भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से ले जाए गए भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के श्रद्धापूर्ण स्वागत के लिए भूटान की जनता और नेतृत्व के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया है। श्री मोदी ने कहा कि ये अवशेष शांति, करुणा और सद्भाव के शाश्वत संदेश के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षा हमारे दोनों देशों की साझा आध्यात्मिक विरासत के बीच एक पवित्र कड़ी हैं।

भारत सरकार के केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु और अधिकारी शामिल हैं। यह प्रदर्शनी भारत और भूटान के बीच स्थायी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक साझेदारी में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव है।

पारो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचने पर, पवित्र अवशेषों को भूटान की शाही सरकार के गृह मंत्री महामहिम त्शेरिंग, भूटान के केंद्रीय मठ निकाय के महामहिम त्शोकी लोपेन और पारो (जोंगखाग) के मेयर नोरबू वांगचुक, भूटान में भारत के राजदूत श्री संदीप आर्य और भूटान के वरिष्ठ अधिकारियों और भिक्षुओं ने पवित्र अवशेषों का अत्यन्त सम्मान के साथ स्वागत किया। भूटान की राजमाता आशी दोरजी वांगमो वांगचुक और महामहिम राजकुमार जिग्येल उग्येन वांगचुक ने भी समारोह के दौरान पवित्र अवशेषों के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान अर्पित किया।

औपचारिक स्वागत के बाद, पवित्र अवशेषों को थिम्पू में ताशिचो द्ज़ोंग के ग्रैंड कुएनरे हॉल में ले जाया गया, जहां उन्हें पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठानों के साथ स्थापित किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. वीरेंद्र कुमार ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने में अपने गौरव और सम्मान की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि यह प्रदर्शनी भारत और भूटान के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत करती है, जो भगवान बुद्ध से प्रेरित शांति और करुणा की साझा विरासत को मजबूत करती है।

भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे ने पवित्र अवशेषों को भूटान लाने के लिए भारत सरकार के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि महोत्सव की अवधारणा की परिकल्पना भूटान के महामहिम नरेश ने वैश्विक शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में की थी। भूटान के प्रधानमंत्री ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के सहयोगात्मक प्रयासों की सराहना की तथा इस आयोजन को “भूटान-भारत संबंधों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव” बताया। उन्होंने इस पवित्र यात्रा को सुगम बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की तथा दोनों देशों के बीच गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित किया।

प्रदर्शनी के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) आध्यात्मिक अनुभव को समृद्ध करने के लिए तीन विषयगत प्रदर्शनियों का आयोजन करेगा।

बौद्ध धर्म सदियों से भूटान की पहचान का आधार रहा है और इसकी संस्कृति, शासन और ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (जीएनएच) के दर्शन को आकार देता रहा है। क्यीचू लखांग (7वीं शताब्दी) जैसे प्राचीन अभयारण्यों से लेकर प्रतिष्ठित पारो ताकत्संग तक, गुरु पद्मसंभव की शिक्षाएं भूटान के आध्यात्मिक जीवन और राष्ट्रीय लोकाचार को प्रेरित करती रही हैं।

यह पवित्र प्रदर्शनी भारत की अपनी बौद्ध विरासत को दुनिया के साथ साझा करने की निरंतर परंपरा का हिस्सा है। यह मंगोलिया, थाईलैंड, वियतनाम और रूस के कलमीकिया क्षेत्र में सफल अंतर्राष्ट्रीय अवशेष प्रदर्शनियों के साथ-साथ पिपराहवा रत्न अवशेषों की भारत में ऐतिहासिक वापसी के बाद आयोजित की जा रही है, जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय गौरव के क्षण के रूप में मनाया था।

भूटान में यह प्रदर्शनी शांति, करुणा और एकता का एक शाश्वत प्रतीक है - जो उस आध्यात्मिक बंधन की पुष्टि करती है जो भगवान बुद्ध की अनंत शिक्षाओं के माध्यम से भारत और भूटान के लोगों को आपस जोड़ता है।