इससे पहले चीन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी भारत ने इजराइल के खिलाफ जारी बयान में हस्ताक्षर किये थे। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सितंबर में चीन जाना और शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने पर भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खासी नाराजगी जताई थी। हालांकि भारत ने अभी तक अफगानिस्तान में चल रहे तालिबान के शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है लेकिन मानवतावादी व विकास संबंधी कार्यों में भारत अफगानिस्तान को सहयोग कर रहा है। इस लिहाज से भी तालिबान के विदेश मंत्री का पहली बार भारत आना एशिया के देशों में नये किस्म के संवाद व साझेदारी की शुरूआत का संकेत हो सकता है।
रूस की राजधानी मॉस्को में हुई मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन ऑन अफगानिस्तान की सातवीं बैठक में भारत, अफगानिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, चीन, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने शिरकत की। बेलारूस के प्रतिनिधिमंडल ने भी शिरकत की। यहां जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया, वह विश्व कूटनीति में अमेरिका को सीधे चुनौती देने वाला नजर आता है। इसमें कहा गया कि “अफगानिस्तान व पड़ोसी देशों में अन्य देशों द्वारा अपने सैन्य ढांचे (मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर) तैनात करने की कोशिशें स्वीकार नहीं हैं क्योंकि ये क्षेत्रीय शांति व स्थिरता के हित में नहीं हैं।“
यह वक्तव्य 7 अक्तूबर 2025 को जारी किया गया। मजेदार बात है कि इसमें सीधे-सीधे बागराम पर अमेरिकी कब्जे की चाह का जिक्र नहीं है, लेकिन निशाना बिल्कुल साफ है। इसमें यह भी कहा गया कि अफगानिस्तान को स्वंतत्र, एकीकृत व शांतिपूर्ण देश के तौर पर स्थापित करने के लिए भी काम करेंगे। इसके अलावा एक और बात जो सीधे अमेरिकी वर्चस्व को सीधे चुनौती देने वाली इसमें शामिल है, वह है कि ये तमाम देश अफगानिस्तान की जमीन को पड़ोसी देशों और आसपास के इलाके की सुरक्षा के लिए किसी भी किस्म का खतरा पेश करने के किसी भी प्रयास के लिए उपयोग नहीं होने देंगे। यानी बिना कहे यह कह दिया कि बागराम एयरबेस को अमेरिका के पास वापस जाने के खिलाफ दुनिया के ये देश एकमत है। इसमें भारत का चीन-रूस-पाकिस्तान के संग खड़ा होना क्षेत्रीय गठबंधन की ओर इशारा करने वाला है।
कितनी तेजी से दुनिया के इस हिस्से में कूटनीतिक संबंध बदल रहे हैं, इसका आभास मॉस्को में हुई इस बैठक में साफ-साफ दिख रहा है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ख़ान मुत्ताक़ी के नेतृत्व में पहली बार अफगानिस्तान के प्रतिनिधिमंडल ने इस तरह की किसी भी बैठक में भागीदारी की। रूस के अफगानिस्तान में अपने हित है। सोवियत संघ के विघटन से पहले यानी 1991 से पहले अफगानिस्तान में उसकी सीधी प्रभावशाली भूमिका था और पूरे इलाके में उसका दबदबा था। फिर 2001 में अमेरिका ने नाटो के साथ मिलकर अफगानिस्तान पर हमला बोला, उसे तबाह किया। बीस साल तक चले इस संघर्ष के बाद 2021 में अफगानिस्तान में एक भी अमेरिकी सैनिक नहीं रहा। वापस शासन तालिबान को सौंप कर अमेरिकी सत्ता ने हाथ झाड़ दिये। फिर अचानक 18 सितंबर 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अफगानिस्तान की तालिबान की सरकार उन्हें बागराम एयरबेस वापस कर दे।
कितनी बड़ी विडंबना है कि पांच साल पहले ट्रंप ने ही तालिबान से समझौता करके अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी करवाई थी। ट्रंप की इस मांग ने दुनिया भर में खासतौर से अफगानिस्तान में बैचेनी पैदा कर दी। जिस अंदाज में ट्रंप ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनकी सरकार बागराम एयरबेस को वापस लेने की कोशिश कर रही है, हमने उन्हें यूं ही दे दिया और अब हम उसे वापस चाहते हैं। इसके बाद से ही यह साफ हो गया कि अमेरिकी अफगानिस्तान में इस एयरबेस को हासिल करके इस इलाके में दोबारा अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। दरअसल बागराम अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग50 किलोमीटर दूर स्थित इस देश कासबसे बड़ा एयरबेस हैं, जहां पर बड़े मिलिट्री प्लेन व हथियार डिलिवरी करने वाले हवाई जहाज उतारे जा सकते हैं। इसमें दो बड़े रनवे हैं, जो 3.6 किलोमीटर व 3 किलोमीटर लंबे हैं।
ट्रंप के इस प्रस्ताव को अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने सिरे से नकार दिया था। तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा था, “अफगान किसी भी सूरत में अपनी जमीन को किसी को नहीं सौंपेंगे।“ शायद जिस समय अफगानिस्तान की सरकार ने यह फैसला लिया था, उस समय यह अंदाजा नहीं लगाया गया था कि इस तरह से भारत सहित तमाम देश अफगानिस्तान के पक्ष में उतरेंगे और ट्रंप की इस मनमानी का विरोध करेंगे। (संवाद)
बागराम एयरबेस पर नई कूटनीति: भारत-तालिबान की नज़दीकी से बदलेगा क्षेत्रीय समीकरण
एशिया में नया समीकरण, बागराम एयरबेस कूटनीति से बदलेगी दिशा
भाषा सिंह - 2025-10-09 12:00
तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी का भारत आना अपने आप में बड़ी खबर है, लेकिन उससे भी बड़ा घटनाक्रम है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अफगानिस्तान के बागराम एयरबेस को कब्जे में लेने का भारत द्वारा विरोध करना। तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी का भारत आना, अपने आप में बड़ी खलबली पैदा करने वाली खबर है। भारत ने इस मुद्दे पर तालिबान, पाकिस्तान, चीन व रूस के अफगानिस्तान पर मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन का समर्थन किया, जिसमें बिना बागराम एयरबेस का नाम लिए हुए अमेरिकी मंशा का विरोध किया गया है। इस तरह से अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का यह दूसरा बड़ा कदम है, जो सीधे-सीधे अमेरिकी हित से टकराता है।