अनोखे की नजर सड़क पर रहती है। अपने चाहनेवालों को वे चुपचाप उस सड़क से निकलने का कोई मौका ही नहीं देते हैं। छुट्टी का दिन था, अनोखे की उन पर नजर पड़ ही गयी। बच कर निकलने का कोई सवाल ही नहीं था।
आवाज गूंजी- चुपके-चुपके कहां खिसक रहे हो?

मैंने सकपकाते हुए कहा- कहीं नहीं, आपसे मिलने आने ही वाला था, सोचा लौटते समय मिल लूंगा।

अनोखे बोले- अब आ ही गये हो तो बैठो। कई दिनों से एक नया आइडिया आया है, सोचा मित्रों से सलाह ले लूं।
मुझसे रहा नहीं गया। पूछ ही बैठा- कौन सा नया आइडिया लेकर बैठे हो?

अनोखे ने मुस्कराते हुए कहा -ऐसा आइडिया है पूछो मत। ऐसा है कि अपने जाननेवालों में दर्जन-डेढ़ दर्जन नाम हैं। वे नाम ऐसे हैं जो वर्षों पहले राजनीति में और सरकार में खूब चलते थे, अब वे किसी काम के तो रहे नहीं, लेकिन नाम तो नाम ही है। अगर भैंस बांझ हो जाय और बकरी बीस किलो दूध दे दे फिर भी भैंस तो भैंस ही रहेगी।

अब पूछना ही पड़ा- यह भैंस-बकरी कहां से आ गये?

अनोखे ने तब कहा- ये तो मैं उदाहरण दे रहा था। मेरे जाननेवालों में कई भूतपूर्व दिग्गज राजनीतिक नेता हैं, जो कई पर्टियों के हैं, वर्षों पहले रिटायर नौकरशाह हैं वैसे वे कुछ भी नहीं कर सकते, कोई उनकी सुनता ही नहीं, फिर भी हैं वे बड़े काम की चीज।

तब विस्तार से अपना नया आइडिया समझाने लगे-इस देश में धनकुबेरों की कमी नहीं है जो अपना सम्मान कराना चाहते हैं या अपने बुजुर्गों की पुण्य तिथि या निधन पर शोकसभा करना चाहते हैं। उनके पास धन तो खूब है पर विचार नहीं। ऐसे असहाय लोगों के सदा सहाय रहने का विचार कई दिनों से परेशान कर रहा था उसे मूर्तरूप देना चाहता हूं।

इसमें होगा क्या?- मैंने पूछ ही लिया।

अनोखे ने बहुत गंभीरता से बताया- इसमें ऐसा है कि कुछ कागजी संस्थाएं बना ली हैं। किसी के निधन पर शोकसभा के लिए पोस्टर, वक्ता और श्रोता की व्यवस्था का काम यह सेवा केंद्र करेगा। उसी तरह सम्मान समारोह के लिए भी अध्यक्ष, मुख्य अतिथि से लेकर ताली बजाने के लिए दर्शक भी जुटा दिये जायेंगे। श्रीफल, शाल और माला सम्मानित होनेवालों को समर्पित किये जायेंगे। इसमें बजट का केवल दस परसेंट अपने लिए पहले ही बचा लेंगे। आखिर सेवा के लिए जिन्दा भी तो रहना है।

अनोखे का यह नया अइडिया वाकई में अनोखा था। उनके दिमाग का लोहा मानना ही पड़ा और उनके इस महान आइडिया के लिए उन्हें बधाई देकर मैं चुपचाप बाहर निकल आया। (राष्ट्रपक्ष)