यहां तक कि जुलाई में मुख्य खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में भी अचानक गिरावट देखी गयी और यह देश भर में 5.4 प्रतिशत हो गयी, जबकि सब्जियों, फलों और अनाज के मामलों में भी उल्लेखनीय कमी आयी। लेकिन खुदरा बाजारों में खाद्य कीमतों के अनुभव को देखते हुए यह आश्चर्यजनक है, खासकर अप्रैल, मई और जून 2024 में खाद्य कीमतों के रुझान के मद्देनजर।

मुद्रास्फीति दर में तेज गिरावट एक तरह की पहेली प्रतीत होती है और रिजर्व बैंक ने अपने पिछले मौद्रिक नीति वक्तव्य में जो उम्मीद की थी, उसके विपरीत है। हालांकि इसने अपनी उम्मीदों को यह कहते हुए स्पष्ट किया कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में करीब 3 प्रतिशत के आधार प्रभाव के बाद जुलाई में खाद्य मुद्रास्फीति दर में अनुकूल रुझान दिखना चाहिए।

चालू वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में, जब कृषि क्षेत्र पर अनुकूल दक्षिण-पश्चिम मानसून का असर दिखने लगेगा, तभी खाद्य कीमतों में नरमी आने की उम्मीद है।

वास्तव में, नीति वक्तव्य में उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा बताये गये नवीनतम खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के रुझानों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य ने जुलाई में टमाटर की कीमतों में 62.1 प्रतिशत, प्याज की कीमतों में 22.6 प्रतिशत और आलू की कीमतों में 18.0 प्रतिशत की वृद्धि दिखायी। जुलाई में प्रमुख दालों की कीमतों में भी 0.4 से 4.3 प्रतिशत की सीमा में वृद्धि हुई।

आइए हम पिछले मौद्रिक नीति वक्तव्य में दी गई खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति दरों पर बारीकी से नज़र डालें। अप्रैल-मई में 4.8 प्रतिशत पर रही मुख्य मुद्रास्फीति जून में बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गयी। अप्रैल-मई में 7.9 प्रतिशत से जून में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 8.4 प्रतिशत हो गयी। मुख्य मुद्रास्फीति में खाद्य का योगदान अप्रैल में 74.7 प्रतिशत से बढ़कर मई में 75.2 प्रतिशत और जून में 76.3 प्रतिशत हो गया। जून 2023 में खाद्य का योगदान 44.8 प्रतिशत था।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) टमाटर में जून में 48.7 प्रतिशत (मासिक) की वृद्धि हुई, जबकि प्याज में 24.2 प्रतिशत (मासिक) और आलू में 12.2 प्रतिशत (मासिक) की वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप सब्जियों के लिए साल-दर-साल मुद्रास्फीति 29.3 प्रतिशत रही। कुल मिलाकर, सीपीआई बास्केट में 6.0 प्रतिशत भार वाली सब्जियों ने जून में मुद्रास्फीति में 34.9 प्रतिशत का योगदान दिया। अनाज की मुद्रास्फीति अप्रैल में 8.6 प्रतिशत से बढ़कर जून में 8.8 प्रतिशत हो गयी। फलों की मुद्रास्फीति अप्रैल में 5.2 प्रतिशत से बढ़कर जून में 7.2 प्रतिशत हो गयी। दालों की मुद्रास्फीति जून में 16.1 प्रतिशत रही, जो लगातार 13 महीनों में दोहरे अंकों में दर्ज की गयी।

पहेली यह है कि एक ही वर्ष में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में इतनी भारी गिरावट कैसे आ सकती है! इसके लिए अधिक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है।

नवंबर 2023-जून 2024 के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 8 प्रतिशत के आसपास रही। उच्च खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के संदर्भ में, आरबीआई ने अपनी मौद्रिक नीति के रुख को बनाये रखने का विकल्प चुना, बजाय इसे नीचे की ओर संशोधित करने के, जैसा कि मौद्रिक नीति समिति के कुछ सदस्यों ने दृढ़ता से आग्रह किया था।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने बयान में कहा कि मुद्रास्फीति के बारे में जनता की धारणा खाद्य मुद्रास्फीति दरों से प्रभावित होती है और मुद्रास्फीति की उम्मीदें उसी आधार पर बनती हैं। इसलिए, समग्र मौद्रिक नीति रुख तैयार करने में खाद्य मुद्रास्फीति का महत्व है। यह महत्वपूर्ण क्यों है, क्योंकि अगर आम लोगों की मुद्रास्फीति की उम्मीदें कीमतों की उच्च दीर्घकालिक अपेक्षाओं की ओर झुक जाती हैं, तो मुद्रास्फीति "चिपचिपी" हो जाती है। ऐसी स्थिति में पारंपरिक मौद्रिक नीति उपकरणों के माध्यम से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है, अगरचे कभी-कभी अप्रभावी भी हो जाता है।

नवंबर 2023 से, मुद्रास्फीति की उम्मीदों में गिरावट रुक गयी है, रिजर्व बैंक ने अपने नीति वक्तव्य में उल्लेख किया था। जुलाई 2024 के सर्वेक्षण दौर में पिछले सर्वेक्षण दौर (मई 2024) की तुलना में तीन महीने और एक साल आगे की मुद्रास्फीति की उम्मीदें 20 बीपीएस तक बढ़ गयीं।

मौजूदा मुद्रास्फीति परिदृश्य में पहेली मुख्य मुद्रास्फीति और खाद्य मुद्रास्फीति के बीच का अंतर है। खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति को छोड़कर, मुद्रास्फीति की समग्र दर में नरमी के रुझान दिखायी दे रहे हैं। जून में ईंधन में अपस्फीति (-) 3.7 प्रतिशत है। खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई अप्रैल में 3.2 प्रतिशत से घटकर मई-जून 2024 में 3.1 प्रतिशत हो गयी, जो मौजूदा सीपीआई श्रृंखला में एक नया निचला स्तर है। कोर मुद्रास्फीति और खाद्य मुद्रास्फीति के बीच इस स्पष्ट विरोधाभास और विचलन के लिए एक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। संभवतः खाद्य वस्तुओं के लिए आपूर्ति पक्ष के झटके लग रहे हैं और शायद आपूर्ति में भी अड़चनें हैं।

इस मुद्रास्फीति परिदृश्य के खिलाफ, समग्र अर्थव्यवस्था काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही है। यानी, विकास-मुद्रास्फीति गतिशीलता में, जिस गति से अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, उसके बारे में आशावादी होने का कारण है। जीएसटी राजस्व, जिसे समग्र आर्थिक गतिविधि के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में लिया जा सकता है, 1.82 लाख करोड़ रुपये बढ़ा। जुलाई के दौरान 10.3 प्रतिशत और टोल संग्रह में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। घरेलू एयर कार्गो और पोर्ट कार्गो ने जून 2024 में क्रमशः 10.3 प्रतिशत और 6.8 प्रतिशत की स्वस्थ वृद्धि दर्ज की। 26 जुलाई, 2024 तक कुल बैंक ऋण में 15.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।

मई 2024 में उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि जून में दोपहिया वाहनों की बिक्री में 21.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2024 में मनरेगा के तहत मांग में 21.7 प्रतिशत और जुलाई में 19.4 प्रतिशत की गिरावट आयी, जो कृषि क्षेत्र के रोजगार में सुधार को दर्शाता है। जून में ट्रैक्टर की बिक्री ने 3.6 प्रतिशत की वृद्धि करके बदलाव दर्ज किया।

मई 2024 में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं में 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी और जून में यात्री वाहनों की बिक्री में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2024 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में 6.9 प्रतिशत और जुलाई में 6.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो बहुत ऊंचे आधार पर है क्योंकि जून 2023 में इसमें 19.2 प्रतिशत और जुलाई 2023 में 26.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जुलाई 2024 में स्टील की खपत में 14.6 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि हुई। जून 2024 में सीमेंट उत्पादन में मामूली 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2024 के दौरान पूंजीगत वस्तुओं के आयात में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि मई 2024 में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2023-24 की चौथी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग 76.8 प्रतिशत रहा, जो 11 वर्षों में सबसे अधिक है। ऐसे में, इन आंकड़ों के अनुसार आर्थिक गतिविधि के स्तर को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज में कटौती की आवश्यकता होती। ऐसा केवल तभी संभव था जब मूल्य स्थिति दीर्घ अवधि के लिए थोड़ी अधिक स्थिर होती। परन्तु ऐसा प्रतीत नहीं होता है। (संवाद)