अमित शाह की गिरफ्तारी माया कोदनानी और मनोज कुमार की गिरफ्तारी से ज्यादा मायने रखती है। इसका कारण यह है कि श्री शाह खुद उन दोनो से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वे गुजरात के गृहमंत्री थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद खुद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के भी सीबीआई की गिर्फत में आ जाने का खतरा पैदा हो गया है। यही कारण है कि भाजपा नेत्त्व पहले हुई गिरफ्तारियों की अपेक्षा श्री शाह की गिरफ्तारी से ज्यादा परेशान है।

लेकिन भाजपा की समस्या यह है कि जिन मामलों में माया कदनानी और अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, वे मामले सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई द्वारा हैंडिल किए जा रहे है। इसलिए यदि भाजपा सीबीआई को केन्द्र सरकार की एजेंट कहकर अपने नेताओं को बचाना भी चाहे तो बोलते समय उन्हें शब्दों पर घ्यान रखना होगा कि कहीं उनकी बातें सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ न चली जाएं और उन पर अदालत की अवमानना का मामला न बन जाए।

यही कारण है कि भाजपा संसद के अंदर सीबीआई के गलत इस्तेमाल से ज्यादा महंगाई के मसले पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। पार्टी को पता है कि सीबीआई के दुरुपयोग के मसले पर उसे वामपंथी दलों का साथ नहीं मिलेगा। यही कारण है कि भाजपा और वामदलों का अमेरिकी परमाणु करार के मसले पर जो संबंध बना था, वह आज महंगाई के मुद्दे पर भी बना हुआ है।

भाजपा की एक समस्या और है। अमित शाह का यह मामला और भी अदतर रूप घारण कर रहा है। सोहराबुद्दीन शेख, कौसर बी, और तुलसीराम प्रजापति की नकली मुठभेड़ का मामला तो अपनी जगह है ही, केतन पारेख का मामला भी उनके साथ जुड़ने लगा है। गौरतलब है कि 1999-2001 में केनत पारेख से जुड़ा शेयर घोटाला सामने आया था। इसके साथ ही भाजपा के एक सांसद दीनू सोलंकी के खिलाफ एक आरटीआई कार्यकर्त्ता की हत्या का मामला भी सामने आया है। उन पर आरोप है कि उनके निजी व्यापार की जानकारी लेने में दिलचस्पी दिखा रहे उस कार्यकर्त्ता की उन्होंने हत्या करवा दी।

इन मामलों से यही पता चलता है कि भाजपा की राजनीति का रथ कानूनी पचड़ों में फंसता जा रहा है। श्री शाह और सुश्री कदनानी की 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में भारी मतों से जीत हुई थी। 2002 में तो अमित शाह सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले उम्मीदवार थे। माया ने भी अपनी जीत की मार्जिन बढ़ा ली थी। लेकिन बाद में दोनों कानून के शिकंजे में आ गए हैं।

जाहिर है कि 2002 और 3007 की जीत को नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने 2002 के दंगे के दौरान राज्य सरकार की भूमिका को जनता द्वारा सही ठहराने के फैसले के रूप में लिया। एस समय हिन्दुत्व की जगह मोदित्व की चर्चा होती थी। कार्पोरेट सेक्टर भी नरेन्द्र मोदी की तारीफों का पुल बांध रहा था। यही कारण है कि भाजपा भी समझने लगी थी कि उसने नरेन्द्र मोदी के रूप में देश के एक भावी प्रधानमंत्री की तलाश कर ली है। लेकिन अमित शाह प्रकरण भाजपा को परेशान कर रहा है, क्योंकि उसके भावी प्रधानमंत्री के ऊपर भी सीबीआई का खतरा मंडराने लगा है। (संवाद)