जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों के लिए 873 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमाया। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने हार मान ली। महत्वपूर्ण बात यह है कि एनसी-कांग्रेस गठबंधन की जीत के साथ जम्मू-कश्मीर में बहुत कुछ बदलने वाला है। एक तो यह कि भाजपा के पंख कट गये हैं। न उपराज्यपाल अब 'राजा' की तरह होंगे और न ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 'सम्राट' की तरह।
महत्वपूर्ण बात यह है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के पक्ष में किस्मत नहीं थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस की सीटें लोगों के जनादेश के दम पर भारी बहुमत से आगे निकल गयीं, जो ज्यादातर नेशनल कान्फ्रेंस के पक्ष में था। वास्तव में, कांग्रेस एनसी के पाले में लटकी रही। इतना ही नहीं, यहां तक कि इंजीनियर रशीद, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला को बारामुल्ला निर्वाचन क्षेत्र से हराया था, भी एनसी के शानदार प्रदर्शन में कोई बदलाव नहीं कर पाये।
नेशनल कॉन्फ्रेंस की तुलना में पीडीपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसा लग रहा था कि कश्मीर के मतदाता कश्मीर क्षेत्र से स्पष्ट विजेता चाहते थे, न कि विभाजित जनादेश, जिससे किसी भी क्षेत्रीय विजेता को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से उत्पन्न समस्याओं को हल करने का मौका न मिले। कश्मीरी मुसलमान भारत के बाकी हिस्सों के मुसलमानों से अलग नहीं हैं। वे भी केंद्र के प्रति बहुत आभारी नहीं हैं क्योंकि आतंकवादियों द्वारा मारे जाने और बच जाने के बाद भी आज उनका जीवन कम नारकीय नहीं हो गया है। उस समय भी नहीं जब पत्थरबाजी एक दैनिक घटना थी।
स्वतंत्र उम्मीदवार, जिन पर भाजपा ने भरोसा किया था, भी हार गये। नेशनल कॉन्फ्रेंस/कांग्रेस के उम्मीदवारों ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में पीडीपी उम्मीदवारों को हराया, लेकिन इसने अब्दुल्ला परिवार को महबूबा की ओर दोस्ताना हाथ बढ़ाने से नहीं रोका। जीत में उदारता! परिणाम लगभग ऐसे थे जैसे पीडीपी ने चुनाव ही नहीं लड़ा था। इल्तिजा मुफ्ती तो मुफ्ती परिवार के गढ़ बिजबेहरा में भी हार गयीं।
यह कहा गया कि ये विधानसभा चुनाव 2014 के बाद से जम्मू और कश्मीर के पहले चुनाव थे। साथ ही, जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किये जाने के बाद भी ये पहले चुनाव थे। खास बात यह है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद यह पहला चुनाव था। एग्जिट पोल ने त्रिशंकु सदन की भविष्यवाणी की थी, लेकिन यह पता चला कि जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं की धारणा बिल्कुल अलग थी। सुबह 8 बजे से ही वोटों की गिनती शुरू हो गयी थी और तभी से यह स्पष्ट था।
हिंसा की कोई घटना नहीं हुई, मानो तथाकथित "उग्रवादी" भी यह देखने के लिए इंतजार कर रहे थे कि नतीजे किसके पक्ष में आते हैं। छह साल के अंतराल के बाद एक नयी सरकार चुनी जानी थी। 20 जून, 2018 को पीडीपी-भाजपा शासन का पतन हो गया था। इसके बाद अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर के लाखों लोग इन चुनावों का इंतजार कर रहे थे। चुनाव परिणाम से पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "विकास कार्यों" से जम्मू-कश्मीर के अधिसंख्य लोग प्रभावित नहीं हुए।
जम्मू-कश्मीर को उसके 'राज्य-दर्जा' में वापस लाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की समय सीमा भी है। समय सीमा का पालन करना होगा। बहाने बर्दाश्त नहीं किये जायेंगे। जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में बना हुआ है। ऐसी दबी हुई खबरें हैं कि लद्दाख को जम्मू-कश्मीर में वापस लौटने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन यह सुनिश्चित करेगा कि सर्वोच्च न्यायालय की समय-सीमा का पालन किया जाये। इंडिया गठबंधन, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस भी एक घटक है, भी इस पर विचार करेगा।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है, जिसकी अब आवश्यकता नहीं है। अब्दुल्ला ने कहा कि उपराज्यपाल को पांच आरक्षित सीटों पर यादृच्छिक लोगों को नामित करने का कोई अधिकार नहीं है। एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की योजना बनायी है। पांच नामित सदस्यों के आने से विधानसभा की संख्या 95 हो जायेगी और बहुमत का आंकड़ा 48 हो जायेगा।
विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुए थे। 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को। अब सभी को राहत मिली कि चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गये। वास्तव में, यह केंद्र की उपलब्धि थी। सभी मतगणना केंद्रों पर तीन-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था के साथ मतगणना की गयी। कोई नहीं कह सकता कि कश्मीर में कब विस्फोट हो जाये।
जम्मू-कश्मीर चुनाव में पाकिस्तान की भी दिलचस्पी है। आतंकवाद, उग्रवाद और सीमा पार से घुसपैठ सभी इस "मित्रवत पड़ोसी" की बदौलत हैं। सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर में नागरिक सरकार की वापसी से पाकिस्तान के साथ आधिकारिक या अन्यथा संबंधों पर क्या असर पड़ेगा? नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस दोनों ही चाहते हैं कि भारत-पाक वार्ता फिर से शुरू हो। मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार कम से कम फिलहाल पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने के खिलाफ है। केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच टकराव होना तय है। राज्य के लोग और घाटी के लोग विरोध करेंगे। अलगाववादी अपनी मांगों और विरोध के अपने तरीके के साथ प्रतिशोधात्मक तरीके से फिर उभर सकते हैं।
अनुच्छेद 370 एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। बेशक, जब तक इंडिया गठबंधन सत्ता में नहीं आता, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू को भारत में मोदी शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए राजी करना होगा! (संवाद)
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस-कांग्रेस की जीत के साथ बदलाव की जमीन तैयार
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नयी केन्द्र-शासित प्रदेश सरकार के सामने कठिन चुनौतियां
सुशील कुट्टी - 2024-10-09 06:33
भारतीय जनता पार्टी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव हार गयी। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने जीत दर्ज की। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने घोषणा की कि उमर अब्दुल्ला अगले मुख्यमंत्री होंगे। घाटी ने नेशनल कान्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के लिए भारी मतदान किया था। जम्मू के हिंदुओं ने भाजपा को अपना चेहरा बचाने वाला एक मौका दिया, लेकिन उस हद तक नहीं, जिसकी भाजपा को उम्मीद थी। कांग्रेस जम्मू क्षेत्र में एनसी-कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत अधिक संख्या में दर्ज कर सकती थी परन्तु इसमें उनसे चूक हो गयी।