नक्सलवाद आतंकवाद के समकक्ष रखकर केन्द्र सरकार किस बात का प्रमाण दे रही है। देश में फैली बेरोजगारी और महंगाई से पिसती आम जनता के लिए कोई भी कारगार कदम उठाने बाबत डा. मनमोहन सिंह ने कोई बात नहीं उठाई। देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गरीबी और आधे तन कपड़ा पहने अपना जीवन यापन कर रहे हैं। यह तस्वीर कभी डा. मनमोहन सिंह ने कहीं देखी है या उनके सलाहकारों ने उन्हें दिखाई है। नक्सल पीड़ित क्षेत्रों की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री के पास क्या फार्मूला है। गृहमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच जो खाई बढ़ती जा रही है उससे आतंकवाद की समस्या का विकराल रूप ही हमें देखने को मिल सकता है।

जम्मू व कश्मीर में आतंकवाद और पंजाब के उग्रवाद के लिए देश के बहुमूल्य जीवन को खाने के पश्चात भी केन्द्र सरकार की ढुलमुल नीति ही इस समस्या को उलझाने में लगी हुई है। सेना के इस्तेमाल पर भी गृहमन्त्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में मतभेद उभर कर सामने आए हैं। विपक्षी दल भी इससे असहमत दिखाई दिए। अपने ही देश में सेना के इस्तेमाल पर पंजाब की आग में कई लोग स्वाह हो गए थे। यह बात आज के नेता और जनता दोनों ही अनभिज्ञ नहीं हैं।

भारत की प्रगति की चहूं ओर प्रशंसा हो रही है लेकिन आम आदमी को रोजगार दिलवाने में प्रासंगिक सरकार अप्रासंगिक होती जा रही है जिस कारण अभी तक आम आदमी ने डा. मनमोहन सिंह सरकार पर अपना विश्वास जतलाया है उसे देखते हुए उन्हें आर्थिक सुरक्षा मुहिया कराने में यह सरकार पूर्णतः असफल घोषित हुई है। ना चाहते हुए भी आम आदमी को पांच साल अब ओर इस सरकार को झेलना पड़ेगा क्योंकि विपक्षी दलों में ऐसा गठबन्धन नहीं बना है जो इस सरकार को उखाड़ने की ताकत रखता हो। भाजपा के साथ मिलकर सी.पी.एम. और अन्य क्षेत्रीय दल भारत बंद का आहवान तो कर सकते हैं लेकिन उनके साथ बैठकर सरकार नहीं चला सकते। जिस प्रकार वाजपेयी सरकार जयललिता और ममता को झेल रही थी उसी प्रकार डा. मनमोहन सिंह सरकार ममता को झेल रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपने पैर परासने वाली ममता बनर्जी का दिल केन्द्र में नहीं लग रहा है। आने वाले चुनावों को देखते हुए सीपी एम की सरकार को बाहर का रास्ता दिखाने को आतुर है उसे ना तो रेलों की दुर्घटनाओं से कोई मतलब है और ना ही वे रेल मन्त्रालय का काम ही मन लगा कर रही है।

डा. मनमोहन सिंह को सरकार में उन मन्त्रियों पर लगाम कसनी चाहिए जिनके कारण उन्हें बार-बार विपक्ष की नाराजगी सहन करनी चाहिए अभी हाल ही में उन्होंने विपक्षी दलों के नेताओं को भोजन पर आने की दावत दी थी और मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने उनके इस निमन्त्रण को ठुकरा दिया। डा. मनमोहन सिंह सरकार के संसदीय कार्य मन्त्री पवन कुमार बंसल से यह प्रश्न पूछा गया लेकिन उन्होने विपक्षी दलों के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और उनके निर्णय पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

विपक्ष महंगाई और अन्य आर्थिक विफलताओं पर डा. मनमोहन सरकार को संसद के मानसून सत्र पर घेरना चाहता है। जिस भनक वह समय से पहले नहीं देना चाहता और किन मुद्दों पर विपक्ष उन्हें घेरना चाहता है इस बात का समय पूर्ण पता नहीं देना चाहता है इसीलिए नाराज विपक्ष डा. मनमोहन सिंह की दावत का स्वीकार नहीं कर पाया।

आम आदमी की दुखती रग पर पट्रोल और गैस की महंगाई ने हाथ रख दिया है और आम आदमी जो कि दिन-रात मेहनत करने के पश्चात भी जो जून की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहा है। उससे पहाड़ जैसी महंगाई का मुकाबला करने की उम्मीद राजनीतिक दल कैसे कर सकते है। (कलानेत्र परिक्रमा)