हिमंत विश्व शर्मा बांग्लादेश के पास सीमावर्ती क्षेत्रों में स्वदेशी लोगों को हथियार देने के पक्ष में हैं। उन्होंने 29 मई, 2025 को स्पष्ट किया कि असम की नयी अस्त्र लाइसेंस नीति अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड की सीमा से लगे क्षेत्रों पर लागू नहीं होगी, क्योंकि ये क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील नहीं माने जाते हैं।

उनके बयान से दो बातें उभर कर आईं - पहली, बांग्लादेश से लगे असम के सीमावर्ती क्षेत्र संवेदनशील हैं; और दूसरी, अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से लगे सीमावर्ती क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील नहीं हैं, हालांकि ये क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से सीमा विवादों और सशस्त्र संघर्षों में शामिल रहे हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि बांग्लादेश से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे सीमावर्ती क्षेत्र संवेदनशील रहे हैं, और उनकी सरकार स्पष्ट रूप से इसका संकेत देती दिखती है। सवाल यह है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? देश के हर नागरिक के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी भारत के संविधान द्वारा दी गयी है, और सरकारें इसकी गारंटी लेती हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग केवल इसलिए असुरक्षित हैं क्योंकि केंद्र अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा करने में अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा है, और असम सरकार अपनी सीमा के भीतर भारतीय नागरिकों की सुरक्षा करने में असमर्थ है।

केंद्र और असम में भाजपा सरकार हमेशा बांग्लादेश से घुसपैठ रोकने की अपनी जिम्मेदारी विपक्ष पर डालने की कोशिश करती रही है, बार-बार देश को बताती रही है कि विपक्षी राजनीतिक दल अपने वोट बैंक के लिए बांग्लादेश से मुस्लिम घुसपैठियों को अनुमति देते रहे हैं। भाजपा की डबल इंजन सरकारें क्या कर रही हैं - असम में 2016 से और केंद्र में 2014 से? बांग्लादेश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोग यदि असुरक्षित हैं तो क्या यह उनकी सरकार की विफलता नहीं है? नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर सरकारें अपनी शक्तिशाली प्रशिक्षित सेना और सशस्त्र पुलिस बल के साथ सुरक्षा नहीं दे सकती हैं, तो नागरिक केवल हथियारों की आपूर्ति से खुद की रक्षा कैसे कर सकते हैं?

नागरिक न तो खुद की रक्षा कर सकते हैं और न ही अपने हथियारों की। हमने हाल ही में मणिपुर में इसे देखा है, जहां विद्रोही या उग्रवादी समूहों द्वारा सशस्त्र बलों से हथियार लूटे गये थे। असम के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से इससे कोई सबक नहीं लिया है। यही कारण है कि कैबिनेट नोट में कहा गया है कि नीति का उद्देश्य गैरकानूनी खतरों के लिए निवारक के रूप में कार्य करना और स्वदेशी समुदायों की व्यक्तिगत सुरक्षा और आत्मविश्वास में सुधार करना है। यह सरकार की गलत धारणा है, क्योंकि हमने पूरे देश में देखा है कि हथियार रखने वाले लोगों को उग्रवादी समूहों द्वारा केवल हथियार छीनने के लिए निशाना बनाया जाता है। हथियार आपूर्ति करने के बाद नागरिकों की सुरक्षा कौन करेगा?

असम सरकार ने नयी हथियार नीति को मंजूरी देकर अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया है कि सरकार के सुरक्षा बल सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिकों को सुरक्षा देने में असमर्थ हैं। सरमा ने खुद कहा, “बांग्लादेश में हाल ही में हुए घटनाक्रमों के कारण इन जिलों में मूल निवासी असुरक्षा के माहौल में रह रहे हैं। उन्हें बांग्लादेश की ओर से और यहां तक कि अपने ही गांवों से हमलों का खतरा है।” नयी हथियार नीति कथित तौर पर असम के धुबरी, नागांव, मोरीगांव, बारपेटा, गोलपारा और दक्षिण सलमारा-मनकाचर जिलों में लागू की जायेगी, जहां बांग्लादेश मूल के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और मूल निवासी अल्पसंख्यक हैं।

शर्मा ने कहा है, “सरकार पात्र लोगों को हथियार लाइसेंस देने में उदारता बरतेगी, जो मूल निवासी होने चाहिए और मूल निवासी समुदायों से संबंधित होने चाहिए।” इसका क्या मतलब है? गैर-मुस्लिमों, स्वदेशी लोगों और मूल निवासियों यानी हिंदुओं को प्रभावी ढंग से हथियार मुहैया कराये जायेंगे।

शर्मा ने जोर देकर कहा है कि नीति का उद्देश्य नागरिकों का सैन्यीकरण करना नहीं है, बल्कि 1985 से चली आ रही एक लंबे समय से चली आ रही मांग को संबोधित करना है, लेकिन किसी भी सरकार ने यह निर्णय लेने की हिम्मत नहीं की। हालांकि यह नीति सीमावर्ती क्षेत्रों के नाम पर लायी गयी है, लेकिन इसे पूरे राज्य में लागू किये जाने की संभावना है। शर्मा ने कहा, "सरकार उन संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करेगी जहां हम स्वदेशी लोगों को उदार तरीके से हथियार लाइसेंस देंगे। गुवाहाटी के हाटीगांव जैसे क्षेत्रों को भी संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।"

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये उदरता पूर्वक प्राप्त हथियार असम के सभी क्षेत्रों और अन्य जगहों पर भी पहुंच सकते हैं। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों, खासकर अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड के सीमावर्ती राज्यों में सशस्त्र हिंसा का खतरा बढ़ जायेगा। सीमा विवाद और संघर्ष के कारण अंतर-राज्यीय सीमा क्षेत्रों में सशस्त्र हिंसा का खतरा बढ़ जायेगा। हथियार उग्रवादी समूहों और विद्रोहियों के हाथों में भी पड़ सकते हैं, और गलत हाथों में भी। नागरिकों के हाथों में हथियार देना अत्यधिक जोखिम भरा है, जो राज्य के भीतर लोगों के विभिन्न समूहों के बीच हिंसा और सशस्त्र संघर्षों के प्रसार से कम नहीं है, और पूरे पूर्वोत्तर में भी, जो पहले से ही जातीय, उग्रवादी या विद्रोही हिंसा से पीड़ित है।

भारत में माओवादी खतरे का मुकाबला करने के लिए छत्तीसगढ़ में नागरिकों को हथियार आपूर्ति करने का एक उदाहरण है, जिसके कारण 2000 के दशक में अराजकता फैल गयी थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा और नीति को अवैध घोषित करना पड़ा। असम के मुख्यमंत्री ने शायद उससे भी कोई सबक नहीं सीखा। फिर अन्य मुद्दे हैं - जैसे सांप्रदायिक हिंसा के बढ़ते जोखिम और सशस्त्र नागरिकों द्वारा अन्य लोगों के खिलाफ सतर्कतावाद। असम और पूर्वोत्तर पहले से ही देश का बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। जहां तक सांप्रदायिक, जातीय, उग्रवादी या विद्रोही हिंसा का सवाल है, उनका इस क्षेत्र में इतिहास रहा है।

आत्मरक्षा के लिए कथित तौर पर नयी हथियार नीति के माध्यम से नागरिकों के विशिष्ट समूह को हथियार देकर, भाजपा की डबल इंजन सरकार नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने की अपनी मूल जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है, और लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से कानून अपने हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र और राज्य को अपनी सुरक्षा उपस्थिति बढ़ानी चाहिए और नागरिकों को हथियार देने की नीति को छोड़ना चाहिए। सरकार की सुरक्षा के अभाव में, नागरिकों के विशिष्ट समूह को हथियार देने का विचार सबसे खतरनाक खेल है। (संवाद)