पिछले बीस दिनों में, यानी 10 मई से, विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को अपना पूरा सहयोग दिया और यहां तक कि प्रधानमंत्री द्वारा भारत की स्थिति को समझाने के लिए विदेशों में भेजे गये बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों में भी भाग लिया। प्रधानमंत्री ने उस समय राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता की बात की थी और भारत की हर राजनीतिक पार्टी ने इसपर अनुकूल प्रतिक्रिया दी थी। परन्तु विपक्षी राजनीति पार्टियों के उस प्रशंसनीय सहयोग के बदले, भारत के 142 करोड़ लोगों के नेता प्रधानमंत्री ने पिछले दो हफ्तों में अपनी सार्वजनिक बैठकों का इस्तेमाल विपक्ष को बदनाम करने और ऑपरेशन सिंदूर को भाजपा के अन्य ऑपरेशन जैसे ऑपरेशन बंगाल के साथ जोड़ने के लिए किया।

जरा सोचिए, गुरुवार दोपहर पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में आयोजित जनसभा में, राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में रैली में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर की तरह ही टीएमसी सरकार को उखाड़कर बंगाल की खाड़ी में फेंकने के लिए ऑपरेशन बंगाल का आयोजन किया जायेगा। भाजपा प्रमुख को राजनीतिक रैली में टीएमसी सरकार को उखाड़ फेंकने की बात करने का पूरा अधिकार है, लेकिन वे ऑपरेशन सिंदूर को अखंड भारत के कार्यक्रम के साथ बंगाल में भाजपा के पक्षपातपूर्ण उद्देश्य के साथ मिला रहे थे। वह भी राष्ट्रीय एकता के तथाकथित प्रतीक नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में।

विपक्षी नेताओं को अब तक यह समझ आ गया होगा कि प्रधानमंत्री यह कहकर अपना राजनीतिक खेल खेल रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर रुका हुआ है और कभी भी यह फिर से शुरू हो सकता है। यह एक सैन्य रणनीति है और इसका ऐलान सार्वजनिक रैलियों में नहीं किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश में यह युद्धोन्माद जारी रहे ताकि बिहार में होने वाले आगामी चुनावों और उसके बाद बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी में होने वाले चुनावों में भाजपा को राजनीतिक लाभ मिल सके। हाल के दिनों में बिहार और गुजरात में जिस तरह से उनके रोड शो आयोजित किये गये हैं, उससे यह बात बिल्कुल साफ है।

ममता ने गुरुवार को प्रधानमंत्री की जनसभा के दो घंटे बाद उन्हें जवाब देते हुए सही कहा, "मोदीजी ने आज जो कहा, उससे हम न केवल स्तब्ध हैं, बल्कि प्रधानमंत्री की आवाज सुनकर बहुत दुखी भी हैं, जब सभी विपक्षी नेता दुनिया के सामने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वे देश के हित, राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिए साहसिक निर्णय ले रहे हैं। हम देश की रक्षा करेंगे, क्योंकि यह हमारी मातृभूमि है। लेकिन क्या यह समय है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मौजूदगी में उनके मंत्री कहें कि वे ऑपरेशन सिंदूर की तरह ऑपरेशन बंगाल भी करेंगे? मैं उन्हें चुनौती देती हूं। अगर उनमें हिम्मत है, तो कल चुनाव में उतरें, हम तैयार हैं और बंगाल आपकी चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार है।"

वरिष्ठ विपक्षी नेता द्वारा प्रधानमंत्री को इस तरह का जवाब देना जरूरी था, क्योंकि नरेंद्र मोदी भारत-पाक तनाव के मौजूदा दौर में इंडिया ब्लॉक के घटकों की विनम्रता का फायदा उठाते हुए विपक्ष के खिलाफ पूरी ताकत से काम कर रहे हैं। विपक्ष ने प्रधानमंत्री को काफी छूट दी है, लेकिन उन्होंने उसका सम्मान नहीं किया है। अब समय आ गया है कि विपक्ष सामान्य रूप से काम करना शुरू करे और संसद का विशेष सत्र बुलाकर स्थिति पर चर्चा करे तथा कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगे, जिनका अभी तक उत्तर नहीं मिला है।

जैसे ममता ने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि 22 अप्रैल को पहलगाम में नरसंहार करने वाले आतंकवादियों को अभी तक क्यों नहीं पकड़ा गया है? या प्रधानमंत्री ट्रंप और अन्य अमेरिकी अधिकारियों के लगातार इस दावे पर चुप क्यों हैं कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को व्यापार की धमकी देकर युद्ध विराम पर सहमति ली है। यह भारत के लिए अधिक था, क्योंकि 10 मई की सुबह भारत जीत रहा था। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वांस ने 9 मई को प्रधानमंत्री से क्या कहा? क्या उन्होंने ट्रंप द्वारा दी गयी धमकी को व्यक्त किया? अमेरिकी व्यापार विभाग ने भी अदालत में यही बात कही है। उनके पास अवश्य ही इसका रिकॉर्ड होगा। प्रधानमंत्री को अपना बयान जारी करके इसका स्पष्ट खंडन करना चाहिए। वे चुप क्यों हैं और दूसरों को बोलने क्यों दे रहे हैं? ये मुद्दे अब सरकार के सामने रखे जाने चाहिए। चूंकि प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों सहित राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने की लक्ष्मणरेखा पार कर ली है, इसलिए अब इंडिया ब्लॉक की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है कि वह प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार चले। उन्हें ममता का अनुसरण करना चाहिए।

ममता ने एजेंडा तय कर दिया है। अब समय आ गया है कि इंडिया ब्लॉक की पार्टियाँ चर्चा करें और असली विपक्ष की तरह व्यवहार करना शुरू करें। बस बहुत हो गया। (संवाद)