एक समय सानिया को सिर आंखों पर बिठाने वाला मीडिया आज सायना का गुणगान करने में लगा है। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 31 वां रैंकिंग प्राप्त कर काफी प्रसिद्धी पाई। वह 2005 के दशक की सबसे प्रसिद्ध महिला खिलाड़ी थी। सानिया को टेनिस सनसनी के खिताब से नवाजा गया।
उन्होंने नाम के साथ-साथ काफी पैसा भी कमाया। दूसरी तरफ सायना नेहवाल हाल तक एक गुमनाम ‘ाख्सियत थीं। कुछ समय पहले जब उनकी अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग 7 थी तब भी उन्हें सानिया जितना महत्व नहीं दिया गया। लेकिन अब जब उनकी रैंकिंग 3 हो गयी है तब उन्हें देश का कोहिनूर कहा जाने लगा है।
आखिर क्या कारण है कि दोनों ही हैदराबादी बालाओं में से एक को देश की शान कहा गया तो दूसरे की प्रतिभा को नजरअंदाज किया गया। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि भारत में टेनिस बैडमिंटन की तुलना में अधिक प्रसिद्ध रहा है। अगर हम प्रकाश पादुकोणए पुलेला गोपीचंद के ऑल इंग्लैंड टूर्नामेंट की सफलताओं को छोड़ दें तो भारत को कभी भी इस खेल में महत्व नहीं दिया गया। महिला बैंडमिटन खिलाड़ियों के लिए तो यही कहा जाता रहा है कि वे सिर्फ खानापूर्ति के लिए खेलती हैं। लेकिन अगर हम महिला टेनिस और बैंडमिंटन के संदर्भ में देखें तो टेनिस काफी ग्लैमरस खेल माना जाता है। सानिया वैसे भी कम कपड़ों की वजह से हमेशा चर्चा में रहीं। वह सुंदरता के मामले में भी किसी फिल्मी अभिनेत्री से कम नहीं थीं। इसलिए विज्ञापन कंपनियां भी उनकी ओर आकर्षित हुई। धीरे.धीरे वह विज्ञापनों में तो छा गईं लेकिन उनके खेल में गिरावट आती गयी। कभी चोटिल होने की वजह से उनका प्रदर्शन खराब हुआ तो कभी उनके पास खेल से पहले नेट प्रैक्टिस के लिए समय नहीं था। और अब निकाह के बाद उनके पास खेलने के लिए समय नहीं है। वैसे भी पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी होने की वजह से देश का एक वर्ग उन्हें नापसंद करने लगा है। इस तरह सानिया टेनिस को अब लगभग अलविदा कह चुकी हैं। इसका फायदा सायना को मिला। अब जब मीडिया के पास सानिया जैसी सनसनी नहीं है तो उन्हें अपना ध्यान सायना पर केन्द्रित करना पड़ा।
सायना सानिया की तरह ग्लैमरस तो नहीं हैं लेकिन उन्होंने पिछले सात साल की अपनी उपलब्धियों से यह साबित कर दिया है कि सानिया मिर्जा की तरह वह किसी धूमकेतु की तरह नहीं है जो कुछ समय के लिए अपना जलवा दिखाकर गायब हो जाएगा। वैसे भी सायना ग्लैमर से हमेशा दूर रही हैं लेकिन अब चूंकि सफलता उनके कदम चूम रही है तो विज्ञापन कंपनियां भी इसका फायदा उठाना चाहेंगी और उनकी ओर आकर्षित हो सकती हैं। अब देखना यह है कि बैडमिंटन को ही अपना लक्ष्य मान चुकी सायना अब विज्ञापन और ग्लैमर से कितने दिनों तक दूर रह पाती हैं। अभी सायना मात्र 21 साल की हैं इसलिए वह ग्लैमर के प्रति भी आकर्षित हो सकती हैं। अगर उन्होंने भी सानिया की तरह ग्लैमर को महत्व देना शुरू कर दिया तो उन्हें
अपनी रैंकिंग को बरकरार रखने में दिक्कत आ सकती है। इसलिए यह समय सायना के लिए काफी चुनौती भरा है क्योंकि सफलता पाना जितना मुश्किल होता है उससे भी मुश्किल होता है सफलता को बनाए रखना।
सायना अभी विश्व की तीन नंबर की महिला शटलर हैं। उनके आगे चीन और ताइवान की दो महिलाएं हैं। इस शटलर पर देश की निगाहें लगी हैं। सायना का दावा है कि जल्दी ही वह नंबर वन बन जाएंगी। उनका यह सपना भी पूरा हो सकता है। सानिया मिर्जा की उपलब्धियों और करियर के उतार-चढ़ाव से सबक लेते हुए न सिर्फ वह अपनी रैंकिंग को बरकरार रख सकती हैं बल्कि नंबर एक का स्थान भी पा सकती हैं।
इंडोनेशियन ओपन जीतने के बाद सायना नेहवाल की ब्रांड वैल्यू में भी जबर्दस्त उछाल आया है। इंडोनेशियन ओपन से पहले सायना की ब्रांड वैल्यू 6 से 10 लाख रुपए थी जो अब बढ़कर 30 लाख रुपए हो गई है। अगर सायना बैडमिंटन की विश्व रैंकिंग में नंबर एक स्थान हासिल कर लेती हैं तो उनकी ब्रांड वैल्यू एक करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। जबकि शोएब मलिक से निकाह के बाद सानिया मिर्जा की ब्रांड वैल्यू में जबर्दस्त गिरावट आयी है और अभी उनकी ब्रांड वैल्यू 15 लाख रुपए के आसपास है।
17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में जन्मी सायना नेहवाल का अधिकांश समय हैदराबाद में बिता है। सायना के पिता डाण् हरवीर सिंह तिलहन अनुसंधान निदेशालय हैदराबाद में वैज्ञानिक हैं और माता उषा नेहवाल हरियाणा की पूर्व बैडमिंटन चैंपियन रह चुकी हैं। इसलिए सायना की इस खेल के प्रति दिलचस्पी स्वभाविक थी। आठ वर्ष की उम्र में सायना नेहवाल के पिता सायना को बैडमिंटन कोच नानी प्रसाद के पास लाल बहादुर स्टेडियम ले गए जहां सायना की प्रतिभा देख नानी प्रसाद ने सायना नेहवाल को अपनी संरक्षण में ले लिया। शुरुआती दिनों में ही सायना को बैडमिंटन में इतनी दिलचस्पी थी कि वह सुबह चार बजे उठकर 25 किलोमीटर दूर बैडमिंटन सीखने जाती थीं। सायना नेहवाल की इस खेल के प्रति रुचि देख उनके माता-पिता भी बहुत प्रभावित हुए और किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर उनकी कोचिंग पूरी करायी। 2002 में खेल ब्रांड योनेक्स ने सायना के किट को प्रायोजित किया। वर्ष 2004 में बीपीसीएल ने सायना को अपने पेरोल पर रखा और बाद में सन् 2005 में जब सायना की ख्याति बढ़ने लगी तो मित्तल चैंपियंस ट्रस्ट ने उनकी सभी सुविधाओं की जिम्मेदारी ले ली।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सायना नेहवाल की शुरुआत 2006 में हुई। उस वर्ष नेहवाल ने 4.स्टार खिताबए फिलीपींस ओपन जीता। 2006 में अपने अच्छे प्रदर्शन से सायना नेहवाल की गिनती विश्व की उभरती हुई प्रतिभाओं में होने लगी। सायना नेहवाल पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं जिसने ओलंपिक में बैडमिंटन के एकल मुकाबलों में क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया था और जिसने विश्व जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप में खिताब जीता था। 21 जून 2009 में सायना नेहवाल ने इतिहास रचते हुए सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीता था। इस टूर्नामेंट से पहले उन्होंने सिंगापुर में सिंगापुर ओपन और चेन्नई में इंडियन ओपन का खिताब जीता थे। सायना नेहवाल का 2010 वर्ष अब तक बहुत अच्छा बीता है। अभी तक उन्होंने दो विश्वस्तरीय प्रतियोगिता जीत विश्व रैकिंग में तीसरा पायदान हासिल कर लिया है। भारत की इस शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी ने अपना शानदार फार्म बरकरार रखते हुए 27 जून को जापान की सयाका सातो को मात देकर इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीतकर खिताबों की हैट्रिक लगा दी है। इसके अलावा वह मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन भी हैं। सायना नेहवाल के कोच अतीक जौहरी का मानना है कि सायना नेहवाल एक दिन विश्व की चोटी की खिलाड़ी होंगी। (फर्स्ट न्यूज)
भारत: खेल जगत
सानिया को पीछे छोड़ती सायना
सुशीला कुमारी - 2010-07-12 12:36
टेनिस जगत में धूमकेतु की तरह उभरी सानिया मिर्जा को भरपूर लोकप्रियता मिली। दर्शकों और मीडिया ने उन्हें सिर-माथे पर बिठाया लेकिन दूसरी तरफ बैंडमिंटन जगत की तेजी से उभरती खिलाड़ी सायना नेहवाल की काफी हद तक अनदेखी की गयी लेकिन वह अपनी खेल प्रतिभा के बल पर लोकप्रियता के मामले में सानिया मिर्जा को पीछे छोड़ रही है।