क्या प्रश्नपत्र लीक हुए और किसके कहने पर? कई ओएमआर शीट फटी पाई गयीं जो राष्ट्रीय परीक्षण एजंसी (एनटीए) की पूरी तरह विफलता को दर्शाता है, जिसे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और दोषी व्यक्तियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए। प्रभावित अभ्यर्थियों को राहत दी जानी चाहिए। एनटीए ने अब ग्रेस मार्क्स रद्द कर दिये हैं और 1563 विद्यार्थियों के लिए दोबारा परीक्षा का आदेश दिया है। लेकिन पूरी परीक्षा दोबारा क्यों ली जानी चाहिए? तनावपूर्ण परिस्थितियों में दोबारा परीक्षा देना समान अवसर नहीं हो सकता और जिन लोगों को दोबारा परीक्षा देने के लिए कहा गया है, वे दूसरी बार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायेंगे। अगर उन्हें फिर भी दोबारा परीक्षा देनी है, तो उसका खर्च राष्ट्रीय परीक्षण एजंसी (एनटीए) को उठाना चाहिए। यह विडंबना है कि इतने दशकों के बाद भी उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में प्रवेश सुव्यवस्थित नहीं हो पाये हैं। सबके लिए शिक्षा के मूल सिद्धांत और अच्छे नागरिक तथा सहानुभूतिपूर्ण डॉक्टर तैयार करने के उद्देश्य की अवहेलना की जा रही है। शिक्षा दिये गये उद्देश्यों को पूरा करने का साधन बनने के बजाय, लाभ कमाने का साधन बन गयी है।

एक समय था जब 12वीं कक्षा में प्राप्त अंक उच्च पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए मानदंड थे। किसी के ज्ञान के आकलन के साधन के रूप में एमसीक्यू ने व्यापक स्तर पर मूल्यांकन के दायरे को सीमित कर दिया है। नीट और इस तरह की अन्य प्रवेश परीक्षाओं में बैठने वालों के लिए कई कोचिंग सेंटर खुल गये हैं। छात्रों को उनके स्कूलों की सक्रिय मिलीभगत से कोचिंग सेंटर में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कोचिंग सेंटर अत्यधिक फीस लेते हैं और कम आय वाले परिवारों के छात्र स्वतः ही बाहर हो जाते हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों का अनुपात कम हो गया है।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा शुरू की गयी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निजी मेडिकल कॉलेज अत्यधिक फीस न लें और अपनी परीक्षा न आयोजित करें। लेकिन निजी मेडिकल कॉलेजों ने अपने कॉलेजों में आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए मोप-अप काउंसलिंग आयोजित करके इस समस्या से निजात पा ली है। निजी मेडिकल कॉलेज अपने पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए मोटी रकम वसूलते हैं। निम्न और मध्यम आय वर्ग के अभ्यर्थी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

कई राज्य अब मांग कर रहे हैं कि उन्हें प्रवेश प्रक्रिया में निर्णय लेने का अधिकार दिया जाये और राज्य कोटे की सीटों के लिए नीट से छूट दी जाये। नीट केवल केंद्रीय कोटे और केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित कॉलेजों के लिए होना चाहिए। इससे शिक्षा प्रदान करने के राज्यों के अधिकारों की रक्षा होगी। यह माना जाना चाहिए कि भारत में संस्कृतियों की विविधता और विकास के विभिन्न स्तर हैं।

इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि कमजोर आर्थिक स्थिति वाले छात्रों को सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाये। निजी कॉलेजों में फीस को सीमित किया जाना चाहिए और प्रबंधन कोटे की सीटों सहित उन्हें पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। निजी कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटों के लिए सरकारी स्तर की फीस लेने के प्रावधान को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। अन्य सीटों के लिए फीस सरकार को तय करनी चाहिए। ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को प्रवेश के लिए अतिरिक्त अंक दिये जाने चाहिए। छात्र संगठनों, शिक्षक संगठनों और शिक्षाविदों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद होना चाहिए। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि शिक्षा ‘केवल लाभ के लिए’ व्यवसाय न बन जाये। सरकार को कोठारी आयोग द्वारा निर्धारित सिद्धांतों पर शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। (संवाद)