कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर और किसी भी दल में जाति जनगणना का विरोध नहीं है। वामपंथी दलो की पश्चिम बंगाल सरकार ने तो बहुत पहले पत्र लिखकर केन्द्र सरकार से जाति जनगणना की मांग कर रखी है। सच कहा जाए, तो राज्य सरकारों में एक मात्र पश्चिम बंगाल की ही सरकार है, जिसने जनगणना प्रारंभ होने के पहले ही जाति जनगणना की मांग कर रखी थी। बाकी गैर कांग्रेस और गैर भाजपा पार्टियों के बीच जाति जनगणना को लेकर कोई मतभेद नहीं है।
कांग्रेस का एक मजबूत गुट जाति जनगणना का विरोध कर रहा है, तों भाजपा के अंदर का एक कमजोर गुट इसके विराध में है। वैसे भाजपा के तीनों वक्ताओं ने लोकसभा में जाति जनगणना के पक्ष में जमकर भाषण किए थे। उसके कारण भाजपा अपने अंतर्विरोधों के बावजूद जाति जनगणना के खिलाफ जा नहीं सकती थी। यही कारण है कि उसने पार्टी के स्तर पर भी अब जाति जनगणना के पक्ष में अपना विचार बना लिया है और अपने विचार से केन्द्र सरकार को अवगत भी करा दिया है।
कांग्रेस एक पार्टी के रूप में इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई है। यदि कांग्रेस भी इसके पक्ष में अभी ही बोल देती हैख् तो उसे केन्द्र सरकार का फैसला ही माना जाएगा, क्योकि केन्द्र मे उसी की नेतृत्ववाली सरकार है। अब जब लगभग सभी अन्य पार्टियां जाति जनगणना के पक्ष में बोल चुकी है और वैसा ही करने के लिए मद्रास उच्च न्यायाला का एक आदेश भी है, तो फिर यही माना जाए कि सरकार भी जाति जनगणना के पक्ष में ही फैसला लेगी।
पर जाति जनगणना को लेकर तरह तरह की आशंकाएं उठाई जा रही हैं। कुछ आशंकाएं तो जातियों की गणना से ही संबंधित हैं। 2001 की जनगणना में अनुसूचित जातियो और जनजातियों की अलग अलग गणना भी हुई है। यानी उस जनगणना रिपोर्ट में किसी अनुसूचित जाति की किसी राज्य में कितनी संख्या है उसकी सटीक जानकारी मौजूद है। जिस तर्ज पर अनुसूचित जातियों की गणना की गई थी, यदि उसी तर्ज पर पिछड़े वर्गों की जातियों की भी गणना की गई, तो काम बहुत उलझ जाएगा और सही आंकड़ा आ भी नहीं पाएगा।
इसका कारण है कि किसी राज्य में अनुसूचित जातियों की एक ही सूची है। यानी जो जाति राज्य सरकार की नौकरियो के लिए एससी है, वह केन्द्र सरकार की नौकरियो के लिए भी एससी है, पर पिछड़े वर्गौ के साथ ऐसी बात नहीं है। उसकी किसी भी राज्य में कम से कम दो सूची है। केन्द्र के लिए अलग सूची है, तो राज्य के लिए अलग सूची है। जो जातियां राज्य सूची में हैं, उनमें से कुछ केन्द्रीय सूची में है ही नहीं। उदाहरण के लिए दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के जाट राज्य सूची के अनुसार तो पिछड़े वर्गों में आते हैं, लेकिन पिछड़े वर्गों की केन्द्रीय सूची में वे शामिल नहीं है।
अब यदि उनसे जनगणना कर्मचारी पूछे कि वे पिछड़े वर्गो ंमें आते हैं अथवा नहीं, तो उस सवाल का जवाब देना उनके लिए आसान नहीं होगाए क्योंकि एक सूची में वे पिछड़े वर्ग में हैं, तो दूसरी सूची में वे पिछड़े वर्ग में हैं ही नहीं। किसी किसी राज्य में तो पिछड़े वर्गों की एक से ज्यादा राज्य सूची भी है। एक सूची के लोग अपने को पिछड़ा वर्ग कहते हैं तो दूसरी सूची के लोग अपने को अत्यंत पिछड़ा वर्ग कहते हैं। अलग अलग राज्यों के लिए अलग अलग अलग किस्म के जनगणना फार्म तो बनाए नहीं जा सकते। लिहाजा सही सही जानकारी पाना संभव नहीं हो सकेगा।
एक समस्या और है। वह है कि कोई जाति किसी एक राज्य में अनुसूचित जाति में है, तो वही किसी अन्य राज्य में पिछड़े वर्ग में। एक राज्य के लोग दूसरे राज्य में भी बसे हुए हैं। जनगणना कर्मचारी के सामने वे अपने पुराने राज्य की सूची के अनुसार अपना वर्ग बता सकते हैं और इसके कारण आंकड़ा सही सही इकट्ठा नहीं हो पाएगा। जनगणना कर्मचारियों का काम भी बढ़ जाएगा और उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे अनुसूचित जातिए अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वगों की अपने साथ ढोते चलें और जाति पूछ पूछ व सूची देख देख वे लोगों के जाति स्टैटस का पता लगाएं। इस काम के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए समय भी नहीं बचा है।
यानी यदि जनगणना कर्मचारियो के ऊपर लोगों के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़े वर्ग स्टैटस की जानकारी लाने का जिम्मा दे दिया जाए, तो उनसे यह काम सही सही तरीके से हो ही नहीं पाएगा। इसलिए जाति जनगणना को संचालित करने का एक ही उपाय बचता है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अन्य के 4 कॉलमों की जगह एक कॉलम डाला जाय ओर वह कॉलम जाति का हो। राज्य बदलने से भले जाति का पिछड़ा वर्ग स्टैटस बदल जाता हो, लेकिन जाति नहीं बदलती। एक से अधिक सूची के कारण किसी जाति के लोगों को भले ही अपने पिछड़े वर्ग के स्टैटस को लेकर भ्रम हो लेकिन वह किस जाति का है, इसे लेकर उन्हें कोई भ्रम नहीं है। कर्मचारियो को भी अधिकांश मामले में पता होता है कि जिस व्यक्ति के बारे मे ंवह जानकारी प्राप्त कर रहा है, वह किस जाति का है।
इस तरह से जनगणना कर्मचारियों द्वारा घर घर जाकर सिर्फ जाति की जानकारी लाने से ही जाति जनगणना का उद्देश्य हासिल हो जाता है। जाति के व्यक्तिगत आंकड़ों से बाद में सरकारी कर्मचारी दफ्तरों में बैठकर ही यह पता कर सकते हैं कि किसी राज्य में कुल कितने अनुसूचित जाति के लोग हैं। उसी तरह से पिछड़े वर्गां में शामिल सभी जातियों की जनसंख्या को आपा में जोड़कर उनकी राज्य वार सही सही संख्या हासिल कर ली जा सकती है।
इसलिए जाति जनगणना का सबसे आसान तरीका यही है कि सिर्फ जाति की जनगणना की जाए और जातियों के लोगों की संख्या जानने के बाद अलग अलग वर्गांे की संख्या का पता लगा लिया जाए। कुठ लोग ऐसे भी होंगे, जो अपनी जाति दर्ज नहीं करवाना चाहेंगे और कहेंगे कि उनकी कोई जाति ही नहीं, क्योंकि वे जाति व्यवस्था में विश्वास ही नहीं करते हैं। उनके लिए जाति के कॉलम में ही जातिविहीन लिखा जा सकता है। इससे यह भी पता चल जाएगा कि कितने लोग जाति व्यवस्था के खिलाफ हैं। उनकी संख्या जानकर वेसे लोगों की जमात को बढ़ावा देने के लिए सरकार कदम भी उठा सकती है, क्योंकि सरकार की कोशिश तो यही होनी चाहिए कि समाज जाति के रोग से मुक्त हो जाए। (संवाद)
जनगणना की मुश्किलें
कैसे हो जाति जनगणना
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-08-07 11:17
जनगणना का पहला दौर लगभग समाप्त हो गया है, लेकिन अभी तक सरकार यह निर्णय नहीं कर पाई है कि लोकसभा की भावनाओं का ख्याल करते हुए वह जाति जनगणना कराए या नहीं। वैसे उसके पास इस जाति जनगणना से बचने का शायद कोई रास्ता भी नहीं बचा है, क्योंकि मद्रास उच्च न्यायालय ने पिछले 23 मई को उसे जाति जनगणना करने का आदेश दिया था और उसके आदेश पर अमल रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने अभी तक सर्वाच्च न्यायालय में अपील नहीं की है। अपील नहीं करने का मतलब है कि केन्द्र सरकार सांवैधानिक रूप से भी अब जाति जनगणना करने के लिए विवश है।