उल्फा का हथियारबंद दस्ता परेश बरुआ के नेतृत्व में अपनी ताकत दिखाने में मशगूल है। वह यह दिखाना चाहता है कि उसके लड़ाके न तो थके हुए हैं और न ही कमजोर पड़े हैं। चार दिनों के अंदर उल्फा के लड़ाकों ने सुरक्षा बलों पर दो हमले कर डाले। उन हमलों में अर्द्धसैनिक बलों के 9 जवान मारे गए। वे केन्द्र सरकार को संदेश देना चाह रहे हैं कि जेल में बंद उनके नेता चाेि जो कह लें, लेकिन वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन हमलों के बाद असम के मंत्री भूमिधर बर्मन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।

सीआरपी जवानों पर भालुकीडुबी गांव में हुए हमले की जिम्मेदारी उल्फा ले रहा है। लेकिन सरकार का मानना है कि वह उल्फा का काम नहीं है। उसके पीछे सरकार नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के एक गुट का जिम्मेदार बता रही है। उस गुट के नेता रंजन डेमरी को पुलिस ने कुछ दिन पहले ही गिरफ्तार किया था और वह आजकल ग्वालपाड़ा जेल में बंद है।

नगा और मणिपुर के बीच चल रहा तनाव अभी भी बरकरार है। नगा उग्रवादियों के दो गुटों में भी आपसी तनाव है। मुइवा गुट खपलांग गुट को देखना नहीं चाहता है। मुइवा का नाम उस समय सुर्खियों में आया था, जब मई महीने में उसके कारण मणिुपर और नगालैंड की पुलिस के बीच भिड़ंत होते होते बची। मुइवा का जन्म मणिपुर में हुआ था, जहां वह पिछले 4 दशको से नहीं गया है। उसने एकाएक मणिपुर में अपने गांव जाने की घोषणा कर डाली। मणिपुर सरकार ने उसके राज्य में प्रवेश करने पर रोक लगा दी। दूसरी तरफ नगालैंड पुलिस ने मुइवा को मणिपुर में प्रवेश कराने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। दोनों राज्यों की पुलिस के बीच इस तरह संघर्ष की नौबत आ गई। मुइवा ने केन्द्र की सलाह पर मणिपुर के अपने गांव में जाने का विचार त्याग दिया और इस तरह से दो राज्यों की पुलिस के बीच मुठभेड़ टल गई। (संवाद)