पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार रात को देशव्यापी संबोधन में भारत को चेतावनी दी कि वह अपने शहीदों के खून की एक-एक बूंद का बदला लेंगे। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और दो अन्य प्रमुखों को भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए अधिकृत किया गया। पाकिस्तान में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है, जैसा कि 22 अप्रैल को पहलगाम नरसंहार के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने स्थिति थी, जिसमें पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादियों ने 25 हिंदू पर्यटकों और एक स्थानीय मुस्लिम की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी थी। वहां राजनीतिक दलों समेत पूरा देश पाकिस्तान सरकार से भारत से बदला लेने का आह्वान कर रहा था।

प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में एक राजनीतिक बैठक में और बाद में सैन्य प्रमुखों के साथ कई बैठकों में अपनी टिप्पणियों के माध्यम से जवाबी कार्रवाई करने का अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त किया। आखिरकार वह जो कह रहे थे, उसके बाद पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर हमला करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

इसी तरह पाकिस्तान में भी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने का जबरदस्त दबाव है। इमरान खान की पीटीआई समेत सभी राजनीतिक दलों ने उनका समर्थन किया है। सुरक्षा बल अब सैन्य कार्रवाई शुरू करने की तैयारी में हैं। लेकिन जवाबी कार्रवाई का स्वरूप क्या होगा, यह पाकिस्तान के लिए बड़ी दुविधा बनी हुई है। क्या पाकिस्तान आर्थिक संकट और बलूचिस्तान तथा खैबर पख्तूनख्वा के एक हिस्से में गंभीर संकट की मौजूदा स्थिति में भारत में पूरी तरह सैन्य कार्रवाई कर सकता है?

भारतीय पक्ष लगातार कहता रहा है कि भारतीय वायुसेना ने उन नौ ठिकानों पर हमले किए, जहां समय-समय पर भारत पर हमले करने वाले आतंकवादी डेरा जमाये रहते हैं। इसका उद्देश्य केवल इन आतंकी शिविरों को नष्ट करना था। भारतीय वायुसेना ने किसी सैन्य स्थल पर हमला नहीं किया। पाकिस्तान इस बात से शायद ही इनकार कर सकता है। वैश्विक स्तर पर यह आम धारणा है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है, जिनमें से कई समय-समय पर भारत के खिलाफ काम करते हैं। पाकिस्तान यह दावा नहीं कर सकता कि भारत में आतंकी शिविर हैं, जहां वह हमला कर सकता है। इसलिए पाकिस्तान को अगर जवाबी कार्रवाई करनी है, तो उसे भारत में केवल सैन्य या नागरिक स्थलों पर ही हमला करना होगा। सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलाबारी में वृद्धि से पाकिस्तानी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वे भारत को भारी नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

पिछले दो दिनों में ही विद्रोही बलूच सेना ने पाक सैनिकों पर जवाबी हमला किया और 14 सैनिकों को मार गिराया। पाक सेना को बलूच क्षेत्र में और अफगान सीमा पर भी पर्याप्त सैनिक तैनात करने होंगे, जहां टीटीटीपी सैनिक सक्रिय हैं। काबुल में तालिबान सरकार पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध नहीं रखती। बल्कि हाल के दिनों में नई दिल्ली के साथ काबुल के संबंध काफी बेहतर हुए हैं। पाकिस्तान उम्मीद कर सकता है कि चीन भारत के साथ सीमा पर नई दिल्ली को शर्मिंदा करने के लिए कुछ तलवारें लहरायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है, जैसा कि चीनी विदेश नीति के मौजूदा रुझान बताते हैं। चीन संयुक्त राष्ट्र में और बयानों के माध्यम से पाकिस्तान को कुछ सहायता दे सकता है, लेकिन चीन भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी बड़े पैमाने पर टकराव में सीधे रूप से शामिल नहीं होना चाहेगा।

पहले से ही भारत और पाकिस्तान दोनों ही भारी दबाव में हैं, ताकि आगे कोई तनाव न बढ़े। अमेरिकी अधिकारी लगातार संपर्क में हैं। ईरान के रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान में बातचीत की। वे अभी नई दिल्ली में हैं। सऊदी अरब के मंत्री भी भारत और पाकिस्तान दोनों से बातचीत कर रहे हैं। अब उनके सामने चुनौती है कि वे पाकिस्तान को बड़ी जवाबी कार्रवाई करने से रोकें।

भारत के अनुसार, उसने अपनी सीमित कार्रवाई की है। जब तक पाकिस्तान बड़ी सैन्य कार्रवाई करके जवाबी कार्रवाई नहीं करता, तब तक यह आगे नहीं बढ़ेगा। इसलिए पूरी जिम्मेदारी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर है। उन्हें तय करना है कि वे पाकिस्तान में धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत अति राष्ट्रवाद के दबाव के आगे झुकेंगे या पाकिस्तान के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जवाबी कार्रवाई का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनायेंगे।

शहबाज को उनके बड़े भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सलाह दे रहे हैं, जो समझदार हैं। वह अपने छोटे भाई को सलाह दे रहे हैं कि वे जवाबी कार्रवाई करने से पहले सभी विकल्पों पर विचार कर लें। अगर सरकार जवाबी कार्रवाई करने और दक्षिण एशिया में एक और युद्ध को बढ़ावा देने से बचती है, तो पाकिस्तान को पश्चिम एशियाई देशों से सहायता में वृद्धि का आश्वासन मिल सकता है। इसी तरह अगर पूर्ण युद्ध होता है, तो आईएमएफ बेलआउट पैकेज अनिश्चित होगा। अगले 48 घंटे बतायेंगे कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और उनके सेना प्रमुख किस राह पर निर्णय लेते हैं? (संवाद)