फिर भी, मतदान के आंकड़े बताते हैं कि लड़ाई एकतरफा नहीं थी। बल्कि, यह एक कड़ा संघर्ष था। भाजपा को 45.56 प्रतिशत वोट मिले, जबकि आप को 43.57 प्रतिशत, यानी केवल 2 प्रतिशत का अंतर, हालांकि सीटों के मामले में भाजपा को 48 और आप को केवल 22 वोट मिले। इसके अलावा, इंडिया ब्लॉक की दोनों पार्टियों आप और कांग्रेस के वोटों को मिलाकर आप-कांग्रेस को लगभग 50 प्रतिशत वोट मिले और सीटों के मामले में, अगर गठबंधन होता तो इंडिया ब्लॉक के खाते में 14 और सीटें आतीं। इसका मतलब है कि अगर आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन होता तो इंडिया ब्लॉक कुल 70 सीटों में से 36 सीटें जीतकर मामूली जीत हासिल कर सकता था।
इसके अलावा, आप ने दलितों, गरीबों और मुसलमानों के अपने आधार को बरकरार रखा, जैसा कि निर्वाचन क्षेत्रवार मतदान पैटर्न के विश्लेषण से पता चलता है। यह फैसला मतदान के दिन आप से भाजपा की ओर बड़े पैमाने पर मध्यम वर्ग के झुकाव का नतीजा था, जबकि गरीब कमोबेश आप और कांग्रेस के साथ खड़े थे। तो, सबक यह है कि विधानसभा चुनाव से पहले आप और कांग्रेस दोनों ने गठबंधन के मुद्दे को ठीक से नहीं संभाला। उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले सीट बंटवारे पर कुछ समझ बना लेनी चाहिए थी, हरियाणा और महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सफलता को ध्यान में रखते हुए। चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए आप और कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी बात यह होगी कि वे जमीनी हालात का निष्पक्षता से आकलन करें और भाजपा से मुकाबला करने के लिए अगले दौर की तैयारी करें। आप ने हार मान ली है और अरविंद केजरीवाल ने जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर काम करने का वायदा किया है। जीवंत संसदीय प्रणाली में यही सबसे सही लोकतांत्रिक तरीका है।
अब हम उभरते राजनीतिक हालात पर नजर डालते हैं। अब तक आप दो राज्यों, दिल्ली और पंजाब में सत्ताधारी पार्टी थी। अब दिल्ली हार गयी है और सिर्फ पंजाब बचा है। भाजपा अब उत्तर भारत में पंजाब और पूर्वी हिस्से में बिहार पर सबसे ज्यादा ध्यान देगी, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। पंजाब में आप की सरकार थोड़ी अस्थिर रहेगी, क्योंकि दिल्ली और पंजाब के चुनावी पैटर्न में कुछ समानताएं हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आप के हाथों पंजाब में परास्त हुई कांग्रेस इस बार पंजाब में आप सरकार को चुनौती देने के लिए खुद को संगठित करने में सबसे अधिक सक्रिय होगी। भाजपा भी अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश करेगी और आप तथा कांग्रेस दोनों को चुनौती देने के लिए नये सहयोगियों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर सकती है। पंजाब के चुनावी मैदान में त्रिकोणीय मुकाबला होगा, जहां दिल्ली की तरह ही इंडिया ब्लॉक के दो सहयोगी दल एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे। लेकिन एक अंतर यह है कि भाजपा अभी पंजाब में कोई बड़ी ताकत नहीं है। आगामी विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी होंगे।
इंडिया ब्लॉत के लिए बिहार सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव है और साल के अंत में होने वाले चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को चुनौती देने के लिए राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ एक आदर्श चुनावी समझौता करने के लिए सभी प्रयास करने होंगे। इंडिया ब्लॉक को किसी भी कीमत पर यह चुनाव जीतना है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, कांग्रेस को भी सही तरीके से व्यवहार करना होगा क्योंकि पार्टी, अपने कम स्ट्राइक रेट के बावजूद, हमेशा जमीन पर अपनी वास्तविक ताकत की तुलना में अधिक सीटों की मांग करती है। इस बार, राजद और कांग्रेस को बहुत पहले से चुनावी बातचीत शुरू कर देनी चाहिए और उस पर काम करना चाहिए। बिहार में बड़े मजदूर वर्ग के तबके पर भाकपा (माले)-एल की मजबूत पकड़ के साथ, बिहार में इंडिया ब्लॉक पार्टियों का एक मजबूत गठबंधन संभव है, जिसमें राजद, कांग्रेस और तीन वामपंथी दल भाकपा, माकपा और भाकपा (माले)-एल शामिल हैं। भाकपा (माले)-एल ने 2020 के विधानसभा चुनावों में 19 सीटों पर लड़कर 12 सीटें हासिल कीं और सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट दर्ज किया। पार्टी 2025 के विधानसभा चुनावों में अधिक सीटों की हकदार है। राजद को यह सुनिश्चित करना होगा। बिहार विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक की सफलता हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में सफलता के बाद बुलंदियों पर पहुंची भाजपा की ताकत झटका देने के लिए आवश्यक होगी।
भाजपा के लिए नया साल 2025 महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनावों में मिली सफलता और उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को पूरी तरह से पछाड़ने के बाद सत्ताधारी पार्टी के आत्मविश्वास की बहाली की पृष्ठभूमि में शुरू हुआ था। अब साल के दूसरे महीने फरवरी में दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत और उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी से 62,000 वोटों के भारी अंतर से छीनने के बाद यह आत्मविश्वास और बढ़ गया है। भाजपा के पार्टी नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद छह से आठ महीने की छोटी अवधि में बदलाव की अपनी क्षमता दिखायी है, जिसके नतीजे 4 जून, 2024 को घोषित किये गये थे। चुनावों में जीत और हार सामान्य बात है। हर गठबंधन को पिछली पराजय से उचित सबक लेना होगा, हार के कारणों की पहचान करनी होगी और फिर उपचारात्मक उपाय करने होंगे। भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पार्टी में सुधार के मुद्दे को गंभीरता से लिया, जब इसकी ताकत 2019 के 303 के आंकड़े से घटकर 240 हो गयी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी एनडीए सरकार के गठन के बाद पैदा हुई अनिश्चितता, जिसमें अल्पमत भाजपा ने जेडी(यू) और टीडीपी जैसे अन्य दलों की मदद ली, अब दूर हो गयी है। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के सहयोगियों को दिखाया है कि भाजपा नियंत्रण में है और आने वाले समय में राजनीतिक रूप से चीजें उनके लिए बेहतर होगी।
जहां एक ओर भाजपा अपनी राजनीतिक और चुनावी रणनीति को लगातार अपडेट करके इंडिया ब्लॉक को हराने के लिए सतर्क और चुस्त है, वहीं इंडिया ब्लॉक पार्टियों में एक तरह की नींद है। नेतृत्व निष्क्रिय है। लोकसभा चुनाव के बाद से इंडिया ब्लॉक नेताओं की कोई पूर्ण बैठक नहीं हुई है। कांग्रेस इंडिया ब्लॉक की नेता है। इंडिया ब्लॉक में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते, पार्टी को नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा से उभरने वाली चुनौतियों के नये रूपों का सामना करने के लिए अपने सहयोगियों से लगातार परामर्श करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। संसद के सत्रों के दौरान केवल समन्वय ही पर्याप्त नहीं है। चूंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव अब समाप्त हो चुके हैं और अगले विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने हैं, इसलिए यह सही समय है कि इंडिया ब्लॉक की पार्टियाँ मिलें और नवीनतम राजनीतिक स्थिति की विस्तृत समीक्षा करें और अपनी रणनीति को अपडेट करें।
इंडिया ब्लॉक को 2025 में एक नये नेतृत्व के तहत तेजी से आगे बढ़ना है। यह एकल या दोहरा नेतृत्व हो सकता है। इंडिया ब्लॉक के संयोजक के रूप में सबसे अच्छे राजनीतिक नेता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। संयुक्त नेतृत्व भी हो सकता है। वास्तव में वह बेहतर होगा। उसके बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन दूसरे नंबर पर हो सकते हैं। ममता ने खुद को एक आक्रामक राजनीतिक नेता के रूप में स्थापित किया है जो भाजपा से मुकाबला कर सकती है। केवल पश्चिम बंगाल में, लोकसभा चुनावों के बाद दस निर्वाचन क्षेत्रों में हुए विधानसभा उपचुनावों में, तृणमूल कांग्रेस ने सभी दस सीटों पर जीत हासिल की, यहाँ तक कि भाजपा को उसकी दो मौजूदा सीटों पर भी हराया। 2025 में ममता राजनीतिक रूप से सहज हैं। वे इंडिया ब्लॉक समन्वय और इसके कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय दे सकती हैं। इसी तरह एम के स्टालिन इंडिया ब्लॉक में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए एकदम सही उम्मीदवार हैं। वे तमिलनाडु में इंडिया ब्लॉक पार्टियों की एक आदर्श गठबंधन सरकार चला रहे हैं। उन्हें ममता की तरह 2026 में ही विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ेगा। वे वाईएसआरसीपी और बीजेडी जैसी अन्य गैर-गठबंधन पार्टियों के साथ राजनीतिक रूप से सहज और मैत्रीपूर्ण हैं। इंडिया ब्लॉक पार्टियों के बीच उनकी स्वीकार्यता पर कोई सवाल नहीं है। ममता और स्टालिन दोनों ही इंडिया ब्लॉक के संचालन में नयी जान फूंकने के लिए अब सबसे उपयुक्त हैं।
विधानसभा चुनावों और उपचुनावों ने इंडिया ब्लॉक पार्टियों में नये और पुराने दोनों ही चेहरे सामने लाये हैं जो बीजेपी के खिलाफ संघर्ष की गति को तेज करने के लिए ब्लॉक के लिए बदलाव के वाहक के रूप में काम कर सकते हैं। केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र में हुए हालिया उपचुनाव में लोकसभा में प्रवेश करने वाली प्रियंका गांधी विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ आगामी लड़ाई में इंडिया ब्लॉक के लिए एक बड़ी संपत्ति हो सकती हैं। प्रियंका हमेशा सही मुद्दों को आगे बढ़ाती रही हैं। वह लंबे समय से महिलाओं के मुद्दों, जिसमें नकद हस्तांतरण भी शामिल है, की वकालत करती रही हैं। वह केंद्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक की प्रमुख नेताओं में से एक हो सकती हैं, क्योंकि भाजपा ने महिलाओं के मुद्दों पर बड़ा ध्यान दिया है और इंडिया ब्लॉक को इसका उचित तरीके से मुकाबला करना होगा।
दो अन्य नेता हैं जिन्होंने पिछले दौर के चुनावों और राजनीतिक अभियान में अपनी योग्यता साबित की है। वे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सीपीआई (एमएल)-लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य हैं। हेमंत ने विधानसभा चुनावों में झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में भाजपा को हराकर अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है। यह एक बड़ा काम था क्योंकि भाजपा और आरएसएस ने आदिवासी सीटों पर नियंत्रण करने के लिए एक बड़ा राजनीतिक हमला किया था। वह देश में आदिवासियों के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे हैं।
इसी तरह, दीपांकर भट्टाचार्य ने बिहार में लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा उपचुनावों में सीपीआई (एमएल)-एल की बड़ी जीत का आयोजन करके अपनी योग्यता साबित की है। उनके नेतृत्व ने बिहार और झारखंड दोनों में भाजपा की चुनौती का सामना करने में इंडिया ब्लॉक की मदद की है। इस सीपीआई (एमएल)-एल नेता का इस्तेमाल इंडिया ब्लॉक द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा से मुकाबला करने के लिए प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
अब समय आ गया है कि इंडिया ब्लॉक की पार्टियां बैठक बुलायें और नेतृत्व की नयी लाइन तय करें। राहुल गांधी विपक्ष के नेता बने रहेंगे और कांग्रेस हमेशा इंडिया ब्लॉक का सबसे बड़ा घटक बनी रहेगी। प्रधानमंत्री पद के चेहरे का मुद्दा अब बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं है। अगला लोकसभा चुनाव 2029 में है। जमीनी हालात को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर लोकसभा चुनाव से पहले या बाद में चर्चा की जा सकती है। अंतरिम अवधि में, कई राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने होंगे। इसके लिए इंडिया ब्लॉक के पास एक सुसंगत रणनीति होनी चाहिए। भाजपा के खिलाफ लड़ाई संसद और बाहर सभी मोर्चों पर लड़ी जानी चाहिए। राहुल संसद के अंदर इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व कर सकते हैं, जबकि ममता-स्टालिन की जोड़ी को 2025 और उसके बाद इंडिया ब्लॉक के संचालन में गतिशीलता लाने का काम सौंपा जाना चाहिए। (संवाद)
दिल्ली में आप की हार से इंडिया ब्लॉक को सबक लेते हुए आगे देखना होगा
भाजपा से मुकाबला के लिए ब्लॉक नेतृत्व और कार्यप्रणाली में बदलाव जरुरी
नित्य चक्रवर्ती - 2025-02-11 11:41
दिल्ली विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) की हार और भाजपा की जीत निश्चित रूप से विपक्षी इंडिया ब्लॉक के लिए झटका है, लेकिन इसका मतलब आप का अंत या इंडिया ब्लॉक के लिए अंतिम झटका नहीं है, जैसा कि राष्ट्रीय मीडिया और टीवी चैनलों के कुछ टिप्पणीकार इसे पेश कर रहे हैं। जिन लोगों ने दिल्ली के मतदाताओं के मूड का अध्ययन किया है, वे पहले से ही जानते थे कि 2025 के चुनावों में, भाजपा को हराकर सत्ता बरकरार रखना आप के लिए बहुत कठिन होगा, क्योंकि दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी के दो कार्यकाल पूरे होने के बाद सत्ता विरोधी लहर थी। अंतिम निर्णायक बात यह रही कि मतदान से चार दिन पहले 1 फरवरी को घोषित 2025-26 के केंद्रीय बजट में आयकर में बड़ी छूट दी गयी और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की गयी। भाजपा के पक्ष में जनादेश दिल्ली के वेतनभोगी मध्यम वर्ग द्वारा लाया गया, जो दिल्ली के 1.56 करोड़ मतदाताओं में से अधिकांश हैं। उन्हें सीधे नकद लाभ मिला। निश्चित रूप से इसका कुछ दिनों बाद मतदान के दिन तत्काल प्रभाव पड़ा।