यहां नयी दिल्ली में पिछले दिनों सम्पन्न कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन में राहुल गांधी ने जो कुछ भी कहा उसके लेकर तरह - तरह की बातें की जा रही हैं। कुछ ने तो उनकी घोर निंदा की और कुछ ने भूरि - भूरि प्रशंसा की। इनमें से अधिकांश किसी न किसी पक्ष या विपक्ष खेमें से हैं। कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं और जनता पर ऐसी प्रशंसा या निंदा का कोई खास असर नहीं होता। फिर भी राहुल गांधी के हर बयान पर और हर कार्य पर गौर फरमाना जनता की विवशता है।
इसलिए सीधे राहुल गांधी की चर्चा की जाये। यह जानने के लिए कि उन्होंने तालकटोरा स्टेडियम में एक जो महत्वपूर्ण बात कही उसका मतलब क्या है। उनकी नीयत कितनी साफ है और जो सुधार करने की बात उन्होंने कही उसे लागू करने या करवाने में वह कितने समर्थ हैं। आखिर वह नौजवान नेता हैं, और हर नौजवान को उसके कैरियर में लोकतांत्रित पद्धति के दायरे में रहकर आगे बढ़ने का हक भी है।
उनका यह विचार गौर फरमाने लायक है कि संगठन के अंदर कार्यनिष्पादन के आधार पर तरक्की हो ताकि युवा वर्क आकर्षित हों। बात तो पते की है। वह कांग्रेस के अंदर की बात कर रहे हैं, लेकिन यदि यही मानदंड देश में अन्य सभी क्षेत्रों में लागू हो जाये तो कहना ही क्या। सोने पर सुहागा हो जायेगा।
यदि उनकी नीयत साफ है तो हम भी उनके साथ होंगे। लेकिन पहले उन्हें यह साबित करना होगा कि वह जो कह रहे हैं उसे करना भी चाहते हैं। अन्यथा हम ऐसी भाषा तो उनकी ही पार्टी के अन्य ठग दिग्गज नेताओं से सुनते आये हैं। कथनी और करनी में बड़ा फर्क रहा है।
उनकी नीयत की चर्चा करने से पहले उनकी प्रशंसा में एक दो बातें कहनी ही चाहिए। उन्होंने कार्यनिष्पादन के आधार पर तरक्की की बात कांग्रेस पार्टी में लागू करने की बात कर यह साबित कर दिया है कि उन्हें पता है कि पार्टी किस बीमारी से ग्रस्त है। उन्होंने सही नब्ज पकड़ ली है। अब इलाज का सवाल है।
प्रकारान्तर से उन्होंने कह दिया कि कांग्रेस पार्टी में कार्यनिष्पादन के आधार पर तरक्की नहीं हो रही है। अर्थात जो काम नहीं कर रहे हैं या कम काम कर रहे हैं उनकी तरक्की ज्यादा हो रही है। आम जनता की भाषा में कहें तो कांग्रेस में निकम्मे परन्तु काम करने का दिखावा ज्यादा करने वालों तथा चापलूसी करने वालों की ही तरक्की विशेष तौर पर हो रही है। बात तो उन्होंने पते की कही है। यही एक घुन है जो कांग्रेस को जर्जर बना चुकी है।
यही कारण है कि आज शायद ही देश में कोई कांग्रेस का नेता और कार्यकर्ता ऐसा होगा जिसे विश्वास होगा कि वह जितना काम करेगा, कांग्रेस संगठन में उनकी उतनी ही तरक्की होगी। इसके विपरीत वे जानते हैं कि चापलूसी करने पर वे प्रधान मंत्री तक की कुर्सी पर बैठ सकते हैं। संगठन के मामले में फिसड्डी ऐसे नेता भी रहे हैं जिन्हें न तो संगठन में किसी भी लोकतांत्रित चुनाव में जीत मिल सकती है और न ही जनता उन्हें निर्वाचित कर संसद में भेज सकती है। ऐसे नेताओं की हिम्मत नहीं कि वे जनता के बीच या संगठन के अन्दर निर्वाचन प्रक्रिया में जायें। पर वे प्रधान मंत्री बन सकते हैं, सिर्फ एक व्यक्ति को खुश रखकर।
इसलिए सवाल उठता है कि कांग्रेस का कोई भी कार्यकर्ता या नेता क्यों जनता के बीच काम करे और धक्के खाये? पार्टी के अंदर इस भावना को राहुल गांधी ने सही पकड़ा और उन्हें एक तरह से आश्वासन भी दिया की कार्यनिष्पादन के आधार पर तरक्की होगी।
सवाल उठता है कि क्या वे ऐसा कर पायेंगे? लक्षणों से तो लगता है कि ऐसा करने की सामर्थ्य उनमें नहीं। क्योंकि कांग्रेस को साफ करने के लिए उन्हें सर्वोच्च् स्तर से ही सफाई अभियान लागू करना होगा। कार्यनिष्पादन के आधार पर तरक्की और चापलूसी की कोई जगह नहीं देने के लिए स्वयं उनको बड़ा त्याग करना होगा।
वैसे कांग्रेस में यह रोग कोई नया नहीं है। स्वयं राहुल गांधी जी अपने पिता राजीव गांधी के बारे में सोच लें तो उनको पता चल जायेगा कि उन्हें कांग्रेस में कार्यनिष्पादन के आधार पर प्रधान मंत्री नहीं बनाया गया था। स्वयं उनकी माता सोनिया गांधी को देखें तो साफ हो जायेगा कि वह कार्यनिष्पादन के आधार पर कांग्रेस की अध्यक्ष नहीं बनी थीं। स्वयं अपने में झांकें तो उन्हें सहज ही मालूम चलेगा कि वह कार्यनिष्पादन के आधार पर महासचिव नहीं बने हैं। अपनी मां के मनोनीत प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को देखें तो उन्हें पता चल जायेगा कि वह भी कांग्रेस में कार्यनिष्पादन के आधार पर प्रधान मंत्री नहीं बने।
जनता उन्हें शक के दायरे में रखेगी क्योंकि जानकी बल्लभ शास्त्री ने काफी समय पहले ही सुझा दिया है कि
कुपथ - कुपथ रथ दौड़ाता पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से धृति उपदेशक वह है।
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है शीन विनय परिभाषा,
मरण रक्त मुख से देता है जो जीवन की आशा।
जनता धरती पर बैठी है नभ में मंच खड़ा है
जो जितना है दूर मही से उतना ही बड़ा है।
आप बड़े लोग हैं। स्वयं प्रधान मंत्री तक आपकी चापलूसी में कहते हैं कि आप ही देश के भविष्य हैं। हम जानते हैं कि आप कितने महान और समझदार हैं। हम आपपर महानता थोप कर रहेंगे। फिर भी एक सवाल रह ही जायेगा कि आपपर महानता थोपने वालों को आप चापलूस समझते हैं या नहीं।
तालकटोरा स्टेडियम में जो हुए उससे तो लगता है कि आप स्वयं चापलूस पसंद हैं। अन्यथा आपने अपनी मां और मनमोहन सिंह की तरह अकेले फूल मालाएं कैसे स्वीकार कीं। आपको सोचना चाहिए था कि क्या कांग्रेस संगठन का अर्थ सिर्फ मां - बेटा और आपके विश्वस्त मनमोहन सिंह ही हैं? मंच पर किसी अन्य नेता का उस ढंग से स्वागत नहीं हुआ। जब कांग्रेस में कार्यनिष्पादन के आधार पर सम्मान तक नहीं मिलता तो उससे ज्यादा की उम्मीद आप कैसे दिला सकते हैं?
यदि कांग्रेस की बीमारी दूर करनी है तो गंगोत्री से ही सफाई अभियान शुरू करनी होगी। आप आखिर स्वयं कोई मानदंड स्थापित किये बिना लोगों का विश्वास कैसे जीत सकते हैं?आपको स्वयं साबित करना होगा कि आप चापलूस पसंद नहीं हैं, और बिना उचित कार्यनिष्पादन के मुफ्त में कुछ हासिल नहीं करते। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक आपकी गिनती भी जनता के बीच उन ठगों में होगी जो उन्हें बरगलाते रहे हैं। अपने लिए अलग नियम और दूसरे के लिए अलग नियम से आपकी छवि धूमिल ही होगी।
वैसे आप अपने चापलूसों पर भरोसा कर सकते हैं। यदि आप कर्मठ नहीं हैं तो वे आप पर कर्मठता थोप देंगे। यदि आप महान नहीं हैं तो भी आप पर महानता थोप दी जायेगी। आपको एक व्यक्ति, जिन्हें आपकी माता जी ने प्रधान मंत्री मनोनीत किया, तो आपको देश का भविष्य बता ही रहे हैं। आप चुप हैं।
लेकिन आपको एक बात ध्यान दिलायें कि कांग्रेस में निकम्मापन, दिखावा और चापलूसी का घून लगा हुआ है। इसके रहते न तो कांग्रेस का कोई भविष्य है और न ही आपका।
कांग्रेस में चापलूसी और निकम्मेपन का घुन
राहुल का नुस्खा और इलाज
नब्ज पकड़ी पर नीयत ठीक हो तो बात बने
ज्ञान पाठक - 2007-11-22 16:26
काग्रेस की बीमारी क्या है? संगठन में क्या - क्या परिवर्तन करने की आवश्यकता है? पार्टी को जीवंत कैसे बनाया जाये?... आदि - आदि। ऐसे सवाल नये नहीं हैं। नया है तो यह कि अब राहुल गांधी को मैदान में उतारा गया है और उन्होंने कुछ बातें भी कहीं, नुस्खा भी बताया। लेकिन...