उनकी एक छवि को तो पिछले 12 जून को उस समय घक्का लगा था, जब बिहार के सभी अखबारों में उनकी तस्वीर नरेन्द्र मोदी के साथ छपी थी। अपनी छवि की राजनीति के तहत नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहते हुए भी नरेन्द्र मोदी से अपने आपको अलग दिखाने की कोशिश करते रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होने गुजरात के मुख्यमंत्री को बिहार में चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया था, लेकिन लोकसभा के चुनाव समाप्त होते ही वे नरेन्द्र मोदी के हाथ में हाथ डालने के लिए पंजाव जा पहुंचे। यानी निजी तौर पर नरेन्द्र मोदी से बेहतर रिश्तें और बिहार में उनसे दूरी दिखाने की जो राजनीति वे कर रहे थे, उस राजनीति को बिहार के अखबारों में छपे विज्ञापनों ने तार तार कर दिया।

उसके बाद तो नीतीश ने वह बौखलाहट दिखानी शुरू कर दी जिसमें वे अपना ही नुकसान करते चले गए। नरेन्द्र मोदी का विरोध करते करते उन्होंने अपने आपको मजाक का पात्र बना दिया। पहले भाजपा नेताओं को दिए गए भोज के आमंत्रण को वापस लिया और फिर गुजरात सरकार दी गई बाढ़ सहायता राशि को ही वापस कर दिया। इसके कारण उनकी छवि को और नुकसान हुआ। भाजपा से हटकर चुनाव लड़ने की स्थिति में अपनी ताकत का पता लगाने के लिए उन्होंने आंतरिक सर्वेक्षण भी करवाया। उससे पता चला कि यदि उन्होनें भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा तो उनकी पार्टी का भाजपा के बराबर भी सीटें नहीं मिलेंगी।

उस सर्वेक्षण के बाद उन्हें अपनी असली ताकत का पता चला और फिर अपराधी छवि के लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करने का अभियान प्रारंभ कर दिया। नीतीश कुमार की छवि एक अपराघ मुक्त बिहार बनाने वाले नेता की छवि रही है। तस्लीमुद्दीन को अपनी पार्टी में शामिल कर उन्होंने अपनी उस छवि को खराब करना प्रारंभ कर दिया। उसके बाद वे जेल में बंद एक अपराघी छवि के विधायक धूमल सिंह के घर जा पहुंचे। उसके बाद जेल में बंद आजीवन कारावास की सजा पा रहे आनंद मोहन के घर भी वे पहु्रच गए। उनकी यात्रा वहीं समाप्त नहीं हुई। वे जेल में बंद सीवान के शहाबुद्दीन के घर भी जा पहुंचे। एक के बाद एक अपराघी छवि के राजनीतिज्ञों के घरों की यात्रा से उनकी अपराध विरोधी छवि का धक्का तो लग रहा ही था, ट्रेजरी घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश के बाद उनकी ईमानदार छवि को भी भारी घक्का लगा है।

जाहिर है नैतिकता के उच्च धरातल पर रहने वाले एक नेता की छवि को उन्होंने बहुत मेहनत के साथ बनाया था, उनकी वह छवि तार तार हो रही है। नरेन्द्र मादी प्रकरण ने उनका पहले ही भारी नुकसान किया है। अखबारों मे छपे विज्ञापनों के बाद यदि वे शांत रह जाते तो उनका कोई नुकसान नहीं होता। जिन मुसलमानों का वोट उन्हें मिलना था, वैसे भी उन्हें मिलता, लेकिन विज्ञापन प्रकरण के बाद बौखलाहट में उन्होंने जो जो किया, उसके कारण बिहार के नरेन्द्र मोदी समर्थकों के बीच में तो उनकी लोकप्रियता को बट्टा लगा ही, मुसलमानों के बीच भी वे मजाक का पात्र बन गए।

अब ट्रेजरी घोटाले ने तो उनके ऊपर ऐसा कहर बरपाया है, जिसका असर बिहार विधानसभा चुनाव पर पडे़ बिना नहीं रहेगा। 2002 से मार्च 2008 तक बिहार के सरकारी खजानों के निकले 11412 करोड़ रुपए का हिसाब किताब नहीं मिल रहा है। इस 6 साल की अवधि में मात्र ढाई साल ही नीतीश मुख्यतमंत्री पद पर रहे हैं, लेकिन उनके कार्यकाल में इस राशि का 85 प्रतिशत निकाला गया। यानी साढ़े 9 हजार करोड़ रुपए की राशि के घोटाले का आरोप उनपर लग रहा है। उसके बाद दो साल और भी बीत चुके हैं। क्या पिछले दो साल में भी इसी तरह की अनियमितता हुई है? अभी कुछ दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यदि अनियमितता की वही रफ्तार रही हो, तो नीतीश के मुख्यमंत्रित्व काल में इस तरह की अनियमितता की राशि 20 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है।

अभी सीबीआई जांच प्रारंभ नहीं हुई है और राज्य सरकार ने आघिकारिक तौर पर जांच के आदेश पर कोई टिप्पणी भी नहीं की है। पार्टी के स्तर से कहा गया है कि मामला घोटाले का नहीं है, बल्कि सही ढंग से खर्च का हिसाब किताब नहीं रखने का है। लेकिन क्या सिर्फ इसी आधार पर उच्च न्यायालय सीबीआई जांच के आदेश दे देता है? जांच का आदेश तो तभी जारी किया गया होगा, जब माननीय न्यायाधीशों में उसमे घोटाला दिखाई दिया होगा।

नीतीश असली समस्या जांच प्रारंभ होने के बाद शुरू होगी। उनके राजनैतिक विरोघी उनके खिलाफ एफआइआर दजे करने की मांग कर रहे हैं। यदि घोटाले मे उनकी संलिप्तता का अंदेशा हुआ, तो सीबीआई एफआइआर भी दजै करेगी। और यदि वह ऐसा करती है तो नीतीश कुमार को चुनाव के पहले भी मुख्यमंत्री का अपना पद छोड़ना पड़ सकता है। इसका कारण है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद उन्हें जमानत के लिए अदालत में जाना होगा और जमानत के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर जज के सामने पेश होना उनके लिए मुनासिब नहीं माना जाएगा। यानी अगले चुनाव के बाद फिर से मुख्यमंत्री बनने के कोशिश में जुटे नीतीश को चुनाव के पहले भी गद्दी छोड़नी पड़ सकती है।

उच्च न्यायालय ने 6 साल की जिस अवधि के बीच हुई अनियमितता की जांच के लिए सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं, उसके 3 साल तो राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। जाहिर है जांच की आंच राबड़ी देवी तक भी पहुंचेगी, लेकिन लालू यादव को इसकी ज्यादा ंिचंता नहीं होगी, क्योंकि स्वच्छ छवि की राजनीति नीतीश कर रहे हैं लालू नहीं। राबड़ी के नाम को भी इसमें उछाला जाएगा, इसे भांपते हुए लालू यादव अभी से कहने लगे हैं कि राबड़ी देवी उनकी तरफ से मुख्यमंत्री की उम्मीदवार नहीं होगी, क्योंकि वे अब मुख्यमंत्री बनना ही नहीं चाहती हैं। खजाने में अनियमितता की बात सामने आने पर राबड़ी द्वारा मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर होने की बात कहकर लालू यादव नीतीश से भी राबड़ी के पद चिन्हों पर चलने की बात कह सकते हैं। यानी सीबीआई जांच के दायरे में राबड़ी के कार्यकाल के आ जाने से नीतीश को और भी ज्यादा नुकसान होगा।

पटना की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार के और भी मामले नीतीश के खिलाफ सामने आएंगे। यदि इसमें सच्चाई है, तो मानना पड़ेगा कि नीतीश के लिए आने वाला समय बेहद ही परेशान करने वाला होगा। (संवाद)