जाहिर है, जम्मू-कश्मीर से जुड़ी भाजपा की नीतियों की अग्निपरीक्षा पहली बार वहीं हो रही है, जहां उन्हें लागू किया जा रहा है। अब तक पार्टी देशभर में होने वाले चुनावों में अनुच्छेद 370 और राज्य में मुसलमानों के राजनीतिक वर्चस्व, अलगाववाद और आतंकवाद के मुद्दे का इस्तेमाल करती रही है और इसका बड़ा राजनीतिक लाभ उठाकर आखिरकार केंद्र की सत्ता में पहुंच गयी है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव के नतीजे इस केंद्र शासित प्रदेश के लोगों की वास्तविक भावनाओं को सामने लायेंगे कि वे भाजपा की नीतियों के क्रियान्वयन के बारे में कैसा महसूस करते हैं। 40 विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव का अंतिम चरण 1 अक्टूबर को होना है। पहले दो चरणों में कुल 50 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान हो चुका है - 18 सितंबर को पहले चरण में 24 और 25 सितंबर को दूसरे चरण में 26।

भाजपा भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 की बहाली के सख्त खिलाफ है, जिसे उसने 2019 में 35 ए के साथ निरस्त कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म हो गया। इसके बाद जम्मू और कश्मीर ने अपना राज्य का दर्जा भी खो दिया, इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

दो क्षेत्रीय दलों एनसी और पीडीपी ने अनुच्छेद 370 और इसके पूर्व राज्य के दर्जे को बहाल करने के लिए प्रस्ताव लाने की चुनावी घोषणा की है। चूंकि एनसी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है, इसलिए कांग्रेस को अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर राजनीतिक मुश्किलें आ रही हैं। भाजपा लगातार कांग्रेस पर हमला कर रही है, क्योंकि वह राष्ट्रीय पार्टी है, जबकि कांग्रेस इस बात पर चुप है कि वह अनुच्छेद 370 पर एनसी और पीडीपी का समर्थन करेगी या नहीं। इस मुद्दे पर एनसी और पीडीपी को फायदा या नुकसान जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित रहेगा, जबकि इसका असर पूरे देश में कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक किस्मत पर पड़ेगा।

हालांकि कांग्रेस अनुच्छेद 370 की बहाली के मुद्दे पर बड़ी सावधानी पूर्वक बयान दे रही है, लेकिन उसने जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने की लड़ाई लड़ने की कसम खायी है। चुनावी रणभूमि पर लोग पूछ रहे हैं कि क्या कांग्रेस 2019 में खत्म किये जाने से पहले वाला राज्य का दर्जा बहाल करने का समर्थन करेगी या विभाजन के बाद मौजूदा केंद्र शासित प्रदेश का। इस मामले में कांग्रेस उम्मीदवार काफी मुश्किल में हैं।

हालांकि, भाजपा भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। वह राज्य का दर्जा बहाल करने का आश्वासन दे रही है, लेकिन लोग पूछ रहे हैं कि कब। भाजपा अभी भी कोई समय सीमा नहीं बता रही है और यह भी आश्वासन नहीं दे रही है कि वे राज्य का दर्जा बहाल करेंगे जैसा कि राज्य के दो हिस्सों में बंटने से पहले था। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर के विकास के मुद्दे पर जोर दिया है, लेकिन यह उतना जोर नहीं पकड़ा जितना कि अनुच्छेद 370 तथा राज्य के दर्जे की पुन: बहाली का मुद्दा, क्योंकि मतदाताओं का मानना है कि पार्टी का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के संसाधनों को लूटना है। जहां तक जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल करने की बात है, तो ऐसा कहीं नहीं दिख रहा है। जिस पार्टी ने दावा किया था कि वह पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को खत्म कर देगी, जबकि आतंकवादी भारत में घुसकर मार रहे हैं, तथा भाजपा सरकार आतंकवादी हमलों से अपने ही सुरक्षाकर्मियों की रक्षा करने में असमर्थ है। आतंकवादी हमलों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के भाजपा के दावे चुनाव प्रचार के दौरान काफी कमजोर हो गये हैं।

जम्मू-कश्मीर में कई दशकों तक चुनावों का बहिष्कार करने वाली जमात-ए-इस्लामी अब कई निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है, जिनमें से कई इस प्रतिबंधित संगठन के पूर्व सदस्य थे। यह इस चुनाव में एक नया घटनाक्रम है।

दोनों राष्ट्रीय दलों के शीर्ष नेता - कांग्रेस के राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, और भाजपा के पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपनी पार्टियों के लिए प्रचार कर रहे हैं। दोनों दल जम्मू-कश्मीर की सभी दुर्दशा के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

कांग्रेस सीट बंटवारे की व्यवस्था में 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि आधा दर्जन सीटों पर वह इंडिया ब्लॉक घटकों के साथ दोस्ताना मुकाबले में है। दूसरी ओर भाजपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। क्षेत्रीय दलों में एनसी 50 और पीडीपी 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इससे पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में कोई भी राजनीतिक दल सभी 90 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रहा है। यह आने वाले बेहद खंडित राजनीतिक जनादेश का संकेत है जिसके लिए कई अन्य कारण भी हैं।

1 अक्टूबर को होने वाले मतदान में भाजपा कुपवाड़ा जिले की छह में से 2 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी बारामुल्ला में किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है, जहां 7 सीटें हैं और जेल में बंद अलगाववादी इंजीनियर रशीद के उम्मीदवार मजबूत हैं। इंजीनियर रशीद ने हाल ही में जेल में रहते हुए इस लोकसभा सीट पर जीत हासिल की है। भाजपा बांदीपोरा की सभी 3 सीटों, उधमपुर की सभी 4 सीटों, कठुआ की सभी 6 सीटों, सांबा की सभी तीन सीटों और जम्मू की सभी 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अंतिम चरण में 26 सीटों पर भाजपा इंडिया ब्लॉक के साथ सीधे मुकाबले में है। बाकी 14 सीटों पर इंडिया ब्लॉक तीन बहुकोणीय मुकाबलों में है, जिसमें पीडीपी, इंजीनियर रशीद की पार्टी या निर्दलीय शामिल हैं।

चुनाव परिणाम यह दिखायेगा कि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की जम्मू-कश्मीर में कितनी राजनीतिक प्रासंगिकता है, जो फिलहाल खंडित जनादेश की ओर देख रहा है। यदि 1 अक्टूबर को होने वाले चुनाव के लिए बचे हुए कुछ दिनों में राजनीतिक हवा की दिशा नहीं बदलती है, तो चुनाव के बाद के परिदृश्य में केंद्र शासित प्रदेश की सरकार के गठन में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। (संवाद)