संशोधित अनुमान, भारतीय अर्थव्यवस्था में फिलहाल जो कुछ चल रहा है उसके बिल्कुल ही अनुरूप जान पड़ता है। औद्योगिक उत्पादन वृद्धि पिछले आठ महीने से लगातार दहाई अंक में है, हालांकि मई महीने में यह सबसे निचले स्तर 11.5 फीसदी पर आ गयी। उपभोक्ता टिकाऊ जींसों के उत्पादन में पिछले छह महीनों में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है, प्रत्यक्ष कर संग्रहण में 16 फीसदी की वृद्धि हुई है, अप्रत्यक्ष कर संग्रहण 43 फीसदी बढा़ है तथा निर्यात में उल्लेखनीय बढा़ेत्तरी हुई है। उत्पाद शुल्क संग्रहण भी मई में काफी बढा़ जो निवेश में तेजी को दर्शाता है। कोरपोरेट कर संग्रहण भी 21.7 फीसदी बढा़ है। अबतक पहली दो तिमाहियों में वृद्धिदर 8.6 फीसदी रही है। संक्षेप में, चारों तरफ आर्थिक माहौल उत्साहवर्धक है।
दरअसल आईएमएफ ने एशिया के लिए वृद्धिदर अनुमान 6.5 फीसदी से संशोधित कर 7.5 फीसदी कर दिया है। वैश्विक वृद्धिदर 4.5 फीसदी रखी गयी है।
आईएमएफ का विश्व आर्थिक परिदृश्य, जिसमें अनुमान लगाए गए हैं, यह भी कहता है कि 2011 में भारत की वृद्धिदर 8.5 रहेगी क्योंकि वैश्विक मंदी के दौरान विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए आर्थिक कदम तबतक अपना चक्र पूरा कर लेंगे और अधिकतर देश आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज वापस ले चुके होंगे। आईएमएफ का कहना है कि एशिया की वृद्धिदर 6.75 फीसदी की उदार लेकिन संपोषणीय वृद्धि पर स्थिर हो जाएगी। वैश्विक वृद्धिदर 4.25 पर स्थिर हो जाएगी।
कोष ने इन अनुमानों को व्यक्त करते हुए कुछ चेतावनी भी जारी की है। वह कहता है कि परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि यूरोप वित्तीय घाटे से कैसे निबटता है, विकसित देश अपना वित्तीय समेकन कैसे करते हैं और तेजी से उभरते बाजार वाले देश कैसे अपनी अर्थव्यवस्थाओं में संतुलन लाते हैं। जहां तक यूरोपीय त्रऽण संकट का प्रश्न है तो उसने भारत पर अबतक कोई खास असर नहीं डाला, हालांकि यह यूरोप में ही यूनान से पुर्तगाल और स्पेन की ओर बढा़ है। इसके बावजूद अनिश्चितताएं कायम हैं आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री ओलिवियर ब्लांचार्ड ने कहा, न्न हालांकि हम मंदी के समाप्त होने के प्रति आशावादी हैं लेकिन आगे खतरे भी हैं। न्न
भारतीय वृद्धि काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है क्योंकि यह कृषि क्षेत्र की वृद्धि को प्रभावित करता है। सौभाग्यवश, इस वर्ष अच्छी बारिश हो रही है, हालांकि साथ ही कुछ क्षेत्रों में आयी बाढ अ़ल्पावधि के लिए उत्पादन में परेशानी खड़ी कर सकती है । बारिश में संपूर्ण कमी 16 फीसदी से घटकर अब 10 फीसदी रह गयी है। यद्यपि कृषि संपूर्ण अर्थव्यवस्था में जीडीपी में केवल 18 फीसदी योगदान करती है लेकिन भारत में फिर भी इसका खास महत्व है क्योंकि यह व्यापक रूप से फैली हई है और हमारी जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से इसपर निर्भर है। यही कारण है कि औद्योगिक क्षेत्र भी अपनी वृद्धि के लिए इसकी ओर मुंह ताकता है।
भारतीय वृद्धिदर का स्थान चीन के बाद आता है जहां के लिए आईएमएफ ने इस वर्ष के लिए 10.5 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान व्यक्त किया है। मजबूत घरेलू मांग एक बहुत बड़ा कारक रहा है जिससे भारत पिछले दो वर्षों में मंदी से खास प्रभावित नहीं हुआ जबकि कई देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस अवधि के दौरान प्रोत्साहन पैकेजों और वित्तीय एवं मौद्रिक उपायों के माध्यम से इस मांग में तेजी को बरकरार रखना हमारी आर्थिक नीति का मूलमंत्र रहा। हालांकि यह परिस्थितियों से निबटने में हमारे साथ खड़ा रहा लेकिन इससे मुद्रास्फीति दबाव को भी बल मिला। इसलिए अब सुव्यवस्थित तरीके से सामान्य समय में लौटने का समय आ गया है। आरबीआई तरलता घटाने और मुद्रास्फीति कम करने के लिए रिपो और रिजर्व रिपो दरों को बढा़ता रहा हैं। दोनों ही ब्याज दरें है जिसपर आरबीआई अन्य बैंकों को त्रऽण प्रदान करता है और उनसे त्रऽण लेता है।
ब्याजमुक्त अवसंरचना बांड, जो जारी किये जा रहे हैं, से सरकार को मार्च, 2012 में समाप्त हो रही ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में करीब 500 अरब डालर की राशि मिलेगी और उसके बाद उससे भी अधिक राशि मिलेगी। चूंकि बांड पांच वर्ष की लॉक इन अवधि के साथ 10 वर्षों के लिए है , इसलिए धनराशि सरकार के पास लंबे समय तक रहेगी। उत्पाद शुल्क चरणबद्ध तरीके से हटाये जा रहे हैं। थ्री जी की निलामी से मिलने वाली कमाई से भी वित्तीय घाटे दूर करने में मदद मिलेगी।
सरकार को विश्वास है कि मुद्रास्फीति दर, जो दहाई अंक तक पहुंच गयी है, इस वर्ष के अंततक काफी नीचे आ जाएगी। वित्तीय घाटा भी तबतक 5.5 फीसदी जीडीपी रह जाने की उम्मीद है। खाद्य मुद्रास्फीति, जो बहुत बड़ी चिंता है के भी नीचे आने की संभावना है क्योंकि तबतक बाजार में नयी फसल आ जाएगी। फिलहाल यह पिछले महीने तीन प्रतिशत नीचे आने के साथ ही 12.63 फीसदी है।
अर्थशास्त्रियों को विश्वास है कि र्इंधन के दामों में हाल ही में की गयी वृद्धि के चलते खाद्य मुद्रास्फीति कुछ समय तक ऊंची ही रहेगी। हालांकि सरकार को विश्वास है कि यह 9 फीसदी से अधिक नहीं होगी।
भारत जो कुछ भी कर रहा है उसे कनाडा के टोरंटो में हुए जी-29 सम्मेलन में भी सही कदम माना गया गया है। विश्व के नेताओं का मानना है कि सामान्य अर्थव्यवस्था की ओर वापसी के लिए चरणबद्ध और सावधानी से कदम उठाया जाना चाहिए।
उच्च वृद्धि दर का मतलब ही अधिक नौकरियां और निवेश पर अधिक प्रतिफल मिलना है जिससे निवेश गतिविधियों को और प्रोत्साहन मिलेगा। अतएव, आशावादी होने की जरूरत है।
भारत के लिए आईएमएफ की वृद्धिदर मौजूदा आर्थिक माहौल के अनुरूप
अशोक हांडू - 2010-07-15 11:30
पिछले वित्त वर्ष में 7.4 फीसदी जीडीपी की वार्षिक वृद्धिदर के बाद इस वर्ष वार्षिक वृद्धिदर 9.5 फीसदी रहने की संभावना है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत के लिए ऐसा ही अनुमान लगाया है। यह अनुमान आईएमएफ के ही अप्रैल के अनुमान 8.8फीसदी तथा भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान 8 फीसदी तथा भारत सरकार के अनुमान 8.5 फीसदी से ज्यादा है। आईएमएफ ने इसके पीछे तर्क दिया है कि भारत में बेहतर निवेश माहौल है और सशक्त कोरपोरेट लाभ की संभावना है।