शायद इसलिए कि लोगों में अब कानून का भय खत्म हो गया है। प्रसिद्ध शासकीय अधिकारी श्री एम. एन. बुच (जो अब नहीं हैं) बताते थे कि जब वे बैतूल में कलक्टर थे तब किसी विषय को लेकर एकाएक बड़ी भीड़ इकट्ठा हो गयी। भीड़ ने आक्रामक रूप ले लिया। जिस स्थान पर भीड़ थी और अपना रोष प्रकट कर रही थी, उस स्थान पर पुलिस का एक ही सिपाही था। उसने भीड़ के लिए एक रेखा खींच दी और कहा कि जो इस रेखा को पार करेगा उसे सख्त कानून का सामना करना पड़ेगा। उसकी इस चेतावनी का असर हुआ और भीड़ आगे नहीं बढ़ी।
कानून और व्यवस्था लागू करने वाले अधिकारियों का ऐसा ही दबदबा हुआ करता था। अब तो आये दिन ऐसी खबरें मिलती हैं कि रेत खनन माफिया ने बड़े अधिकारी पर हमला किया जब उसने उनके विरूद्ध चोरी कर रेत ले जाने के अपराध पर कार्रवाई किया। अभी तक कई बड़े-बड़े अधिकारी खनन माफिया के शिकार हो चुके हैं।
अनेक कॉलेजों में और स्कूलों में आये दिन शिक्षकों पर हमले होते हैं। कुछ दिन पहले उज्जैन में सरेआम एक शिक्षक की हत्या कर दी गयी। अभी हाल में भोपाल के एक कॉलेजों के संचालक पर दिन-दहाड़े हमला कर दिया गया। हमला करने वाले विद्यार्थी परिषद से संबंधित थे। विद्यार्थी परिषद इस समय के सत्ताधारी पार्टी से संबंधित है। रेलवे में यदि टीआई टिकट का पूछता है तो उस पर हमला कर दिया जाता है। अतिक्रमण कर अनेक लोग मकान बना लेते हें। जब अधिकारी उनको हटाने जाते हैं तो उन पर हमला कर दिया जाता है। बिजली का बिल नहीं देने पर बिजली बोर्ड के अधिकारी उस क्षेत्र की बिजली काटने जाते हैं तो उन्हें मारकर भगा दिया जाता है। बैंक का कर्ज वसूल करने के लिए यदि टीम जाती है तो उसे मोहल्ले में प्रवेश नहीं दिया जाता है। महिलाओं के साथ आए-दिन दुष्कर्म हो रहे हैं। जब अपराधी को गिरफ्तार करने की कोशिश की जाती है तो इसी तरह की प्रतिक्रिया होती है और प्रभावशाली व्यक्ति उस अपराधी की रक्षा में खड़े हो जाते हैं।
अभी हाल में भाजपा के एक विधायक ने सांसदों को गाली दी और कहा कि इन्हें संसद से बाहर कर दिया जाये। अभी तक उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी पता नहीं है। बिहार की राजधानी पटना में विरोधी दल के बड़े नेता इकट्ठा हुए थे। भाजपा ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि पटना में चोरों का सम्मेलन हो रहा है।
कुल मिलाकर यदि वास्तविक हिंसा नहीं तो एक-दूसरे के बारे में हम हिंसक भाषा का उपयोग कर रहे हैं। इसे कैसे रोका जाए? यदि डॉक्टर के साथ हिंसा जारी रही तो फिर रोगियों का क्या होगा? कोलकता की घटना के पीछे क्या तथ्य हैं यह पता नहीं लगा है। परंतु जो समाज को संचालित करते हैं और जिनका समाज पर दबदबा रहना चाहिए यदि वे ही ऐसी स्थिति में आ जायें कि वे असामाजिक तत्वों से डरें और अपना कर्तव्य निर्वहन न कर पायें तो पूरे समाज में अराजकता फैल जायेगी। ब्रिटेन और अमेरिका में न्याय की प्रक्रिया अत्यधिक द्रुत गति से चलती है। अभी कुछ दिन पहले वहां के एक काले नागरिक को गोरे पुलिस वाले ने मार डाला था। उसका अपराध द्रुत गति से तय हुआ और उसे आवश्यक सज़ा दी गयी। हमारे देश में तो बरसों लग जाते हैं एक अपराधी को दंडित करने में। हमारे वर्तमान देश के मुख्य न्यायाधीष श्री चंद्रचूड़ इस संबंध में अनेक बार चिंता प्रकट कर चुके हैं। परंतु फिर भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है। पूरे समाज की सुरक्षा आवश्यक है। यह कैसे संभव हो इस पर पूरे देश को विचार करना आवश्यक है।
जहां तक डॉक्टरों की सुरक्षा का सवाल है सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ उपाय सुझाए हैं। आशा है कि इन पर अमल होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने टॉस्क फोर्स बनाई है जो डॉक्टरों को किस प्रकार की सुरक्षा दी जाये इसकी सिफारिश करे। इस समय जनप्रतिनिधियों चाहे सांसद हो, या विधायक, शासन द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। प्रशासन द्वारा और भी महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सुरक्षा दी जाती है। सुरक्षा में कभी-कभी एक दर्जन सुरक्षाकर्मी भी लगाये जाते हैं। कभी-कभी इनकी संख्या आवश्यकता से भी ज्यादा होती है। तो क्या हम देश भर के अस्पतालों में सुरक्षा का इंतजाम नहीं कर सकते?
डाक्टरों की सुरक्षा इस समय एक महत्वपूर्ण विषय है जिसपर अधोपांत विचार होना चाहिए, और उसके लिए पर्याप्त इंतजाम किया जाना चाहिए। (संवाद)
देश में सुरक्षा का वातावरण नहीं है आखिर क्यों?
डॉक्टरों के लिए सुरक्षा का विशेष इंतजाम जरूरी
एल.एस. हरदेनिया - 2024-08-22 11:00
कोलकता में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म किया गया और उसकी हत्या भी कर दी गयी। यह अत्यधिक दुखद घटना है। इसके विरोध में पूरे देश के डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। डॉक्टरों के साथ यह पहली घटना नहीं है। डॉक्टर अब सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम मांग रहे हैं। उनकी मांग है कि उनकी सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार कानून बनाये। पूरे देश में इस समय असुरक्षा की भावना है। समाज का कोई भी ऐसा वर्ग नहीं जो अपने को असुरक्षित महसूस नहीं कर रहा हो। यहां तक कि वे भी अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं जिन पर दूसरों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी है। आखिर क्यों?