लगभग 60,000 केंद्रीय पुलिस बल मुख्य रूप से कुकी-बहुल पहाड़ी क्षेत्रों और घाटी के बीच एक बफर ज़ोन बनाने के लिए तैनात हैं जहाँ मैतेई समुदाय का प्रभुत्व है। पिछले पखवाड़े में स्थिति काफी बदतर हो गयी है। 1 सितंबर को इम्फाल पश्चिम जिले के कोत्रुक में ड्रोन हमले में दो लोग मारे गये और नौ घायल हो गये, जो मैतेई बहुल है। माना जाता है कि इस हमले के पीछे कुछ कुकी उग्रवादी थे। इस घटना के साथ ही दूसरे इलाके में भी रॉकेट हमले हुए। 6 सितंबर को जिरीबाम जिले में पांच लोग मारे गये, जिनमें तीन सशस्त्र उग्रवादी शामिल थे। दो दिन बाद, कुकी मूल के एक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी को इम्फाल पश्चिम के मैतेई इलाके में बफर जोन पार करने पर पीट-पीटकर मार डाला गया। हकीकत यह है कि एक समुदाय दूसरे के इलाके में प्रवेश नहीं कर सकता।
हिंसा के इस ताजा विस्फोट के कारण इम्फाल और अन्य जिलों में छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया है। छात्र सुरक्षा सलाहकार और पुलिस महानिदेशक को हटाने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि कुकी उग्रवादियों के साथ ऑपरेशन के निलंबन (एसओओ) समझौते को रद्द किया जाये और एकीकृत कमान का नियंत्रण राज्य सरकार को दिया जाये। पुलिस के साथ झड़पों के कारण इम्फाल पूर्व और इम्फाल पश्चिम जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया और इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
दोनों पक्षों के साथ बातचीत और संवाद के माध्यम से राजनीतिक मुद्दों से निपटने में विफलता ने कानून और व्यवस्था बनाये रखने और विभाजित लोगों के बीच शांति कायम करने के लिए सुरक्षा बलों पर अनुचित निर्भरता को जन्म दिया है। इसने केंद्रीय पुलिस बलों, विशेष रूप से असम राइफल्स को एक अप्रिय स्थिति में डाल दिया है। मैतेई राजनेताओं और समूहों द्वारा असम राइफल्स और अन्य केंद्रीय बलों की वापसी की मांग की गयी है जबकि इसके साथ ही कुकी उग्रवादियों द्वारा ड्रोन और रॉकेट के उपयोग ने इस आशंका को बढ़ा दिया है कि बाहरी ताकतें संघर्ष में शामिल हो रही हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करेगी।
कुकी उग्रवादी समूहों के साथ हुए समझौते के तरह सैन्य ऑपरेशन के निलंबन को खत्म करने की मांग की गयी है। इसकी मांग तो मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी कर रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में नये सिरे से उग्रवाद का रास्ता खुल गया है, जिसके कारण उग्रवाद से निपटने के लिए सेना को तैनात करना पड़ सकता है। मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग और कुकी-जो समुदाय से मिली प्रतिक्रिया से जो हिंसा शुरू हुई, वह मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की पक्षपातपूर्ण भूमिका से और बढ़ गयी, जो कुछ उग्रवादी मैतेई संगठनों को संरक्षण दे रहे हैं।
हाल ही में एक ऑडियो फाइल का खुलासा हुआ था, जिसे दंगों की जांच कर रहे न्यायिक आयोग को सौंपा गया था। ऑडियो फाइल में मुख्यमंत्री अपने आधिकारिक आवास पर पक्षपातपूर्ण टिप्पणी करते हुए दिखाई दे रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने राज्य पुलिस शस्त्रागार से हजारों हथियार लूटने वालों को बचाया है। मुख्यमंत्री के रूप में निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने से बीरेन सिंह का इनकार ही समस्या का मूल कारण है।
मोदी सरकार और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री की विभाजनकारी भूमिका को अच्छी तरह से जानते हुए भी उनके साथ रहना चुना है। राजनीतिक स्तर पर, भाजपा और आरएसएस मैतेई चरमपंथी अंधराष्ट्रवाद की आग को भड़काना पसंद करते हैं, जैसा कि इस तथ्य से देखा जा सकता है कि चरमपंथी संगठन अरंबाई टेंगोल के संस्थापक एल सनाजाओबा को राज्यसभा सांसद बनाया गया था। लंबे समय से चल रहे गतिरोध ने दोनों समुदायों में चरमपंथियों और उग्रवादियों के हाथ मजबूत ही किये हैं।
मणिपुर के प्रति केंद्र की अपनी जिम्मेदारी का परित्याग सा कर देना इस तथ्य से और भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सोलह महीनों में एक बार भी मणिपुर का दौरा करना उचित नहीं समझा। जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार सीधे हस्तक्षेप करे और प्रमुख जातीय समूहों के साथ राजनीतिक वार्ता की प्रक्रिया शुरू करे तथा शांति और सामान्य स्थिति के लिए स्थितियां बनायी जा सके, जहां सभी समुदायों के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो। यदि मणिपुर में नासूर बन चुके घाव को नहीं मिटाया गया, तो इसका उत्तर-पूर्व में व्यापक असर होगा। (संवाद)
मणिपुर हिंसा को रोकने की जिम्मेदारी से पल्ला न झाड़े मोदी सरकार
पिछले 16 महीनों में 250 लोग मारे गये और 60,000 विस्थापित हुए
पी. सुधीर - 2024-09-14 10:53
पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर में जातीय संघर्ष और हिंसा गत सोलह महीनों से लगातार जारी है। इस हिंसा के दौरान अब तक 250 से ज़्यादा लोग मारे गये हैं और इससे अनेक गुना लोग घायल हुए हैं। लगभग 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं और शरणार्थी के रूप में अन्यत्र रह रहे हैं। केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकार बुनियादी मुद्दों को हल करने में पूरी तरह विफल रही है, जिसके कारण संघर्ष हुआ और ऐसी स्थिति विकसित हुई जहाँ जातीय विभाजन और भी बढ़ गया है।