यदि कांग्रेस हरियाणा में जीत जाती तो कांग्रेस के पुनरुत्थान की कहानी को बढ़ावा मिलता। हालांकि, कांग्रेस ने हाल ही में आंतरिक संघर्षों के कारण यह पांचवां विधानसभा चुनाव गंवा दिया। इसके पहले वह पंजाब, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार चुकी थी। अब यह अनिश्चित है कि इंडिया गठबंधन में उसकी साझेदार राजनीतिक पार्टियां भाजपा के खिलाफ लड़ाई में उसके साथ एकजुट होंगे या नहीं।

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस के लिए आप के साथ गठबंधन जीत के लिए फायदेमंद होता या नहीं, इस पर बहस हो रही है। दूसरे, हार का असर महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले आगामी चुनावों पर पड़ेगा। हरियाणा के नतीजों का तत्काल असर दिल्ली, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे पर पड़ने की संभावना है। तीसरे, यह अनिश्चित है कि कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन होगा या नहीं। आप पहले ही कह चुकी है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी।

अपनी अनुकूलता और समझौते की वजह से 2024 के लोकसभा चुनावों में इंडिया ब्लॉक ने अच्छा प्रदर्शन किया। गठबंधन का मुख्य उद्देश्य भाजपा से आमने-सामने की लड़ाई करना था और भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित नहीं करना था। गठबंधन ने चिड़चिड़े मुद्दों को पीछे छोड़ दिया और इसके कारण चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहा। उन्होंने भाजपा को हराने के एकमात्र उद्देश्य से काम किया और कुछ हद तक इसमें सफल भी रहे। भाजपा का बहुमत कम हो गया और जेडी(यू) और टीडीपी की मदद से सरकार बनानी पड़ी।

हरियाणा की हार ने गठबंधन के भीतर की स्थिति को बदल दिया है, जिसके बाद इंडिया ब्लॉक की अन्य राजनीतिक पार्टियों को कांग्रेस पर बढ़त मिल गयी है। साझेदार शायद थोड़ी अधिक संयमित और समझ-बूझ से निर्णय करते हुए अब कांग्रेस के साथ काम करेंगे।

अभी तक किसी राजनीतिक पार्टी ने यह नहीं कहा है कि इंडिया ब्लॉक खत्म हो गया है। इसके विपरीत, हार के एक दिन बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के बयान से संकेत मिलता है कि कांग्रेस के साथ सपा का गठबंधन जारी रहेगा। अखिलेश ने कहा, "मैं कहना चाहता हूं कि इंडिया ब्लॉक बना रहेगा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-सपा का गठबंधन बरकरार रहेगा।"

आम आदमी पार्टी ने कहा है कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ेगी, जबकि उसने तीन महीने पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। कांग्रेस तथा आप को कोई सीट नहीं मिली थी। अन्य सहयोगियों ने कांग्रेस की अति आत्मविश्वास और सीट बंटवारे के प्रति उसके कठोर रवैये की आलोचना की।

लोकसभा चुनाव में अपनी संख्या दोगुनी करने वाली कांग्रेस हरियाणा में मिली करारी हार के बाद कमजोर पड़ गयी है। अधिकांश एग्जिट पोल ने हरियाणा में कांग्रेस की आश्चर्यजनक जीत का संकेत दिया क्योंकि भाजपा को 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा और असंतुष्ट लोगों के एक वर्ग से निपटना पड़ा। हालांकि, भाजपा ने सबको चौंका दिया और हरियाणा में अपनी सबसे प्रभावशाली जीत दर्ज की। इस ग्रामीण राज्य में किसी भी पार्टी को कभी भी तीसरे कार्यकाल के लिए जीत हासिल नहीं हुई थी।

महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच सीटों के बंटवारे पर चर्चा चल रही है। कांग्रेस को सीट बंटवारे के फॉर्मूले और चुनाव से पहले ही ठाकरे को सीएम के चेहरे के रूप में पेश करने की शिवसेना की मांग पर अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है।

आप ने हरियाणा चुनाव में कोई सीट नहीं जीती, लेकिन उसे लगभग 1.78% वोट मिले। अगर कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन किया होता तो निस्संदेह यह इंडिया ब्लॉक की झोली में जुड़ जाता। शिवसेना नेता संजय राऊत के अनुसार, कांग्रेस ने छोटी पार्टियों और उनके सहयोग के प्रस्तावों को नजरअंदाज कर दिया।

तृणमूल कांग्रेस, आप, शिवसेना (उद्धव), नेशनल कॉन्फ्रेंस, आरजेडी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और अन्य पर्टियों के नेताओं ने हरियाणा चुनाव में गड़बड़ी के लिए कांग्रेस की आलोचना की। शिवसेना के मुखपत्र सामना में बुधवार को संपादकीय में कहा गया, "किसी ने नहीं सोचा था कि हरियाणा में भाजपा की सरकार फिर बनेगी। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के अति आत्मविश्वास और स्थानीय कांग्रेस नेताओं के अहंकार के कारण पार्टी की हार हुई।"

लोकसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे के लिए अपनाये गये फॉर्मूले को दोहराना महत्वपूर्ण है, कम से कम महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में तो यही होगा। कमजोर कांग्रेस अपने अधिकांश सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे में बढ़त नहीं बना पायेगी।

गठबंधन में मौजूदा मूड का असर कांग्रेस के अपने सहयोगियों के साथ संबंधों पर पड़ना चाहिए। विपक्ष शायद और झटके न झेल पाये।

कांग्रेस को भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में लोक सभा की 286 सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 2024 के चुनावों ने साबित कर दिया कि भाजपा के खिलाफ कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 2019 के 8% से बढ़कर 29% हो गया है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने भाजपा के साथ 286 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो 2014 में 370 से कम है।

कांग्रेस 2004 और 2009 में अपने सहयोगियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों के कारण सत्ता में आयी थी। इंडिया गठबंधन को बनाये रखने की जिम्मेदारी मोटे तौर पर कांग्रेस पर है। उसे यह समझना चाहिए कि हर साथी, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, जरूरी है। कांग्रेस ने आत्ममंथन किया है। पंचमढ़ी और शिमला इसके अच्छे उदाहरण हैं। अब एक और ऐसे सत्र का समय आ गया है। (संवाद)