वह एक महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि गडकरी नागपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व करने हैं, जिसको लेकर अनेक सवाल भी उठे। गडकरी की अनुपस्थिति के बारे में पूछे जाने पर उनके मीडिया अधिकारी ने कहा कि मंत्री महाराष्ट्र से बाहर हैं। गडकरी के करीबी एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि गडकरी की अनुपस्थिति में बहुत कुछ पढ़ा जा रहा है। नेता ने कहा, "क्या यह दिलचस्प है कि गडकरी साहब को केंद्रीय नेतृत्व के हर कार्यक्रम में उपस्थित रहना पड़ता है? वह एक केंद्रीय मंत्री भी हैं और उनके अपने कार्यक्रम हैं", उन्होंने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि गडकरी जानबूझकर अनुपस्थित रह रहे हैं।

एक सप्ताह पहले गडकरी ने एक सार्वजनिक समारोह में मजाक में कहा था कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भाजपा चौथी बार केंद्र में सरकार बना पायेगी। जब नरेंद्र मोदी वर्धा में थे, तब गडकरी पुणे में एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे, जहां उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सरकार को आलोचना के लिए खुला होना चाहिए। उन्होंने कहा, "हर किसी को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और सत्ता में बैठे लोगों को आलोचना बर्दाश्त करनी चाहिए।"

गडकरी उन कुछ केंद्रीय मंत्रियों में से एक हैं जो विपक्ष के बीच लोकप्रिय हैं। वह अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं और विपक्षी दलों के सांसदों की मदद करने में संकोच नहीं करते। 14 सितंबर को नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि विपक्षी दल के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।

महाराष्ट्र चुनाव से पहले भाजपा सामूहिक नेतृत्व के विचार पर विचार कर रही है। राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कुछ दिन पहले कहा था कि विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए गडकरी शीर्ष नेताओं में शामिल होंगे। 2019 में ऐसा नहीं था, जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अभियान के सभी पहलुओं को नियंत्रित किया था। उस समय, बावनकुले सहित गडकरी के करीबी माने जाने वाले कुछ शीर्ष नेताओं को टिकट नहीं दिये गये थे। अब पांच साल बाद, फडणवीस के पास पूरा नियंत्रण नहीं है। इसलिए वितरण और चुनाव प्रबंधन में गडकरी की भूमिका निश्चित रूप से होगी।

नागपुर में अपनी बैठक के दौरान, अमित शाह ने विदर्भ की 62 में से 45 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा। लोकसभा चुनावों में इस क्षेत्र में भाजपा के खराब प्रदर्शन को देखते हुए यह एक बड़ा काम है। इस पृष्ठभूमि में, ऐसी महत्वपूर्ण बैठक में गडकरी की अनुपस्थिति ने कार्यकर्ताओं को और भी भ्रमित कर दिया है।

महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव सचिन सावंत ने कहा कि गडकरी निश्चित रूप से मोदी-शाह नेतृत्व से परेशान लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा पर दोनों की तानाशाही देश के सामने मौजूद स्थिति से कहीं ज्यादा खराब है। इसलिए, मेरे विचार से गडकरी जैसे वरिष्ठ नेता, जो कभी भाजपा के अति महत्वपूर्ण नेताओं में से एक रहे हैं, स्वाभाविक रूप से परेशान महसूस कर रहे हैं।

गडकरी के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए घटी एक घटना मोदी के साथ उनके समीकरण के बारे में कुछ जानकारी देती है। अध्यक्ष के तौर पर गडकरी ने भाजपा के राष्ट्रीय सचिवों में से एक और मोदी के कट्टर विरोधी संजय जोशी के करियर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। मोदी, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे, ने मुंबई में पार्टी के एक कार्यक्रम में तब तक शामिल होने से इनकार कर दिया, जब तक जोशी को चले जाने के लिए नहीं कहा गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद गडकरी को मोदी की इच्छा के आगे झुकना पड़ा। (संवाद)