इसी सामान्य संदर्भ में भारत के चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने का निर्देश दिया है, जो 1 जुलाई, 2025 से शुरू होगा। पिछला गहन पुनरीक्षण 1 जनवरी, 2003 की निर्धारित तिथि को आधार मानकर किया गया था। इसका मतलब है कि मतदाता सूची नये सिरे से तैयार की जायेगी और मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए, एक नागरिक, खासकर वे लोग जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
ईसीआई ने कहा है कि सभी मतदाताओं को एक गणना फॉर्म जमा करना होगा और 2003 के बाद पंजीकृत लोगों को आयोग द्वारा निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों और कार्यक्रम के अनुसार अपनी नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज भी देने होंगे। एक नया घोषणा पत्र जोड़ा जायेगा जिसमें नागरिकता के प्रमाण की आवश्यकता होगी। इससे पहले, ईसीआई के फॉर्म 6 में आवेदक द्वारा यह घोषणा करना पर्याप्त था कि वे नागरिक हैं। आयोग ने यह भी कहा है कि रोल का 'विशेष गहन पुनरीक्षण' या एसआईआर, अंततः सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करेगा। बिहार में अंतिम संशोधित मतदाता सूची 30 सितंबर, 2025 को प्रकाशित की जायेगी।
यह चुनाव आयोग के निर्णय को सबसे विवादास्पद बनाता है, क्योंकि हम असम में पहले ही देख चुके हैं कि न केवल बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए, बल्कि वास्तविक भारतीय नागरिकों के लिए भी नागरिकता साबित करना कितना मुश्किल था। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के प्रारंभिक मसौदे में 40 लाख लोगों को बाहर रखा गया था, और अंतिम सूची में 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया, क्योंकि वे अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सके, हालाँकि 1971 कटऑफ वर्ष था। 2018 में पहली सूची आने और 2019 में अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद भी यह मुद्दा हल नहीं हुआ है।
यह स्पष्ट रूप से इस तथ्य की याद दिलाता है कि बिहार की 2025 की संशोधित मतदाता सूची से लाखों लोगों को हटा दिया जायेगा, जिसे बस कुछ महीनों के भीतर तैयार किया जाना है। चुनाव आयोग मतदाता को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सीमित समय देगा, जो वह नहीं कर सकता, जैसा कि असम के अनुभव ने पहले ही दिखा दिया है।
इसके अलावा, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बिहार में 2003 के बाद पैदा हुए सभी लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र तक नहीं है। जनसंख्या अनुसंधान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में जन्म पंजीकरण दर 2018 में केवल 80.3 प्रतिशत तक पहुंच पायी थी। इसका मतलब है कि लाखों लोग अपना जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं दे पायेंगे, और इसलिए संशोधित मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।
ईसीआई स्पष्ट रूप से पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से प्रभावित है, जो एनआरसी की राजनीति कर रही है। संशोधित मतदाता सूची में शामिल होने की अनुमति देने के लिए “नागरिकता साबित करना” शर्त के रूप में, मतदाता सूची के विशेष संशोधन के नाम पर एनआरसी का अप्रत्यक्ष कार्यान्वयन है। चूंकि नागरिकता साबित करना एक विवादास्पद मामला है, इसलिए ईसीआई को इसे शर्त के रूप में नहीं रखना चाहिए था, जब तक कि यह मुद्दा हल न हो जाये।
मोदी सरकार की ओर से नागरिकता के मुद्दे को लेकर ईसीआई का कदम न केवल यह दर्शाता है कि ईसीआई से समझौता किया गया है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि पूरे भारत के लिए एनआरसी का निर्माण और रखरखाव मोदी सरकार के कार्ड पर है। इस संदर्भ में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का बयान ध्यान देने योग्य है। उन्होंने कहा कि संशोधन के कारण ग्रामीण लोग बाहर रह जायेंगे। उन्होंने कहा, "और फिर आप सूची बढ़ाने के लिए 'उधार लिए गए मतदाताओं' के नाम शामिल करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप हार रहे हैं। सिर्फ़ इसलिए कि आप हार रहे हैं, आप दूसरे राज्यों के नाम जोड़ देंगे। यह एनआरसी से भी ज़्यादा ख़तरनाक है।"
ध्यान रहे कि पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव होने वाले हैं। ममता ने भाजपा और चुनाव आयोग पर मिलकर काम करने और "नए मतदाता सूची सत्यापन प्रक्रिया की आड़ में बंगाल और उसके लोगों", ख़ास तौर पर बंगाल के युवाओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "यह बहुत चिंताजनक है। उन्होंने मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए एक घोषणा पत्र पेश किया है। 1 जुलाई 1987 और 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों के लिए मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र के साथ एक नया घोषणा पत्र जमा करना होगा। ईसीआई का कहना है कि माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र जमा करने होंगे। पूर्ण गणना के नाम पर क्या चल रहा है? यह ईसीआई का एक दस्तावेज और घोषणा पत्र है। इसमें कई अनियमितताएं हैं।"
यहां "मतदाता सूची में हेराफेरी" के आरोप का उल्लेख किया जा सकता है जो प्रथम दृष्टया संभव प्रतीत होते हैं, और यह भाजपा और एनडीए के पक्ष में जा सकता है, जैसा कि विपक्षी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र में कथित तौर पर ऐसा करने का आरोप लगाया गया है।
कांग्रेस ने भी चुनाव आयोग के नये कदम का विरोध करते हुए कहा है कि इससे राज्य मशीनरी का इस्तेमाल करके मतदाताओं को जानबूझकर बाहर किये जाने का जोखिम है, और उसने इसे “धूर्ततापूर्ण” करार दिया।
चूंकि चुनाव आयोग ने पहले ही कहा है कि बिहार से शुरू करके पूरे देश में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण किया जायेगा, इसलिए हम यह मान सकते हैं कि ऐसी सभी कवायदों में नागरिकता के प्रमाण की शर्त होगी। मतदाता सूची के पुनरीक्षण में यह एक नयी बात है, जिसके लिए चुनाव आयोग ने नये नियम और दिशा-निर्देश बनाये हैं, लेकिन मतदाताओं को उनका पालन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया है। यह चुनाव आयोग का पूरी तरह से अलोकतांत्रिक रवैया है।
इस मुद्दे ने पहले ही बिहार में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, और इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ने की संभावना है। बुधवार को पटना में बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी के साथ राजनीतिक दलों की बैठक में राजद, कांग्रेस, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन, सीपीआई और सीपीआई (एम) सहित इंडिया ब्लॉक के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से एसआईआर को खारिज कर दिया, तथा इसे गरीब, ग्रामीण और अल्पसंख्यक मतदाताओं को बाहर करने की चाल बताया। (संवाद)
बिहार में नये मतदाता मानदंड लागू करना एनआरसी लाने का संकेत
मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण पूरे देश में लागू किया जायेगा
डॉ. ज्ञान पाठक - 2025-06-30 11:01
बिहार में चुनाव 22 नवंबर, 2025 को विधानसभा की अवधि समाप्त होने से पहले होने हैं। सभी राजनीतिक दल इस महाचुनावी लड़ाई की जोरदार तैयारी कर रहे हैं। बिहार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाई रही है। खबरों में बताया गया है कि पार्टी ने बिहार में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की 200 या उससे अधिक चुनावी रैलियां कराने की योजना बनायी है। इसलिए भारत के चुनाव आयोग के पास पिछले एक दशक में किसी भी अन्य चुनाव की तुलना में बिहार चुनाव को अधिक गंभीरता से लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।