गढ़वाल नरेश प्रद्युम्न शाह के गोरख्याणी युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने के बाद लगभग ग्यारह वर्षों 1804 से 1815 तक गढ़वाल मंस गोरखा शासन रहा। राजकुंवर सुदर्शन शाह ने बारह वर्षों तक कनखल हरिद्वार में निर्वासित जीवन बिताया। अंग्रेजी सेना की मदद से सुदर्शन शाह ने सन्ï 1815 में पुन: अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त किया। पुराने विशाल गढ़वाल राज्य के स्थान पर महाराज सुदर्शन शाह को अपने पुरखों की रियासत का एक छोटा-सा टुकड़ा टिहरी राज्य के रूप में नसीब हुआ। पुरखों की राजधानी श्रीनगर के स्थान पर सुदर्शन शाह को भागीरथी व भिलंगना के संगम पर बने एक चौरस तप्पड़ टिहरी नाम के स्थान पर अपनी नई राजधानी स्थापित करनी पड़ी।

सुदर्शन शाह के कम असल पुत्र भवानी शाह ने सनï 1859 से सनï 1871 तक राज्य किया। भवानी शाह के पुत्र प्रताप शाह ने 1871 से 1886 तक शासन किया। प्रताप शाह की चार रानियां थी। प्रथम दो रानियों से कोई सन्तान नहीं हुई। तीसरी रानी से दो पुत्र उत्पन्न हुए लेकिन दोनों पुत्र अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए। राजा सुदर्शन शाह को रानी गुलेरिया (मण्डी राज्य की राजकुमारी) से तीन पुत्र और दो पुत्रियां पैदा हुईं। पहला पुत्र कीर्तिशाह 1874 में जो बाद में टिहरी रियासत का चौथा महाराज बना, दूसरा पुत्र विचित्र शाह 1880 में पैदा हुआ और तीसरा पुत्र सुन्दर शाह 1882 में पैदा हुआ।

विचित्र शाह को आखेट का बहुत शौक था। तीतर, बटेर, चकोर आदि पक्षियों का शिकार उनके लिए साधारण बात थी। एक बार विचित्र शाह तीतर बटेर का आखेट करते-करते क्यारी पलाग से सटे जंगल की ओर विचरण कर रहे थे तो उनकी नजर भागीरथी नदी के बायीं तरफ फैले एक विशाल चौरस तप्पड़ पर पड़ी जो काफी लम्बा चौड़ा तथा नदी तट पर होने के कारण काफी उपजाऊ था। विचित्र शाह के मन में उस मैदान पर फलदार वृक्षों का बाग लगाने का विचार आया। यह घटना सन 1903 के आसपास की है तब उनकी आयु मात्र तेईस वर्ष की थी। राजकुमार विचित्र शाह अगले ही कछ दिनों में उस मैदान का भौतिक निरीक्षण करने घोड़े पर सवार होकर कुछ स्थानीय मालगुजारों के साथ निकल पड़े। लगभग 400 नाली जमीन का चयन कर दिलाया गया। स्थानीय प्रजा की मदद से कुछ ही दिनों में उस चौरस भूमि को और भी समतल बना दिया गया। मैदान में उगी झाडिय़ों को काटा गया और फलदार पौधों की एक पौधशाला तैयार की गयी। उस चौरस मैदान का नाम राजकुमार विचित्र शाह ने अपने नाम पर विचित्र पुर रखा। पौधशाला में पौध की निगरानी और चौकीदारी के लिए चारवा पठाली की छतवाला मकान भी बनवा दिया गया। पौधों को जीवित रखने के लिए सिंचाई की स्थाई व्यवस्था नहीं थी। भागीरथी नदी का जल स्तर काफी नीचे था और वहां से जल आपूर्ति कष्टï साध्य थी। विचित्र शाह को बताया गया कि सिंचाई की स्थाई व्यवस्था चन्द्रभागा गाड के मरूड़़ा गाड नामी तोक से नहर निकाल कर की जा सकती है। विचित्र शाह ने नहर निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर आरम्भ करवा दिया। चौड़ी और भदली के गधेरों पर दो डाट (बिना सरियावाले) पुल बनवा कर नहर निर्माण का कार्य आगे बढ़ाया गया। एक वर्ष की अवधि सन 1905 में नहर बनकर तैयार हो गई और विचित्रपुर के बाग को सिंचाई की स्थाई नहर सुलभ हो गई। फलदार वृक्ष नदी से निर्मित उपजाऊ मैदान पर खूब फले और बढ़े। नहर निर्माण में थानकोट, जागटी, भदली, सिमलासू आल्ली, हलजेंट, डोब, डांगी, सौकुल्ड के प्रत्येक परिवार पर खेण श्रमदान लगाई गई। जिस परिवार से खेणवाला जाने में असमर्थ होता वह नकद रुपया देकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता था। प्रत्येक गांव के मालगुजार सयाणों कामदार और कमीणों के माध्यम से स्थानीय जनता ने नहर बनाने में अपना योगदान दिया।

इस नहर पर राज परिवार का आंशिक खर्च हुआ, शेष व्यय क्षेत्र की जनता ने खेण के रूप में वहन किया। चार-पांच साल की अवधि में बाग फल देने लगा लेकिन फलों की बिक्री को उपयुक्त बाजार न मिलने के कारण तथा जंगली पशुओं और पक्षियों से बाग को नुकसान पहुंचने के कारण राजकुमार विचित्र शाह ने विचित्रपुर को बेचने का विचार बनाया। उतने बड़े बाग को खरीदना किसी भी गांव के किसी एक परिवार की क्षमता से बाहर था। चम्बार के समीप विरोगी गांव के महेशानन्द कोठारी इलाके में एकमात्र साहूकार थे। कहा जाता है कि सेठ महेशानन्द अपने रुपयों को कभी मांदरा बिछाकर खलिहान में सुखाया करता था। ऐसा वह तब करता था जब चांदी के विक्टोरिया छाप कलदार रुपए आक्सीकरण के कारण हरे या धुंधले पड़ जाते थे। सेठ महेशानन्द ने राजकुमार विचित्र शाह से विचित्रपुर खरीदने की अपनी इच्छा जाहिर की। विचित्रपुर नदी की एक तरफ तथा विरोगी दूसरी तरफ है। सौदा थोड़ा जटिल था क्योंकि तब झूला पुल या आने जाने के लिए नावें नहीं थी। एकमात्र साधन भासौं में उपलब्ध डिंडला या सांगो था जिसका संचालन वहां पर बसे धुनार जाति के परिवार करते थे। विचित्रपुर से लगा हुआ सिमलासू गांव के रागंड़ जाति के ठाकुर परिवार भी इस जमीन को लेने के इच्छुक थे लेकिन उनके पास रुपयों की व्यवस्था नहीं थी। रांगड़ ठाकुरों ने मिलकर सेठ महेशानन्द से पहले तो यह आग्रह किया कि वे उस जमीन को सिमलासू के परिवारों का खरीदने दें। सेठ मान गया और सिमलासू गांव के 22 परिवारों ने मिलकर विचित्रपुर की कीमत चुकाने के लिए रुपये जुटाए। सौदा 10 हजार रुपये में भूमि की कीमत तथा 1000 रुपये रजिस्टी का शुल्क था। कुल ग्यारह हजार रुपये 22 परिवारों ने प्रति परिवार 500 रुपये जमा किए और विचित्रपुर की 400 नाली जमीन अपने नाम दर्ज करवा दी। खरीददारों में 1-इन्द्र सिंह 2-शेर सिंह 3- भाग सिंह 4- गोपाल सिंह 5- गलथी सिंह 6- राम सिंह 7- मोलू सिंह 8- कृपाल सिंह 9- सत्ते सिंह 10- किसन सिंह 11- भरत सिंह 12- दान सिंह 13- हुकम सिंह 14- टेन्टू सिंह 15- कन्ठू सिंह 16- रणजोर सिंह 17- बचन सिंह 18- गोकल सिंह 19- सुन्दर सिंह 20- लखण सिंह 21- रामशरण सिंह तथा 22- रणू सिंह सभी रांगड़ जाति के ठाकुर थे। (लेखक को खरीददारों की यह जानकारी बाईस खरीददारों में से एक स्व. दान सिंह के पौत्र अवतार सिंह रांगड़ जो एक राजकीय विद्यालय में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत हैं और सेवानिवृत्ति के समीप हैं उनके जमीन संबंधी दस्तावेजों से प्राप्त हुई है)।

विचित्रपुर क्योंकि टिहरी रियासत के एक राजकुमार ने बसाया था इसलिए वह एक ऐतिहासिक महत्त्व का कहा जा सकता है और वह भी टिहरी रियासत की राजधानी रही पुरानी टिहरी की भांति जल समाधि लेने जा रहा है इसलिए भी उसका महत्त्व और भी बढ़ गया है। कोटेश्वर बांध परियोजना पेंदार्श ने वर्तमान में विचित्रपुर का एक बड़ा भू भाग सिमलासू के लगभग साठ-सत्तर परिवारों को 98 लाख रुपया का मुआवजा देकर अधिगृहित कर लिया है। विचित्रपुर से खेत नम्बर 77-78-79-246-247-248-250-254-256-257-258-259-260-261-262-263 तथा 264 का लगभग 60 नाली भू-क्षेत्र दिनांक 22 सितम्बर 2006 को कोटेश्वर बांध परियोजना ने अधिगृहित कर लिया है। कोटेश्वर बांध के जलाशय से विद्युत उत्पादन के साथ-साथ टिहरी बांध की झील में पानी को वापस पम्प करके जल भराव किया जाना है ताकि टिहरी बांध की झील का जल स्तर विद्युत उत्पादन के लायक बना रह सके।

जो नहर राजकुमार विचित्रशाह ने उन्नीसवीं सदी के आरम्भिक दशक में विचित्रपुर के फल उद्यान की सिंचाई के लिए बनवाई थी वह अब उत्तराखण्ड सरकार के भ्रष्टïतम विभागों में से एक सिंचाई विभाग के हवाले है। कई बार उसकी मरम्मत के नाम पर लाखों रुपए सिंचाई विभाग डकार चुका है। अब तो यह नहर मात्र पैदल आने-जानेवालों के लिए मार्ग के रूप में जीवित है और सिंचाई विभाग ने दूसरे स्रोत से नई नहर का निर्माण करवा दिया है।
विचित्रपुर को खरीदने में जहां सिमलासू गांव के 22 परिवारों ने मात्र 500 रुपये प्रति परिवार कुल ग्यारह हजार रुपये जुटाए थे वहीं आज उनके सत्तर उत्तराधिकारियों को लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रति परिवार कुल 98 लाख रुपये का मुआवजा मिला है। विचित्रपुर की जल समाधि से किसी परिवार या गांव को विस्थापित नहीं होना पड़ा क्योंकि विचित्रपुर मात्र कास्त की जानेवाली जमीन थी लेकिन विचित्रपुर के मौलिक खरीददारों की उस समय की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है जब उन्होंने पांच सौ रुपये जुटाने के लिए न जाने किस-किस के आगे हाथ फैलाए होंगे। उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में यदि किसी के पास एक सौ रुपये भी होता था तो उसकी गिनती साहूकारों की सूचि में होने लगती थी।

विचित्रपुर निकट भविष्य में जल समाधि लेने जा रहा है जिसके साथ-साथ टिहरी गढ़वाल जिले के प्रताप नगर के संस्थापक राजा महाराज प्रताप शाह की रानी गुलेरिया से जन्मे दूसरे पुत्र राजकुमार विचित्रशाह को याद करने का अवसर इतिहासविदों को भी मिल गया। (राष्ट्रपक्ष)