इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख चुनौतियां हैं- बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन और निम्न आय वर्ग के लोगों की आय में सुधार। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विभिन्न हितधारकों के साथ बजट-पूर्व परामर्श समाप्त कर लिया है और सभी बैठकों में अतिरिक्त संसाधन जुटाने का सवाल उठा। कहीं भी देश के तेजी से बढ़ते अतिधनाढ्यों को अर्थव्यवस्था में समानता बहाल करने के लिए अतिरिक्त बोझ साझा करने के लिए बाध्य करने पर कोई गंभीर बात नहीं हुई।
अतिधनाढ्यों पर कर लगाने के प्रस्ताव पर वैश्विक स्तर पर चर्चा हुई है। इस साल 18 और 19 नवंबर को ब्राजील में होने वाले अगले जी-20 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा होने क प्रस्ताव है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका दोनों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो जी-20 के पिछले अध्यक्ष थे, ने इस प्रस्ताव पर चुप्पी साध रखी है, हालांकि वह नवंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और उन्हें इस प्रस्ताव पर भारत की स्थिति के बारे में बात करनी है, जो भारतीय समाज में बहुत तेजी से फैल रही असमानता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
अतिधनाढ़्यों या अरबपतियों पर कर क्या है, जिसकी बात कांग्रेस कर रही है? मुकेश अंबानी परिवार में हाल ही में हुई शादी ने यह दिखा दिया है कि एक अतिधनाढ्य के बेटे की शादी के लिए किस हद तक धन खर्च किया जा सकता है। भारत में आतिधनाढ्य लोगों का 10 खरब डॉलर का विवाह उद्योग है। इनमें उद्योगपति, खिलाड़ी, फिल्मी हस्तियां, तथा बड़े राजनेता शामिल हैं। उनकी शादी के खर्चों की जांच की जानी चाहिए और एक सीमा से अधिक कर लगाया जाना चाहिए। एक अनुमान के अनुसार, भारत में 167 डॉलर-अरबपति हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। दो प्रतिशत कर से 1.5 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। यह राशि श्रमिक केन्द्रित परियोजनाओं में रोजगार सृजन सहित अन्य विकास कार्यक्रमों पर खर्च की जा सकती है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. प्रणब बर्धन द्वारा किये गये विश्लेषण के अनुसार, सरकार द्वारा संपन्न लोगों को दी जाने वाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी को कम करके अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न किये जा सकते हैं। भारत में, विरासत और संपत्ति कर शून्य है और संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पूंजीगत लाभ कर बहुत कम है। कर प्रणाली अभी भी अमीरों की ओर झुकी हुई है। उदाहरण के लिए, कोविड महामारी के संदर्भ में, मोदी सरकार ने एक ही झटके में कॉर्पोरेट टैक्स की दर कम कर दी और सरकारी खजाने को 18.4 खरब रुपये का नुकसान हुआ। कोविड काल में उद्योगपति और अमीर हो गये जबकि श्रमिकों और कर्मचारियों की नौकरियां चली गयीं और उन्हें भीषण गरीबी का सामना करना पड़ा। डॉ. बर्धन का अनुमान है कि 10 खरब रुपये के कोष से भारत में 200 लाख नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत सहित वैश्विक स्तर पर कंपनियों द्वारा कर चोरी पर हाल के अध्ययनों को अवश्य पढ़ा होगा। एडवोकेसी ग्रुप टैक्स जस्टिस नेटवर्क द्वारा 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर के देश टैक्स हेवन के कारण अगले दशक में कर राजस्व में $48 खरब (£38 खरब) तक का नुकसान उठा सकते हैं। इन आश्रयों को वैश्विक कंपनियों के साथ-साथ भारत के कई अमीरों द्वारा संरक्षण दिया जाता है। इस साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ कर वेधशाला की एक रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया भर के अरबपतियों पर प्रभावी कर दरें उनकी संपत्ति के 0 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत के बराबर हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि महामारी के वर्षों के दौरान, जबकि गरीब और अन्य लोग पीड़ित थे और मर गये, परन्तु बड़ी कंपनियों के मुनाफे और अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में वृद्धि हुई। वास्तव में महामारी के वर्षों में असमानता और बढ़ गयी।
भारत में अतिधनाढ्यों पर विशेष कर लगाना चिरप्रतीक्षित है। इस साल जनवरी में जारी नवीनतम ऑक्सफैम रिपोर्ट सहित सभी हालिया रिपोर्टें दिखाती हैं कि असमानता लगातार बढ़ रही है। महामारी और महामारी के बाद के वर्षों में, सामाजिक सुरक्षा के बिना गरीब लोगों को दयनीय जीवन जीने की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अमीरों की आय में वृद्धि हुई है। असमानता के बढ़ने का भारत में विशेष प्रभाव है क्योंकि आम नागरिकों को पश्चिम और लैटिन अमेरिका और अन्य विकासशील देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से संरक्षित नहीं किया जाता है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सिर्फ़ पाँच हाथों में औद्योगिक संकेन्द्रण की बढ़ती समस्या का सामना कर रहा है, और अरबपतियों, निजी इक्विटी फंडों और क्रोनी कैपिटलिस्टों को समृद्ध कर रहा है, जिससे लोगों में अभूतपूर्व स्तर की असमानताएँ और गरीबी बढ़ रही है। दलितों को निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उच्च और असहनीय आउट-ऑफ-पॉकेट शुल्क, निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में वित्तीय बहिष्कार और दोनों में ही खुलेआम भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
विश्व स्तर पर, 2020 से अब तक, सबसे अमीर पाँच लोगों ने अपनी संपत्ति दोगुनी कर ली है, लेकिन इसी अवधि के दौरान लगभग पाँच अरब लोग गरीब हो गये हैं। कठिनाई और भूख रोज़मर्रा की सच्चाई है, और मौजूदा दर पर, गरीबी को खत्म करने में 230 साल लगेंगे, लेकिन हम सिर्फ़ 10 साल में दुनिया का पहला ट्रिलियन डॉलर वाला धनाढ्य हासिल कर सकते हैं।
भारत में, जहाँ निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र अब 236 अरब अमेरिकी डॉलर का है और तेज़ी से बढ़ रहा है, विश्व बैंक की निजी क्षेत्र की शाखा, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) ने देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल श्रृंखलाओं में सीधे तौर पर आधे अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिनके मालिक कुछ सबसे अमीर अरबपति हैं। फिर भी जून 2023 में, ऑक्सफैम ने पाया कि आईएफसी ने भारत में अपनी स्वास्थ्य परियोजनाओं का एक भी मूल्यांकन प्रकाशित नहीं किया है, क्योंकि ये 25 साल पहले शुरू हुई थीं। भारतीय स्वास्थ्य नियामकों ने कई शिकायतों को बरकरार रखा है, जिसमें अस्पतालों द्वारा अधिक शुल्क लेने, कीमतों में हेराफेरी करने और गरीबी में रहने वाले रोगियों का मुफ्त में इलाज करने से इनकार करने के मामले शामिल हैं, जबकि यह सरकारी ज़मीन मुफ़्त में प्राप्त करने की शर्त है। इसके अलावा, वित्त पोषित 144 अस्पतालों में से केवल एक ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है।
वर्षों से ऑक्सफैम ने बढ़ती और अत्यधिक असमानता के बारे में चिंता जतायी है। 2024 में, बहुत वास्तविक खतरा यह है कि ये असाधारण चरम नयी सामान्य स्थिति बन रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉरपोरेट और एकाधिकार शक्ति एक निरंतर असमानता पैदा करने वाली मशीन है, और कहा गया है कि हम एक दशक के विभाजन की शुरुआत के दौर से गुजर रहे हैं: केवल तीन वर्षों में, हमने एक वैश्विक महामारी, युद्ध, जीवन-यापन की लागत का संकट और जलवायु परिवर्तन का अनुभव किया है। प्रत्येक संकट ने खाई को चौड़ा किया है - अमीरों और गरीबी में रहने वाले लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि कुलीन वर्ग और विशाल बहुमत के बीच भी।
नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा मोदी शासन अपने तीसरे कार्यकाल को जारी रखने में हिंदुत्व-कॉरपोरेट गठजोड़ की शक्ति पर विश्वास करते हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में, भारतीय मतदाताओं ने भाजपा की 63 सीटों को कम करके दूसरी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को एक बड़ा झटका दिया। यह देखना होगा कि सत्तारूढ़ दल, विशेष रूप से प्रधान मंत्री ने कोई सबक सीखा है या नहीं और बजट प्रस्तावों के माध्यम से सरकार की आर्थिक नीतियों में कोई सुधार किया है या नहीं। (संवाद)
रोजगार सृजन के लिए अतिधनाढ्य लोगों पर 2 प्रतिशत कर लगाना जरूरी
केन्द्रीय बजट का लक्ष्य हो सामाजिक न्याय और समानता के साथ विकास
नित्य चक्रवर्ती - 2024-07-19 10:30
नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई को पेश होने में केवल तीन दिन बचे हैं। अर्थव्यवस्था की बुनियाद अभी भी मजबूत है, लेकिन संकटग्रस्तता के दायरे में बेरोजगारी की बड़ी समस्या शामिल है, जिसमें शिक्षित युवा और महिलाएं सबसे ज्यादा संकट महसूस कर रही हैं। अरबपतियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है, जबकि श्रमिकों और ग्रामीण गरीबों की वास्तविक मजदूरी में गिरावट आयी है। संक्षेप में, एनडीए के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार के दस साल के शासन में हुए आर्थिक विकास में सामाजिक न्याय की कमी और असमानताओं में बढ़ोतरी हुई है। संसदीय लोकतंत्र में किसी भी सरकार के लिए लोकसभा चुनाव जीतने के बाद का पहला बजट वंचितों के जीवन स्तर को सुधारने के उद्देश्य से नीतिगत दिशा को सही करने का बड़ा अवसर देता है।