यह सरकारी खजाने से धन की हेराफेरी कर निजी क्षेत्र को देने का प्रमाण है, जो रोजगार सृजन के नाम पर किया गया था, परन्तु वास्तविक बेरोजगारी बढ़ी और रोजगार की गुणवत्ता घटी। मोदी सरकार तो घर के काम में सहयोग करने वालों को, तथा जिन्हें सप्ताह में एक घंटे का काम मिला उन्हें भी रोजगार प्राप्त लोगों में गिनकर बेरोजगारी की दर कागजों में घटा ली है, जो अनेक धोखाधड़ियों में महज चुनिंदे उदाहरण हैं।

अब आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ते कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने के लिए गैर-कृषि क्षेत्र में सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की सख्त जरूरत है।

इस गंभीर रोजगार संकट और लोकसभा चुनाव अभियान में इस मुद्दे के ज्वलंत विषय बनकर उभरने के मद्देनजर, अनेक लोगों ने सोचा होगा कि तीसरी मोदी सरकार का पहला केंद्रीय बजट रोजगार सृजन और नये रोजगार के अवसर पैदा करने पर विशेष ध्यान देगा। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया 2024-25 का केन्द्रीय बजट औपचारिक क्षेत्र में रोजगार पैदा करने के खोखले और भ्रामक उपायों के लिए उल्लेखनीय है, जबकि सार्वजनिक धन को कॉरपोरेट्स को उदारतापूर्वक बांटा गया है।

वित्त मंत्री ने रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजनाओं की एक श्रृंखला की घोषणा की है, जिसने कॉरपोरेट पंडितों के बीच काफी चर्चा पैदा की है। योजना – ए, सभी नियोक्ताओं पर लागू है, जबकि योजना - बी और योजना - सी विशिष्ट श्रेणियों के लिए हैं।
योजना - ए के अनुसार, यदि कोई नियोक्ता किसी नये कर्मचारी की भर्ती करता है या किसी गैर-सूचीबद्ध कर्मचारी को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में सूचीबद्ध करता है, तो सरकार कर्मचारी के एक महीने के वेतन का भुगतान तीन किस्तों में 15,000 रुपये तक करेगी। इसका मतलब है कि सरकार नियोक्ता को उसके देय वार्षिक वेतन हिस्से का बारहवां हिस्सा सीधे सब्सिडी देने जा रही है।

विनिर्माण क्षेत्र के नियोक्ता, जो कम से कम 50 नये गैर-ईपीएफओ कर्मचारियों को काम पर रखते हैं, योजना - बी के लिए पात्र होंगे। इस योजना में, सरकार ईपीएफओ में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के हिस्सों का भुगतान करेगी, जिसका भुगतान वेतन घटक के 24 प्रतिशत के रूप में सीधे जनता के पैसे से की जायेगी।

योजना - सी के अनुसार, कोई भी कंपनी जो 2 से 5 नये कर्मचारियों की भर्ती करती है, उसे प्रति माह 3,000 रुपये तक का ईपीएफओ नियोक्ता अंशदान प्राप्त होगा। स्पष्ट रूप से, सरकार सरकारी खजाने से वेतन घटक का 32.33 प्रतिशत तक सब्सिडी देगी।

सबसे नुकसानदेह तथ्य यह है कि इस योजना का लाभ उठाने के लिए कंपनियों को हर साल नये कर्मचारियों की भर्ती करनी होगी। इसका मतलब यह है कि पहले साल में भर्ती किये गये कर्मचारी एक साल पूरा होने के बाद निश्चित अवधि के लिए काम पर रखे जायेंगे और बाहर निकाल दिये जायेंगे और ये योजनाएं सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए छंटनी को बढ़ावा देंगी।

एक और झटका इंटर्नशिप नीति है, जहां सरकार ने शीर्ष 500 सबसे अधिक मुनाफाखोर कंपनियों को अपने पूरे उत्पादन और सेवाओं को इंटर्न/प्रशिक्षुओं के साथ चलाने की अनुमति दे दी है। सरकार 5,000 रुपये के मासिक वजीफे और 6,000 रुपये की एकमुश्त सहायता का बोझ उठायेगी और बाकी प्रशिक्षण लागत कंपनी के सीएसआर फंड से ली जा सकती है।

कॉर्पोरेट समर्थक सरकार इस कुख्यात योजना से रोजगार संबंधों को एक नाजुक दिशा की ओर ले जायेगी, जहां स्वचालन और प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक ज्ञान और तेजी से सीखने के कौशल के साथ नये इंटर्न बैचों पर उत्पादन प्रक्रिया की पूरी मुख्य जिम्मेदारी का बोझ डाला जायेगा। उत्पादन की प्रक्रिया से पुराने बैचों की जगह लेने के लिए हर साल बेरोजगार या व्यावसायिक रूप से शिक्षित युवाओं की विशाल रिजर्व सेना कारखानों के गेट पर इंतजार करेगी।

सरकारी खजाने से निजी खजाने में पैसे की इस तरह की हेराफेरी से बेरोजगारी की समस्या का रत्ती भर भी समाधान नहीं होगा। उत्पादन से जुड़े मुनाफे को बढ़ाने का तरीका इसमें अवैतनिक श्रम घटक को बढ़ाना है और इम्पलॉयमेंट लिंक्ड इंटेंसिव (ईएलआई) और इंटर्नशिप योजनाएं मोदी सरकार द्वारा कॉरपोरेट्स के लिए मुफ्त श्रम को सौंपने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।

लोगों की घटती क्रय शक्ति के कारण कुल मांग में लगातार गिरावट से उत्पादन से जुड़े मुनाफे की शुद्ध बिक्री और प्राप्ति में कमी आ रही है और इस तरह उत्पादन के प्रति निजी निवेश की भावना प्रभावित हो रही है। कॉरपोरेट आय वृद्धि को लगातार सट्टेबाजी की ओर मोड़ा जा रहा है। सरकार कॉरपोरेट्स को सब्सिडी दे सकती है लेकिन इन योजनाओं से अर्थव्यवस्था की स्थिति और लोगों की स्थिति और खराब होगी। (संवाद)