ओदारुपु यात्रा के द्वारा जगन कांग्रेस आलाकमान के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। उस माहौल मे तेलंगना के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस की समस्या कई गुना ज्यादा बढ़ा दिया है। कांगेस के पास इस समय राज्य में मजबूत नेतृत्व नहीं है। मुख्यमंत्री रोसैया एक कमजोर नेता साबित हुए हैं। उसके अलावा उनकी सरकार के सामने अस्थिरता का खतरा बना हुआ है। जगन के साथ कांग्रेस के 30 विधायक मजबूती से जुड़े हुए हैं। यदि उन्हें कांग्रेस से निकाला गया अथवा उन्होने खुद पार्टी छोड़ी तो ये 30 विधायक भी उनके साथ पार्टी छोड देंगे। फिर कांग्रेस की सरकार के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो जाएगा।
चुनावी नतीजों से पता चलता है कि क्षेत्र में अलग राज्य की मांग को जबर्दस्त समर्थन हासिल है। टीआरएस ने 12 में से 11 क्षेत्रों में जीत हासिल की। 12वीं सीट पर भाजपा की जीत हुई है। ये 12 सीटें तेलंगना राज्य के समर्थन में 12 विधायको द्वारा इस्तीफा देने के कारण खाली हुई थी। उनमें से 10 सीटों को तो टीआरण्स ने ही खाली किया था। एक सीट भाजपा पे खाली की थी, जबकि एक अन्य सीट टीडीपी के विधायक के विधानसभा से त्यागपत्र के कारण खाली हुई थी। टीआरएस और भाजपा ने अपनी सभी सीटों को फिर से जीत लिया, जबकि टीडीपी द्वारा खाली की गई सीट को भी टीआरएस ने जीत ली।
जिन सीटों पर चुनाव हुए उनमें से किसी में भी कांग्रेस ने पिछले विधानसभा के आमचुनाव में जीत नहीं हासिल की थी। इसलिए उसे सीटों का कोई नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन उसके उम्मीदवारो की अनेक जगह जमानतें तक जब्त हो गईं। टीआरएस को मिली जीत से ज्यादा मायने उसके उम्मीदवारों द्वारा दर्ज की गई मार्जिन रखती है। उसके उम्मीदवारों ने काफी मतों से जीत हासिल की है। पिछले चुनाव में उसका टीडीपी के साथ चुनावी गठबंधन था। उस गठबंधन के तहम उसने ये सभी सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसने बिना किसी गठबंधन के ही भारी विजस हासिल कर ली।
राज्य कांग्रेस के लोग तेलंगना में हो रहे इन चुनावों में अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा करना चाहते थे। उनको पता था कि क्षेत्रीय भावना काफी मजबूत है और उसके कारण कांग्रेस की जीत संभव नहीं है। कोई भी सीट कांग्रेस के कारण खाली नहीं हुई थी, इसलिए भी वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के केन्द्रीय आलाकमान ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया और कांग्रेस चुनाव लड़कर चारों खाने चित्त हो गई।
टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू ने तो इन उपचुनावों में प्रचार तक नहीं किया। उनकी पार्टी की सीट उनके बागी विधायक ने खाली की थी। उन्हें पता था कि उनकी पार्टी को कोई सफलता नहीं मिलने वाली है इसलिए वे चुनाव प्रचाार के बदले बाभली परियोजना के खिलाफ अपना आंदोलन चलाने के लिए महाराष्ट्र पहुंचे हुए थे।
चुनाव में कांग्रेस की भारी हार तो हो ही गई है, आने वाले दिन उसके लिए और भी खराब हो सकते हैं। केन्द्र सरकार ने तेलगना के मसले पर श्रीकृष्ण आयोग का गठन कर रखा है। आयोग को दिसंबर तक अपनी अनुशंसा देनी है। यदि उसने अलग राज्य के पक्ष में अपनी अनुशंसा दी, तो पूरे आंध प्रदेश में खूनखराबा हो सकता है। राज्य के पक्ष में जितना मजबूत आंदोलन है, उतना ही मजबूत आंदोलन राज्य के विभाजन के खिलाफ भी है। मसला सिर्फ विभाजन का ही नहीं है, बल्कि हैदराबाद का भी है। हैदराबाद विभाजन के बाद किस राज्य में रहेगा, इस पर भी भावनात्मक तू्फान पैदा होंगे, जिसे रोक पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। (संवाद)
आंध्र कांग्रेस का संकट
तेलंगना उपचुनाव के नतीजों से जगन हैं उत्साहित
कल्याणी शंकर - 2010-08-07 11:10
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। तेलंगना में हुए 12 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों के नतीजे आने के बाद तो कांग्रेस की हालत और भी खराब हो गई है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के अनुसार आंध्र में कांग्रेस को दो राक्षसों का सामना करना पड़ रहा है। एक राक्षस तो पूर्व मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन के विद्रोह से पैदा हुआ है, तो दूसरा तेलंगना आंदोलन के मजबूत होने से पैदा हुआ है। कहने की जरूरत नहीं कि पिछले दिनों तेलंगना क्षेत्र के 12 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों में टीआरएस की भारी जीत के बाद अलग राज्य के गठन का आंदोलन और भी मजबूत हुआ है।