ये कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) की जगह लेंगे। देश भर के राज्यों के बार काउंसिल और बार एसोसिएशनों की ओर से कई ज्ञापन बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को भेजे गए हैं, जिसे बीसीआई ने 26 जुलाई को पारित अपने प्रस्ताव में स्वीकार किया है, जिसमें तीन नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ कड़ा विरोध व्यक्त किया गया है और जब तक इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाता या निलंबित नहीं किया जाता, तब तक अनिश्चितकालीन आंदोलन और विरोध प्रदर्शन करने की उनकी मंशा का संकेत दिया गया है, जिसमें भारत की संसद द्वारा व्यापक समीक्षा सहित गहन राष्ट्रव्यापी चर्चा शामिल है।

यह याद रखने योग्य है कि मोदी सरकार ने दिसंबर 2023 में आयोजित शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में लगभग पूरे विपक्षी सदस्यों को निलंबित कराकर लोकसभा में तीन आपराधिक कानूनों पर किसी भी सार्थक चर्चा से सफलतापूर्वक परहेज किया था। इन्हें 21 दिसंबर को पारित किया गया, सरकार ने 25 दिसंबर, 2023 को जल्दबाजी में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त की और उसी दिन अधिसूचित किया।

गृह मामलों पर विभागीय संसदीय स्थायी समिति के विपक्षी सदस्यों ने अंतिम रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज करायी थी, हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा लगभग पूरे विपक्ष को लोकसभा से निष्कासित करने की कार्रवाई के बाद मोदी सरकार ने भारत की संसद में बहुमत के बल पर इन कानूनों को पारित करवाया था। हाल ही में, विपक्ष ने इन तीनों कानूनों की संसदीय समीक्षा की मांग की है। पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजकर आग्रह किया है कि केंद्र को इन कानूनों को लागू नहीं करना चाहिए क्योंकि इन्हें अनुचित जल्दबाजी में पारित किया गया था। उन्होंने इनकी व्यापक संसदीय समीक्षा की मांग भी की। हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले केंद्र ने कहा है कि वह 1 जुलाई, 2024 से तीनों आपराधिक कानूनों को लागू करने के लिए पूरी तरह से और व्यापक रूप से तैयार है। अब तक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने मौजूदा अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (सीसीटीएनएस) एप्लिकेशन में 23 कार्यात्मक संशोधन किये हैं, जिसके तहत अब देश के हर पुलिस स्टेशन में सभी मामले दर्ज किये जाते हैं। एनसीआरबी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नयी प्रणाली लागू करने में मदद करने के लिए तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है, जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के अधिक उपयोग की परिकल्पना की गयी है, जिसके लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने तीन ऐप विकसित किए हैं - ई-सक्ष्य, न्यायश्रुति और ई-समन - जो अपराध स्थलों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी, न्यायिक सुनवाई और इलेक्ट्रॉनिक रूप से अदालती समन की डिलीवरी की सुविधा प्रदान करेंगे।

शुरू में, मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले तीन कानूनों को लागू करने की योजना बनायी थी, लेकिन इस विचार को छोड़ना पड़ा क्योंकि कानूनों ने पूरे देश में कड़ा प्रतिरोध और विरोध आकर्षित किया। अधिसूचना के एक सप्ताह बाद ही, देश भर के ट्रक ड्राइवरों ने नये आपराधिक कानूनों के कुछ प्रावधानों के खिलाफ तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल की। पूरे देश को आपूर्ति में अभूतपूर्व व्यवधान का सामना करना पड़ा, जिसने 2 जनवरी, 2024 को हड़ताल के दूसरे दिन केंद्र को यह महसूस करने के लिए मजबूर किया कि तीन नये आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन का सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान पर बड़ा राजनीतिक प्रभाव पड़ना तय है। इसने घोषणा की कि परिवहन क्षेत्रों से संबंधित प्रावधानों को तब तक लागू नहीं किया जायेगा जब तक कि आंदोलनकारी अखिल भारतीय मोटर परिवहन कांग्रेस के साथ उन पर चर्चा नहीं की जाती। केंद्र और ट्रक चालक संघ के साथ बातचीत के बाद, परिवहन कांग्रेस ने हड़ताल वापस ले ली थी, लेकिन उस हड़ताल ने यह स्पष्ट कर दिया कि तीन नये आपराधिक कानूनों का कार्यान्वयन भानुमती का पिटारा साबित होगा, जिसमें बहुत सारी बुराइयाँ हैं, जो कार्यान्वयन के दौरान सामने आयेंगी।

भारतीय बार (वकील समुदाय) को विनियमित करने और उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए भारत की संसद द्वारा बनायी गयी एक वैधानिक संस्था, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने 26 जून के अपने प्रस्ताव में, अब पूरे भारत में बार एसोसिएशनों और राज्यों की बार काउंसिलों से अनुरोध किया है कि वे नये आपराधिक कानूनों के खिलाफ इस समय किसी भी तरह के आंदोलन या विरोध से दूर रहें, लेकिन साथ में यह भी कहा है कि वह केंद्रीय गृह मंत्री और केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली केंद्र सरकार के साथ चर्चा शुरू करेगी, ताकि उनकी चिंताओं से अवगत कराया जा सके।

बीसीआई ने कानूनी बिरादरी द्वारा उठायी गयी चिंताओं पर ध्यान दिया है, जिसमें उनकी धारणा है कि इन नये आपराधिक कानूनों के कई प्रावधान जनविरोधी हैं, औपनिवेशिक काल के उन कानूनों से भी अधिक कठोर हैं जिन्हें ये नये कानून बदलने का इरादा रखते हैं, और देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। इसके अतिरिक्त, देश भर के बार एसोसिएशनों ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों की नये सिरे से जाँच करने का आह्वान किया है, क्योंकि ये कानून भारत के संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार के सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। बीसीआई ने देश के सभी बार एसोसिएशनों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से अनुरोध किया है कि वे नये आपराधिक कानूनों के विशिष्ट प्रावधानों को प्रस्तुत करें जो असंवैधानिक या हानिकारक हैं ताकि वह केंद्र के साथ एक उत्पादक बातचीत शुरू कर उनमें आवश्याक सुधार सुनिश्चित करवा सके। सुझाव प्राप्त होने पर, बीसीआई इन नये आपराधिक कानूनों में आवश्यक संशोधनों का प्रस्ताव करने के लिए जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ताओं, पूर्व न्यायाधीशों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की एक समिति गठित करने का इरादा रखता है।

बीसीआई ने बार एसोसिएशनों और राज्यों की बार काउंसिलों को आश्वासन दिया है कि उनके द्वारी उठायी गयी चिंताओं को गंभीरता से लिया जा रहा है। इस बीच, इन तीन आपराधिक कानूनों के खिलाफ 27 जून को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गयी है, जिसमें इन तीन नये कानूनों की व्यवहार्यता का आकलन करने और उनकी पहचान करने के लिए तत्काल एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए विशिष्ट निर्देश देने और उनके कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग की गयी है। पश्चिम बंगाल बार काउंसिल ने इन आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के खिलाफ 1 जुलाई का काला दिवस के रूप में विरोध करने की घोषणा की है। पश्चिम बंगाल और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के वकील विरोध में सभी न्यायिक कार्यों से विरत रहेंगे। देश भर में कई और विरोध प्रस्ताव पारित होने की संभावना है, हालांकि भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज अपने संयुक्त संसदीय संबोधन के दौरान कहा है कि ये कानून सजा के बजाय न्याय प्रदान करेंगे। (संवाद)