ये तीनों रेड्डी आपस में भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जनार्दन रेड्डी और करुणाकर रेड्डी भाई हैं और जगन रेड्डी के साथ उनका व्यापारिक संबंध हैं। यानी कांग्रेस के रेड्डी और भाजपा के रेड्डी बंघु भले ही अलग अलग पार्टियों में हों, लेकिन दोनो के आर्थिक और व्यापारिक हित समान हैं। इसके कारण दोनों राज्यों मं चल रही उठापटक में आपसी संबंध है। कहने का मतलब कि कर्नाटक की राजनीति में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे आंध्र प्रदेश की राजनीति का दबाव महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की समस्या उस समय शुरु हुई, जब उसके नेता राजशेखर रेड्डी का एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में निधन हो गया। उसके बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद पर बैठने के लिए जगनमोहन ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। कांग्रेस आलाकमान उनके दबाव में नहीं आया। मुख्यमंत्री की मौत के बाद मंत्रिमंडल में दूसरे स्ािान पर बैठे रोसैया को वहां का कामचलाऊ मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन जगनमोहन द्वारा अपने लिए भारी दबाव बनाने के कारण कांग्रेस आलाकमान ने रोसैया को ही मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखा।

रोसैया की समस्या भी यही है। वे मुख्यमंत्री के असामयिक निधन के बाद अगले मुख्यमंत्री के चुनाव तक के लिए मुख्यमंत्री पद पर बैठे थे, लेकिन उनका कार्यकाल लंबा खिंचता चला गया। वे आज आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कामचलाऊ मुख्यमंत्री की तरह ही काम कर रहे हैं। वे एक कमजोर मुख्यमंत्री साबित हो रहे हैं और कोई बड़ा निर्णय लेने के पहले बार बार कांग्रेस आलाकमान के दिशा निर्देश का इंजतार करते है। इसके कारण राज्य में एक के बाद एक समस्या पैदा हो रही है।

दूसरी तरफ जगनमोहन रेड्डी के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। वे मुख्यमंत्री तो नहीं ही बन पाएण् केन्द्र की सरकार में भी कोई पद नहीं पा सके। सरकार क्या पार्टी के केन्द्रीय संगठन में भी उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। उन्हें लगता है कि जैसे जैसे उनके पिता की मौत का समय पुराना पड़ता जाएगा, राजनीति में उनकी चमक कमजोर होती जाएगी। उनका यह सोचना गलत भी नहीं है। राजशेखर की मौत के तुरत बाद विधायक दल में जितने समर्थक जगन के पास थे, आज उतने नहीं हैं। अब मुश्किल से 30 विधायक उनके साथ पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं।

यही कारण है कि जगनमोहन अब आरपार की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने एक रथयात्रा निकाल रखी हैख् जिसका उद्देश्य वे राजशेखर के निधन के बाद अपनी जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों से मिलकर अपनी सहानुभूति जताना बताते हैं। लेकिन इस यात्रा की आड़ में वे कांग्रेस आलाकमान को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते हैं। कांग्रेस नेताओं को भी इसका पता है, लेकिन कांग्रेस अभी उन्हें नाराज नहीं करना चाहती। कांग्रेस को पता है कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने पर उनके समर्थक विधायक पार्टी से बगावत कर देंगे और फिर तब कांग्रेस की राज्य सरकार के के अस्तित्व पर संकट मडराने लगेगा।

दूसरी तरफ कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं ने भाजपा की नींद हराम कर रखी है। कुछ महीने पहले उनकी बगावत के कारण भाजपा की सरकार गिरती दिखाई पड़ रही थी। येदुरप्पा सरकार को मुश्किल से बचाया गया और रेड्डी बंधुओं की शर्तें मांगनी पड़ी। अब वहां कांग्रेस व अन्य विपक्षी र्पािर्टयां रेड्डी बंधुओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है। उन पर अवैध खनन का आरोप लगाया जा रहा है। वहां के मुख्यमंत्री उस आरोप की जांच करने की भी हिम्मत नहीं जुटा रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर की बात है। मुख्यमंत्री को पता है कि रेड्डी बंधुओं के पास इतने विधायक है कि वे जब चाहें सरकार गिरा सकते हैं।

यानी कर्नाटक में भाजपा रेड्डी बंधुओं के खिलाफ चाहतें हुए भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती, तों आंध्र प्रदेश में कांग्रेस जगनमोहन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। दोनों का संबंध खनन से है और दोनों के पास काफी पैसा है। उनका पैसा देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों पर भारी पड़ रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस द्वारा कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं के खिलाफ मोर्चा आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी को कमजोर करने के लिए खोला गया है। माना जा रहा है कि कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं के साथ जगन के हित मिले होने के कारण रेड्डी बंधुओं के पतन के साथ ही आंध्र के विक्षुब्ध रेड्डी का भर पतन हो जाएगा। (संवाद)