'कॉमनवेल्थ` से एक वाकया याद आ गया, बात 1986-87 की है। दिल्ली से निकलनेवाले एक हिंदी दैनिक के दफ्तर में न्यूज डैस्क की बात है। शाम को टेलीप्रिंटर से पीटीआई की कॉमनवेल्थ नेशंस से संबंधित एक खबर आई। चूंकि खबर अंग्रेजी में थी और अखबार हिंदी में इसलिए उसे अनुवाद करना था। अनुवाद जिस व्यक्ति ने किया उसने कॉमनवेल्थ का अनुवाद 'साझा पूंजी` किया। उसके बाद की स्थिति क्या रही होगी... जाने दीजिए, लेकिन वह 'साझा पूंजी` आज तर्कसंगत साबित हो रही है। वाकई इन खेलों की आड़ में साझा पूंजी की ही बंदरबांट हो रही है। बेचारे मणिशंकर अय्यर का चीख-चीख कर गला बैठ गया और अंत में उन्हें भी चुप बैठा दिया गया। भला हो इस देश के कर्ताधर्ताओं का। बेशर्मी की भी एक हद होती है। सबकुछ आइने की तरह साफ-साफ दिखाई दे रहा है और फिर भी कहा जा रहा है कि नहीं सबकुछ ठीक हो रहा है। वास्तव में हो तो सब ठीक ही रहा है आखिर सबका हिस्सा जो बंधा है, लेकिन इस हिस्से में 'कॉमन मैन` गायब है। वह बेचारा कॉमनवेल्थ के नाम पर उजड़ रहा है, दो वक्त की रोटी जुटाने में ही दम तोड़ रहा है।
इन खेलों का मुख्य सूत्रधार सुरेश कलमाडी अपनी पीठ ठोक रहा है, यही नहीं उसने ओलंपिक खेलों की दावेदारी का शिगूफा भी छोड़ दिया है। सरकार को हर खेल में माहिर कलमाड़ी को खेल मंत्रालय का मुखिया बना देना चाहिए। फिर देखिए देश की तरक्की में कैसे चार चांद लगते हैं। 150 करोड़ रुपये की प्लानिंग से शुरू हुए इस खेल के 10000 करोड़ पार करने की उम्मीद है। 2000 करोड़ रुपये तो मेहमानवाजी में ही खर्च होंगे। कहा जा रहा है कि चीन में ओलंपिक पर खर्च हुए एक लाख 40 हजार करोड़ के मुकाबले यह कुछ भी नहीं है। वह भी तब जब स्वयं खेल मंत्रालय यह मान रहा है कि कॉमनवेल्थ का बजट सत्रह गुना बढ़ गया है। कलमाडी और न जाने कौन-कौन भले ही कितने बड़े घोटाले क्यों न कर लें, लेकिन वे नपेंगे नहीं। ऐसा दावा हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज तक इस देश में ऐसे कारनामे करनेवाला शायद ही नपा हो, तो भला कलमाडी एंड कंपनी कैसे नप जाएगी। हां कलमाडी के कारनामों का एक सबसे खतरनाक नतीजा यह निकला है कि भारत सरकार ने तय किया है कि 2012 के लिए एशियार्ड आयोजित करने का जो प्रस्ताव भारत का खेल मंत्रालय करनेवाला था वह अब नहीं किया जाएगा। इस तरह के प्रस्ताव करने के लिए मंत्रिमंडल की सहमति जरूरी है और कॉमनवेल्थ विवाद के बाद इस तरह की सहमति मिलना फिलहाल संभव नहीं दिखता है।
कलमाडी कॉमनवेल्थ गेम्स के ललित मोदी साबित हो रहे हैं। स्विट्जरलैंड की कपंनी इवेंट नॉलेज सर्विस, ऑस्ट्रेलिया की स्पोर्ट्स मार्केंटिंग एंड मैनजमेंट, मेलबर्न नाम की दो कंपनियों की जांच के बाद बहुत कुछ सामने आनेवाला है। ये दोनों कंपनियां अब प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में हैं। आस्ट्रेलिया की यह वही कंपनी है जिसने मारीशस की वल्र्ड स्पोर्टस ग्रुप कंपनी से तालमेल करके आईपीएल में 380 करोड़ रुपए बटोरे थे। स्पोर्ट्स मार्केंटिंग एंड मैनजमेंट की सिंगापुर शाखा ने कॉमनवेल्थ खेलों में 10 अरब डॉलर के विज्ञापन लाने का वादा किया था जिस पर उसे 23 प्रतिशत कमीशन मिलना था। इस कंपनी से भी कलमाडी के पुराने रिश्ते हैं। 2008 में पुणे में हुए कॉमनवेल्थ युवा खेलों के आयोजन में भी इस कंपनी को ही अनुबंध दिया गया था। बहरहाल कलमाडी कलम आड़ी करके खूब गुल खिला रहे हैं। आगे भी वे अपने खेल में सबको न उलझा लें इसमें शक की गुंजाइश कम ही दिखती है। इस महान खिलाड़ी के महान खेल के आगे देश नतमस्तक है, इसीलिए तो हमारा भारत महान है। (राष्ट्रपक्ष)
राष्ट्रमंडल खेल
महान देश का महान खिलाड़ी—कलमाडी
कैलाश धूलिया - 2010-08-09 12:54
कॉमनवेल्थ खेलों की आड़ में खेले जा रहे खेल की असलियत अब सामने आने लगी है। अभी तो खेल होने में लगभग तीन माह बाकी हैं और उससे पहले ही घोटालों की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। खेल अभी खेले भी नहीं गये और पारितोषिक के रूप में करोड़ों के वारे न्यारे हो गए। दिल थाम के बैठिए यह पारितोषिक अरबों में पहुंचनेवाला है। अधिकतर लोगों का मानना है कि देश में बड़े खेल आयोजन होने से देश में बाहर का पैसा आता है, देश के बुनियादी ढांचे का विकास होता है, दुनिया में देश का नाम रोशन होता है.... ये तीनों बातें अपनी जगह ठीक हैं। देश में बाहर से खूब पैसा आया है, बुनियादी ढांचे का विकास— बनने के साथ ही उखड़ती टाइलें, रिसते स्टेडियम और न जाने क्या... बेहतरीन ढंग से हो रहा है। रही बात देश के नाम रोशन की, वह तो हो ही रहा है। खेलों से पहले देश दुनियाभर में चर्चा में आ गया है। वैसे भी खेल खत्म होने के बाद कौन-सा चर्चा में आ जाता। पदकों के लिए हम तरसते ही रहते हैं अगर इस बार भी तरस गए तो कौन-सी आफत आ जाएगी।