केरल उच्च न्यायालय ने 4 अक्तूबर, 2024 को अपने पहले आदेश में केंद्र सरकार से जवाब देने को कहा कि 30 जुलाई, 2024 को वायनाड में हुए भूस्खलन के पीड़ितों को राहत प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (एनडीआरएफ) और प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) से कोई राशि क्यों नहीं जारी की गयी है।

एमिकस क्यूरी रंजीत थम्पन द्वारा अदालत में कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय अधिकारियों की एक टीम ने आपदाग्रस्त वायनाड क्षेत्रों का दौरा किया था। राज्य सरकार ने राहत की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। हालांकि, आपदा के 78 दिन बाद भी केंद्र सरकार ने अपना खजाना नहीं खोला है।

10 अक्तूबर को अपने दूसरे आदेश में, केरल उच्च न्यायालय ने फिर से केंद्र सरकार को वायनाड के लिए एनडीआरएफ और पीएमएनआरएफ से धन उपलब्ध कराने पर सकारात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। यह टिप्पणी तब की गयी जब 30 जुलाई को भूस्खलन के मद्देनजर प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम और प्रबंधन से संबंधित एक स्वप्रेरणा याचिका सुनवाई के लिए आयी। पीठ ने केंद्र सरकार को 18 अक्तूबर तक इस मुद्दे पर जवाब देने का निर्देश दिया था।

अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए.आर.एल. सुंदरसन से कहा कि वह अपने अच्छे पदों का उपयोग करें और बैंक ऋण माफी सहित इस मुद्दे पर केंद्र से सकारात्मक सहयोग प्राप्त करें। अदालत ने कहा, "हमें जल्द से जल्द वायनाड को फिर से पटरी पर लाने की जरूरत है।"

अदालत ने भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास और पुनर्निर्माण कदमों की रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का आदेश देने से भी इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने मीडिया से पुनर्वास और पुनर्निर्माण उपायों पर समाचार रिपोर्ट करते समय सावधानी बरतने को कहा। अदालत की यह टिप्पणी तब आयी जब केरल में एलडीएफ सरकार के प्रति शत्रुतापूर्ण मीडिया के एक वर्ग ने एनडीआरएफ से तत्काल सहायता की मांग करते हुए सरकार द्वारा प्रस्तुत अनुमानित खर्चों का विवरण देने वाले ज्ञापन पर झूठी खबर प्रकाशित की। न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के संबंध में स्थापित कानून के मद्देनजर, संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।

इसके बाद केरल विधानसभा की बारी थी कि वह सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार से वायनाड के लिए अनिवार्य सहायता जारी करने का आग्रह करे। प्रस्ताव में पीड़ितों द्वारा लिये गये ऋणों को माफ करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया। विधानसभा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को ऋण माफ करने के लिए राजी करने के लिए तत्काल केंद्रीय हस्तक्षेप की मांग की।

इस मुद्दे पर एकमात्र केंद्रीय प्रतिक्रिया - अगर इसे कहा जा सकता है - केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से आयी, जिन्होंने धन जारी करने में वायनाड के खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव से इनकार किया - जो कि पूरी तरह से अविश्वसनीय इनकार था। वित्त मंत्री वायनाड का सहायता करने से इनकार करने संबंधी बयान दुःखद है।

तथ्य जो कहानी बयां करते हैं वह यह कि न केवल भेदभाव बल्कि खुले तौर पर यह एक राजनीतिक दुश्मनी की एक निरंतर कहानी है, बल्कि यह भेदभाव उस गति के बिल्कुल विपरीत है, जिस गति से केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश की सहायता की, जहां केंद्र में भाजपा की सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) का शासन है, और त्रिपुरा, जहां भाजपा की सरकार है। आंध्र के मामले में, भारी बारिश के कारण आयी बाढ़ में केवल 34 लोग मारे गये थे। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क्षेत्र का दौरा किया और राज्य सरकार द्वारा ज्ञापन प्रस्तुत करने की प्रतीक्षा किये बिना ही हवाई अड्डे पर ही 3448 करोड़ रुपये की सहायता की घोषणा कर दी!

जहां तक केरल का सवाल है, प्रधानमंत्री ने राज्य से कहा कि वह केरल के लिए कम से कम अंतरिम राहत की घोषणा करने के बजाय धन की मांगों का विवरण देते हुए ज्ञापन प्रस्तुत करे, जैसा कि ऐसे अवसरों पर किया जाता है! यह इस तथ्य के बावजूद है कि केरल के मामले में तबाही आंध्र और त्रिपुरा की तुलना में कहीं अधिक गंभीर थी। वायनाड में 400 से अधिक लोगों की जानें चली गई थीं। लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार ने राज्य को कोई आर्थिक सहायता की घोषणा नहीं की।

इसके विपरीत फिर से बारिश से प्रभावित त्रिपुरा के मामले में, केंद्र सरकार ने तुरंत 40 करोड़ रुपये की घोषणा की। अगर यह भेदभाव नहीं है, तो क्या है? केरल के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम केंद्रीय मंत्री अमित शाह और भूपेंद्र यादव द्वारा दिये गये दुर्भाग्यपूर्ण और टाले जाने योग्य बयानों ने किया। इन बयानों ने केरल की चिंताओं के प्रति उदासीनता की व्यापक रूप से प्रचलित धारणा को और मजबूत किया। (संवाद)