भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 9 मई, 2025 को कहा था कि न्यायालय किसी भी राज्य को एनईपी अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। फिर भी, तीन-भाषा फार्मूले के कार्यान्वयन को लागू करने के लिए, केंद्र ने धन जारी करने पर रोक लगा दी है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के अधिकार के तहत प्रवेश में देरी हो रही है। अब, तमिलनाडु ने 2,151 करोड़ रुपये के शिक्षा कोष को रोक रखने के मामले में केंद्र के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है।

तमिलनाडु ने केंद्र सरकार पर एनईपी 2020 और पीएम श्री स्कूल योजना से केन्द्रीय आवंटन जारी करने को जोड़कर संघीय अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। राज्य द्वारा दायर मुकदमे में कहा गया है, "इस तरह की जबरदस्ती की रणनीति न तो कानूनी रूप से स्वीकार्य है और न ही राज्य के कानून के अनुरूप है, खासकर राज्य द्वारा अपनाये गये दो-भाषा फार्मूले के आलोक में।"

तमिलनाडु ने 2024-25 के लिए समग्र शिक्षा योजना (एसएसएस) के तहत शिक्षा कोष में 2151 करोड़ रुपये जारी करने की मांग की है, और साथ में मूल राशि पर 6 प्रतिशत ब्याज की भी। इस प्रकार मुकदमे का कुल दावा 2291.3 करोड़ रुपये है।

तमिलनाडु ने अपनी याचिका में कहा है कि एसएसएस के तहत केंद्र द्वारा अपने "अनिवार्य हिस्से" को रोके रखने से बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) का कार्यान्वयन बाधित हुआ है और राज्य में 43.94 लाख से अधिक छात्रों, 2.21 लाख शिक्षकों और 32,701 स्कूल कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुए हैं।

तमिलनाडु का कहना है कि भारत संघ के शिक्षा मंत्रालय के परियोजना अनुमोदन बोर्ड (पीएबी) ने फरवरी 2024 की बैठक में एसएसएस के तहत राज्य के लिए 3,585.99 करोड़ रुपये मंजूर किये थे, जिसमें से 2,151.59 करोड़ रुपये 60:40 लागत-साझाकरण फॉर्मूले के आधार पर केंद्र का हिस्सा था। फिर भी, केंद्र ने एक भी किस्त जारी नहीं की है। राज्य ने आरोप लगाया कि केंद्र ने ऐसा राज्य द्वारा एनईपी 2020 को पूरी तरह से अपनाने और पीएम श्री स्कूल योजना के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने के कारण किया है।

तमिलनाडु में दो भाषा नीति है - तमिल और अंग्रेजी। 1968 से ही यह लगातार हिंदी थोपने का विरोध करता रहा है, जब राज्य की विधानसभा में इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इतना ही नहीं, तमिलनाडु तमिल लर्निंग एक्ट 2006 में कक्षा 1 से 10 तक तमिल की शिक्षा अनिवार्य है। तमिलनाडु यूनिफॉर्म सिस्टम ऑफ स्कूल एजुकेशन एक्ट 2010 नामक एक और अधिनियम है।

फिर भी, केंद्र द्वारा एनईपी-2020 को लागू करने के लिए इन कानूनों को कमजोर किया जा रहा है, जो केवल एक नीति और विजन स्टेटमेंट है ... जिसमें राज्य पर बाध्यकारी कोई कार्यकारी या विधायी बल नहीं है।

तमिलनाडु द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों को समग्र शिक्षा योजना के तहत धन जारी किया है।

9 मई, 2025 को ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एनईपी 2020 को लागू करने के लिए तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल सरकारों को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि अदालत किसी भी राज्य को इसे अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। न्यायाधीश जे बी पारदीवाला और न्यायाधीश आर महादेवन की पीठ ने कहा कि वे तभी हस्तक्षेप करेंगे जब एनईपी 2020 से संबंधित किसी राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती हो। जनहित याचिका तमिलनाडु के एक वकील और भाजपा नेता ने दायर की थी।

कुछ दिन पहले ही 16 मई को तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार से एसएसएस के तहत 2151.59 करोड़ रुपये की लंबित बकाया राशि जारी करने का आग्रह किया था, जिसमें आरटीई प्रवेश के लिए 617 करोड़ रुपये भी शामिल थे।

राज्य में भाजपा की सहयोगी एआईएडीएमके पिछले दो वर्षों से निजी स्कूलों को आरटीई प्रतिपूर्ति निधि में देरी करने के लिए राज्य सरकार की आलोचना कर रही है, जिसके कारण इस शैक्षणिक वर्ष में आरटीई प्रवेश में देरी हुई है।

राज्य सरकार ने परियोजना अनुमोदन बोर्ड की बैठक के दौरान 2025-26 के लिए केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भी सौंपा है, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र द्वारा 2,733.58 करोड़ रुपये के परिव्यय को मंजूरी दी गयी, जिसमें केंद्र का हिस्सा 2151.59 करोड़ रुपये होगा। तमिलनाडु ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए पहली किस्त जारी करने के साथ-साथ वर्ष 2024-25 के लिए पूरी अनुमोदित धनराशि जारी करने का अनुरोध किया है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने 15 मई, 2025 को तमिलनाडु सरकार को निजी स्कूलों में बच्चों के नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के तहत प्रवेश शुरू करने में देरी को चुनौती देने वाली याचिका पर एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया था।

ध्यान रहे कि आरटीई अधिनियम 2009 के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए प्रवेश स्तर की 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करनी होती हैं और उन्हें नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करनी होती है।

मद्रास उच्च न्यायालय में दायर की गयी मरुमलार्ची मक्कल इयक्कम के अध्यक्ष वी ईश्वरन की याचिका में कहा गया है कि आरटीई प्रवेश प्रक्रिया आम तौर पर हर साल 20 मई तक समाप्त हो जाती है। तमिलनाडु के सभी स्कूल 2 जून को फिर से खुलने वाले हैं। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने कानून के अनुसार लाखों गरीब बच्चों के शैक्षिक अधिकारों को सुनिश्चित करने की अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। प्रवेश प्रक्रिया के संबंध में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।

तमिल नाडु के स्कूली शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोय्यामोड़ी ने कहा है कि केंद्र ने तमिलनाडु को शिक्षा के लिए रोके गये फंड को जारी करने पर अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। उन्होंने कहा, "केंद्र को आरटीई फंड जारी करना होगा। ... फंड जारी न करना मानवाधिकारों के खिलाफ काम करने जैसा है।" (संवाद)