजह से ही उन्हें टिकट मिला था उन्हें सिर्फ एक हजार चार सौ पचासी वोट ही हासिल हुए थे। इसी तरह मुरादाबाद शहर कांग्रेस के सदर है असद मौलाई वह भी एलक्शन लड़े थे उन्हें मुरादाबाद शहर सीट पर सिर्फ तीन हजार नो सौ सतत्तर वोट मिले थे। मुरादाबाद शहर में भी मुसलमानों की तादाद बहुत ज्यादा है। असद मौलाई को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद वहां के मुसलमानों में शिया-सुन्नी का झगड़ा उखाड़ा गया था चूंकि असद मौलाई का ताल्लुक शिया तबके से है इसलिए सुन्नियों ने उन्हें वोट ही नही दिए।राहुल गांद्दी की मौजूदगी में बारह नवम्बर को पार्टी की कोआर्डीनेशन कमेटी की जो मीटिंग हुई उसी में पार्टी के अन्दर कैन्सर की शक्ल अख्तियार कर चुकी ग्रुपबाजी की ऐसी घिनौनी शक्ल सामने आई कि जिसकी कोई मिसाल नही मिलेगी। कल तक सबसे ज्यादा ग्रुपबाजी करने वाले सलमान खुर्शीद के लोगों ने चीख-चीख कर कहा कि मीटिंग में इस बात का ख्याल रखा गया कि सलमान खुर्शीद, प्रमोद तिवारी और मरकजी वजीर अखिलेश दास के करीबियों को अन्दर दाखिल न होने दिया जाए। सलमान ने मीडिया डिपार्टमेंट में एक लम्बी चौड़ी फौज तर्जुमान (प्रवक्ता) की शक्ल में खड़ी कर दी थी। उनमें से तीन सीमा चौद्दरी, द्विजेन्द्र त्रिपाठी और विजय सक्सेना तक को पार्टी दफ्तर के अन्दर दाखिल नही होने दिया गया। सीमा चौद्दरी ने इल्जाम लगाया कि अखिलेश प्रताप सिंह ने एस.पी.जी. से कहकर उन्हें गेट से बाहर कराया। ग्रुपबाजी की ही वजह थी कि प्रदेश में अपने दौर में ताकतवर वजीर एमपी और एमएलए रहने वालों को गेट के अन्दर भी दाखिल नही होने दिया गया। लखनऊ पच्छिम से एमएलए रह चुके मोहम्मद रफी सिद्दीकी तो पुलिस से भिडते, भिड़ते इतने बेहाल हो गए थे कि वह सड़क पर चारों खाने चित गिर पड़े।
राहुल ने पकड़ी यूपी कांग्रेस की असल बीमारी
लेकिन इलाज का सवाल
मुर्दा हो चुकी कांग्रेस क्या जिंदा भी हो सकेगी
हिसाम सिद्दीकी - 2007-11-21 12:57
आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी राहुल गांधी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की असल बीमारी समझ चुके है। यह अंदाजा उन्हीं की बातों से पिछले दिनो लखनऊ में उस वक्त लगा जब वह मीडिया से मुखातिब हुए। पार्टी का मर्ज जानकर उन्होंने यह तो जाहिर कर दिया कि वह एक सियासी डाक्टर बन चुके है, लेंकिन अस्ल सवाल यह है कि क्या वह इतने माहिर हैं।