उनकी साख खत्म होने का मुख्य कारण राजनीति में उनका बार-बार पलटना है। राजनीतिक हलकों में यह आम धारणा है कि सत्ता में बने रहने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं और शैतान से भी साठगांठ कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जिस तरह से उनका अपमान कर रहे हैं, वह इसका सुबूत है।

तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते समय नरेंद्र मोदी ने उनसे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने और विशेष वित्तीय आर्थिक पैकेज देने की उनकी मांग को स्वीकार करने का वायदा किया था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ललन सिंह को छोड़कर उनकी पार्टी के किसी अन्य सांसद को मंत्री पद नहीं दिया गया। तकनीकी तौर पर नीतीश का दावा है कि ललन को उनकी पहल पर मंत्री बनाया गया, लेकिन सच्चाई यह है कि यह जेडी(यू) में समानांतर सत्ता केंद्र बनाने की अमित शाह की साजिश का हिस्सा था, जिसके तहत ललन को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया।

एक महीने पहले, नीतीश एक बार फिर नयी छलांग लगाने के करीब पहुंच रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जेडी(यू) के 12 में से बड़ी संख्या में सांसदों ने मोदी-शाह को अपना समर्थन देने का वायदा किया। यह नीतीश के लिए बड़ा झटका था। उन्हें पीछे हटना पड़ा। बेशक, मोदी से समर्थन वापस लेने से नीतीश के लिए भी समस्या खड़ी हो सकती थी। सबसे बड़ा नुकसान नीतीश को होता।

अपनी योजना को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने तेजस्वी यादव और राजद प्रमुख लालू यादव से भी मुलाकात की थी, लेकिन राजनीतिक हालात की कमजोरी ने उन्हें संयम बरतने पर मजबूर कर दिया। नीतीश की इस संवेदनशीलता ने तेजस्वी को नीतीश कुमार की प्रतिबद्धताओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने कहा कि "उनके वायदों का कोई मूल्य नहीं है और उन्होंने लोगों का 'विश्वास खो दिया है'।" उन्होंने उस घटना को याद किया, जिसमें कुमार ने अपने विधायकों की मौजूदगी में हाथ जोड़कर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ गठबंधन करने के लिए माफी मांगी थी। हालांकि, तेजस्वी ने राजद और नीतीश की जेडी(यू) के बीच भविष्य में किसी भी तरह के गठबंधन की संभावना को मजबूती से खारिज कर दिया।

तेजस्वी, जो कल तक नीतीश को चाचा कहकर संबोधित करते थे, की ओर से इस तरह की टिप्पणी उनकी विश्वसनीयता के खत्म होने का संकेत देती है। तेजस्वी ने कहा, "उनकी शपथ का कोई मूल्य नहीं है। कोई भी उन पर भरोसा नहीं करता, क्योंकि वे कभी भी अपना मन बदल सकते हैं। दो बार हमने उन पर दया की और उन्हें जीवनदान दिया और दोनों बार उन्होंने अपना असली रूप दिखाया। इस बार कोई मतलब नहीं है।”

तेजस्वी ने कहा: नीतीश की असंगति और राजनीतिक निष्ठाओं को बदलने की प्रवृत्ति ने उनकी प्रतिबद्धताओं को अविश्वसनीय बना दिया है। उन्होंने कहा कि राजद ने बिहार के सीएम को पहले भी कई मौके दिये थे, लेकिन हर बार कुमार ने अपना असली स्वरूप दिखाया। स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग अब उनकी बातों को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं।

6 सितंबर 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के साथ एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान, नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ फिर से जुड़ने की अटकलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने उनके साथ गठबंधन करके "दो बार गलती की" और इसे दोहरायेंगे नहीं। लेकिन विशेषज्ञ और राजनीतिक विश्लेषक उनकी बातों को मानने को तैयार नहीं हैं। उनमें से एक ने एक रहस्यमय टिप्पणी की: "यह भविष्य में उनकी कलाबाजी के लिए कदम हो सकता है।"

वास्तव में जब वह कोई तथ्य बोलते हैं, तो उस पर भरोसा नहीं किया जाता है। नीतीश ने राज्य की नौकरशाही और पुलिस पर अपना नियंत्रण लगभग खो दिया है। राज्य की राजधानी पटना में भी हिंसा की अभूतपूर्व घटनाएं हो रही हैं। 9 सितंबर को ही तेजस्वी ने नीतीश पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि राज्य में कानून-व्यवस्था खत्म हो गयी है और अपराधियों ने राज्य पर कब्जा कर लिया है। अपराधी पुलिस से बेखौफ होकर काम कर रहे हैं और हत्या, बैंक डकैती और अपहरण की घटनाएं आम हो गयी हैं।

किसी ने नहीं सोचा था कि जिस व्यक्ति को "सुशासन बाबू" का उपनाम दिया गया था, उसे एक साल के भीतर ही वही लोग "कुशासन बाबू" कहने लगेंगे। तेजस्वी ने चुटकी लेते हुए कहा: "राजनीति में उन्होंने जो कुछ भी कमाया था, वह सब खत्म हो गया है। उनका युग अब खत्म हो गया है।"

मोदी-शाह की जोड़ी इस स्थिति का तत्काल लाभ उठाने के मूड में नहीं है। वजह यह है कि उनके पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे पार्टी का चेहरा बनाया जा सके। भाजपा भी पीछे हटने के मूड में नहीं है। वे उन्हें कुछ और समय और जगह देना चाहते हैं क्योंकि उनके सत्ता में बने रहने से उनका ईबीसी और महादलित समर्थन आधार और कम हो जायेगा।

हालिया जाति सर्वेक्षण के अनुसार, धानुक, कुम्हार, कहार, नोनिया, केवट, नाई, मल्लाह, तेली और ततमा जैसे 130 छोटे जाति समूहों वाली ईबीसी श्रेणी बिहार के मतदाताओं का 36% हिस्सा बनाती है। इस समूह के साथ, नीतीश को उनके कुर्मी-कोइरी (कुशवाहा) समुदाय का समर्थन प्राप्त था। बिहार के मतदाताओं में कुर्मी 2.9% और कोइरी 4.2% हैं। सीएम को 21 जातियों वाली महादलित श्रेणी से भी फायदा हुआ, जिसे बनाने में उन्होंने मदद की थी। राज्य में महादलित लगभग 10 प्रतिशत हैं।

एक और बात यह है कि पार्टी के पास कोई ऐसी महिला नेता नहीं है जो मतदाताओं को लुभा सके। नीतीश ने न केवल नौकरियों में बल्कि राजनीति में भी महिलाओं को आरक्षण देकर उनके बीच अपना समर्थन आधार तैयार किया है। पिछले कुछ समय से महिलाएं चुनावों में अहम कारक बन गयी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव और इस साल के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में महिलाएं वोट देने के लिए बाहर निकलीं। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में सभी पांच चरणों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। (संवाद)