नयी दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय का आज का एक फैसला अद्भुत था। उसने नांदीग्राम में पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा गत 14 मार्च को किये गये गोलीचालन की घटना में जहां एक ओर कोलकाता उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी को हटाने से इनकार कर दिया कि गोलीचालन ‘अनुचित’ था वहीं उसने सीबीआई को भी दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरु करने से रोक दिया। अभी उम्मीद इस बात से है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि सीबीआई अनुसंधान कार्यवाही जारी रखेगी। इस पीठ में अन्य दो न्यायाधीश थे न्यायमूर्ति आर वी रवीन्द्रन और न्यायमूर्ति जे एम पंजाल।
उल्लेखनीय है कि उस पुलिस गोलीकांड में 14 लोग मारे गये थे। उस घटना के बाद और पहले नांदीग्राम के लोग अपनी खेती योग्य जमीन सरकार द्वारा छीनकर सेज योजना के तहत उद्योगपतियों को दिये जाने का विरोध करते रहे हैं। उस घटना के दिन से कई बार विरोध करने वाले लोगों की लाशें जहां तहां छिपायी मिली हैं। स्पष्ट है लोगों की हत्या के बाद साक्ष्य छिपाने की कोशिशें की गयी हैं। और यही वह बिन्दु है जो पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस को शक के दायरे में ला खड़ी करती है। स्वयं राज्य की पुलिस द्वारा की गयी वीडियो रिकार्डिंग , जो अभी सीबीआई के पास है, में 27 ऐसे लोगों की पहचान की गयी है जो बाहरी लोग थे पर राज्य पुलिस की सी बर्दी में पुलिस बल के साथ ही थे। उन्होंने जनता को भड़काया और गोलियों से भून डाला। आधिकारिक तौर पर सिर्फ 14 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की गयी और अन्य लाशें गायब कर दी गयीं जो बाद में गड्ढों में छिपायी गयीं मिलीं।
पुलिस को अपनी कार्रवाई करने का हक है और ड्यूटी के समय जरुरत पड़ने पर फायरिंग करने का भी हक है, लेकिन बाहरी लोगों को अपने साथ लेकर जनता को भड़काना और फिर उन्हें गोलियों से भून डालना और उसके बाद हत्या के साक्ष्य मिटाने के लिए लाशें गायब कर जहां तहां मिट्टी में गाड़ देना उनकी ड्यूटी में शामिल नहीं है। यह विशुद्ध रुप से आपराधिक घटना है और इसके लिए सीबीआई आपराधिक मुकदमा चलाना चाहती है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति बैठते हैं और उनके पास, हम मानकर चलते हैं कि ज्यादा विवेक है। हो सकता है कि सीबीआई को पश्चिम बंगाल पुलिस के दोषी अधिकारियों और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरु करने से रोकने के पीछे भी कोई राज हो और वह राज भी मानवता के उच्च मानदंड के अनुकूल हो। लेकिन ऐसा निर्णय अद्भुत है और कई कारणों से अद्भुत।
हो सकता है कि जल्दबाजी में कोई कदम न उठाने की भी भावना उसमें छिपी हो। क्योंकि वैसे भी सी बी आई को कोलकाता उच्च न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया शुरु करने का आदेश दिया था और अनुसंधान करने को कहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसंधान जारी रहने दिया और सी बी आई ने उसे 17 दिसम्बर को अपनी अगली रपट सौंपने की बात कही है। उसके बाद ही पता चलेगा कि सर्वोच्च न्यायालय का अगला कदम क्या होगा।
ध्यान रहे कि एक एन जी ओ की याजिका पर कोलकाता उच्च न्यायालय का फैसला आया था । पश्चिम बंगाल सरकार यहां सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालाय के उसी फैसले के खिलाफ आयी है जिसमें उसने टिप्पणी की थी कि फायरिंग अनुचित था, सीबीआई दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरु करे और सरकार मारे गये लोगों के परिजनों को पांच लाख रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुआबजा दे। वाम नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को यह नागवार गुजरा । वह अपनी पुलिस की छवि बचाने और विशेष रुप से दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए सामने आयी तथा मारे गये लोगों को मुआबजा देने के कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ चली गयी। उसने मुआबजा की राशि पर भी आपत्ति जतायी और अब समिति गठित करने की मांग कर रही है जो निर्णय करे कि मुआबजा कितना होना चाहिए।
भारत के संविधान के तहत सरकार प्रत्येक व्यक्ति के जान माल की सुरक्षा की गारंटी लेती है, बशर्ते कानून के तहत न्यायिक फैसले के तहत जान माल न छीनी गयी हो। संभवत: सभ्यता के इस विकास से हमारी पश्चिम बंगाल सरकार नीचे खिसक गयी है। और सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस अनुरोध को भी मानने से इनकार कर दिया कि उच्च न्यायालय की उस टिप्पणी को हटा दिया जाये जिसमें कहा गया कि नांदीग्राम गोलीकांड असंवैधानिक था। सर्वोच्च न्यायालय ने मुआबजे के लिए समिति गठित करने के राज्य सरकार के अनुरोध को भी नहीं माना।
इस साल जनवरी से अब तक 35 लोगों की मौत की खबर है। कुछ लाशें गड्ढों में मिलीं और कुछ बुरी तरह जली अवस्था में । गोलियों से तो सिर्फ 14 मौतें दिखायी गयी थीं। पुलिस, राज्य सरकार के अधिकारी और वामपंथी नेताओं को ऐसा करने का कोई अधिकार हासिल नहीं है। साक्ष्य मिटाने की कोशिशें इस बात के सुबूत हैं कि पुलिस, अधिकारी और वाम शासकों ने अपनी ड्यूटी नहीं निभायी, बल्कि जनता के आपराधिक दमन का रास्ता अपनाया।
किसी भी सभ्य समाज का विवेक ऐसा ही होगा, चाहे न्यायमूर्ति कुछ भी फैसला करें, इस परिकल्पना के पक्ष में फैसला करें या विपक्ष में। चाहे आपराधिक मुकदमे चलने दें या उसे रोक दें।
सर्वोच्च न्यायालय ने रोकी दोषियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई
न्यायालय, न्याय और नांदीग्राम
लेकिन जारी रहेगी सीबीआई की कार्यवाही, गोली चालन ‘अनुचित’ की टिप्पणी हटाने से इनकार
ज्ञान पाठक - 2007-12-13 13:26
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति बैठते हैं और उनके पास, हम मानकर चलते हैं कि ज्यादा विवेक है। हो सकता है कि सीबीआई को पश्चिम बंगाल पुलिस के दोषी अधिकारियों और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले शुरु करने से रोकने के पीछे भी कोई राज हो और वह राज भी मानवता के उच्च मानदंड के अनुकूल हो। लेकिन ऐसा निर्णय अद्भुत है और कई कारणों से अद्भुत।