एलडीएफ को 2024 के लोकसभा चुनावों में केरल में कुल 20 में से में केवल एक सीट मिली। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी, एलडीएफ को केवल एक सीट ही मिली थी, लेकिन 2024 के चुनावों में, चिंताजनक बात यह थी कि एलडीएफ को वोटों का नुकसान हुआ और भाजपा ने पहली बार त्रिशूर से एक लोकसभा सीट जीती तथा जाने-माने सीपीआई उम्मीदवार को हराया। सीपीआई केरल में चार सीटों पर चुनाव लड़ी और चारों में हार गयी। सीपीआई नेतृत्व ने केरल के प्रदर्शन पर सीपीआई (एम) नेतृत्व द्वारा की गयी समीक्षाओं और सीपीआई (एम) द्वारा इस बात को स्वीकार करने पर भी ध्यान दिया कि एलडीएफ सरकार और लोगों के बीच संबंध नहीं थे।
इसके अलावा, सीपीआई (एम) नेता इस बात पर सहमत हुए कि कई निचले स्तर के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे और इसने हाल के लोकसभा चुनावों में एलडीएफ की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में चर्चा का मुख्य विषय केरल में वामपंथी छवि को कैसे सुधारा जाये, इस पर था, लेकिन यह महसूस किया गया कि एलडीएफ के प्रमुख भागीदार के रूप में माकपा को एलडीएफ सरकार की छवि को सुधारने के लिए तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे, क्योंकि 2026 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार को हटाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी। यह जरूरी है कि सभी भागीदार, खासकर भाकपा और माकपा अगले दो वर्षों में यूडीएफ और भाजपा दोनों का मुकाबला करने के लिए संयुक्त रूप से बड़ा अभियान शुरू करें।
बैठक के बाद जारी एक बयान में भाकपा ने भारत के लोगों को भाजपा को बहुमत न देकर और इंडिया ब्लॉक को मुख्य विपक्ष बनाकर संविधान बदलने की उसकी साजिश को विफल करने के लिए बधाई दी। हालांकि, अगर पार्टियों के बीच उचित सीट बंटवारा और आपसी सामंजस्य होता तो इंडिया ब्लॉक बेहतर प्रदर्शन कर सकता था।
बयान में कहा गया कि इसके बावजूद इंडिया ब्लॉक एक मजबूत ताकत के रूप में उभरा है और भविष्य में इसके मजबूत होने की उम्मीद है और भाकपा इसके लिए प्रयास करेगी। भाकपा ने आशंका जतायी कि भाजपा सरकार का आक्रामक, अलोकतांत्रिक कामकाज जारी रहेगा, जैसा कि 1 जुलाई 2024 से तीन नये आपराधिक कानूनों को लागू करने और भाजपा नेताओं के पास सभी पुराने विभागों को जारी रखने से स्पष्ट है। विपक्षी नेताओं को परेशान करने और असहमति को दबाने के लिए सभी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग जारी रहेगा और आगे भी इसमें बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, बयान में कहा गया है।
बयान के मुताबिक, चुनाव नतीजों से पता चला है कि कैसे वामपंथियों ने 543 में से केवल नौ सीटें (2 सीपीआई, 4 सीपीआई (एम), 2 सीपीआई (एमएल), तथा 1 आरएसपी) जीती हैं। सभी सदस्यों द्वारा गंभीर चिंता व्यक्त की गयी है और पार्टी और आंदोलन को मजबूत करने के कार्यों को राष्ट्रीय परिषद द्वारा अपनाया गया है।
चूंकि पार्टी 26 दिसंबर 2024 से अपने गठन के 100वें वर्ष में प्रवेश कर रही है, राष्ट्रीय परिषद् ने पार्टी और आंदोलन को फिर से सक्रिय करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों को शुरू करने का निर्णय किया है। भाकपा का मानना है कि भाजपा ने अपना एक पार्टी का शासन खो दिया है, लेकिन अधिक प्रयासों के साथ नफरत, ध्रुवीकरण नवउदारवादी नीतियों और कॉर्पोरेट एजेंडे की अपनी राजनीति जारी रखेगी। ऐसे में प्राथमिक कार्य देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे और संविधान की रक्षा में सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और वामपंथी ताकतों के बीच सहयोग को मजबूत करना होगा।
सीपीआई ने कहा कि पार्टी संसद के अंदर और बाहर भाजपा और एनडीए से मुकाबला करने के लिए इंडिया ब्लॉक का समर्थन करना जारी रखेगी। सीपीआई इंडिया ब्लॉक के साथ बनी रहेगी, जो उदार बुर्जुआ और क्षेत्रीय दलों का एक व्यापक मंच है जो भाजपा को हराने के लिए एक साथ आये हैं। एक महत्वपूर्ण कार्य कम्युनिस्ट और व्यापक वामपंथ की एकता को मजबूत करना है जिसके लिए प्रयास करना होगा। इसलिए राष्ट्रीय परिषद के बयान में कहा गया है कि अभी से महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक और संगठनात्मक तैयारी करनी होगी।
राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में अपनाये गये प्रस्ताव में सीपीआई ने मोदी सरकार के वित्त मंत्री से आगामी बजट में स्वास्थ्य बजट को जीडीपी के कम से कम 3% तक बढ़ाने का अनुरोध किया। भारत का वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय उसके जीडीपी का केवल 1.35% है, जो दुनिया में सबसे कम है। इससे एक बड़ी आबादी के लिए जेब से अधिक खर्च हो रहा है। मार्च 2022 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 17% से ज़्यादा भारतीय परिवार स्वास्थ्य पर बहुत ज़्यादा खर्च करते हैं, जिससे लोग ग़रीबी में खिसक जाते हैं। विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय को आऊट-ऑफ-पॉकेट भुगतान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो स्वास्थ्य सेवा के लिए किसी परिवार के संसाधनों के एक निश्चित प्रतिशत से अधिक होता है। रिपोर्ट का अनुमान है कि उच्च स्वास्थ्य व्यय सालाना लगभग 550 लाख भारतीयों को गरीब बनाता है।
भारत को संक्रामक रोगों के उच्च बोझ, बढ़ती गैर-संचारी रोग महामारी और अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे सहित महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चल रही महामारी ने हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कमजोरियों को और उजागर कर दिया है। भाकपा ने कहा कि 2024-25 के बजट में स्वास्थ्य बजट को जीडीपी के 3 प्रतिशत तक बढ़ाना जरूरी होगा। (संवाद)
भाकपा राष्ट्रीय परिषद ने भाजपा से अधिक मजबूती से लड़ने की रणनीति बनायी
केरल में लोकसभा चुनाव में वामपंथी वोटों के खिसकने से भाकपा नेतृत्व चिंतित
सात्यकी चक्रवर्ती - 2024-07-17 10:54
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की राष्ट्रीय परिषद ने 11 से 14 जुलाई तक नई दिल्ली में अपने तीन दिवसीय सत्र में 2024 के लोकसभा चुनावों में केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चे के प्रदर्शन पर गहन आत्ममंथन किया। पार्टी ने 2021 के राज्य विधानसभा चुनावों की तुलना में 2024 के चुनावों में एलडीएफ के वोटों में गिरावट के मूल कारणों की जांच की और उसके आधार पर दिशा-निर्देशों में सुधार करने का फैसला किया, ताकि पार्टी अपने एलडीएफ सहयोगियों के साथ 2026 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और भाजपा का सामना करने के लिए अधिक तैयार हो सके।