सभी गुटों का प्रतिनिधित्व देने का वायदा करते हुए जो सूची जारी की गई, वह एकतरफा थी। इसलिए पार्टी अध्यक्ष को इसमें थोड़ा संशोधन भी करना पड़ा। उसमें से कुछ विवादास्पद नेताओं के नाम हटा दिए गए। कुछ वरिष्ठ नेताओं का यह बात नागवार गुजरी है कि उन्हें क्षेत्रीय ईकाइयों में छोटे पद दे दिए गए हैं। इसके कारण उत्होनंे पदभार स्वीकारने से इनकार कर दिया है। लल्लू सिंह और जेपी चतुर्वेदी जैसे नेताओं ने मिले पदों को अस्वीकार कर दिया है।

लल्लू सिंह और जेपी चतुर्वेदी खुद प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल थे। उन्हें स्थानीय ईकाई का प्रमुख बना दिया गया है, जिसके कारण वे दोनों खफा है। पूर्व सांसद सत्यदेव सिंह भी नाराज हैं, क्योंकि उन्हें पार्टी प्रवक्ता बनाया गया है। विधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह को कानपुर की क्षेत्रीय ईकाई का अध्यक्ष बना दिया गया है। इसके कारण वे नाराज हैं।

जौनपुर से सांसद रहे विद्यासागर सोनकर भी नाराज हैं। केशरीनाथ के कार्यकाल में उन्हें एससी- एसटी मोर्चे का अध्यक्ष बनाया गया था। इस बार भी उन्हें वही पद दिया गया है। वे उपाध्यक्ष अथवा महासचिव का पद चाह रहे थे। असंतुष्टों को संतुष्ट करने के लिए दो प्रवक्ता और दो अतिरिक्त प्रवक्ता को नामित किया गया था। बाद में पांच प्रवक्ता घोषित कर दिए गए। सत्यदेव सिंह ने प्रवक्ता का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।

वरिष्ठ नेता हीरो बाजपेयी और जयपाल सिंह भी नाराज हैं। श्री बाजपेयी पहले मीडिया देखा करते थे। जयपाल सिंह राजनाथ सिंह के बहुत नजदीक रहे हैं। उनकी नाराजगी कारण यह है कि उनका नाम ही सूची में शामिल नहीं हैं। उनका कहना है कि जिन नेताओं का पार्टी के लिए योगदान रहा है, सूची बनाते समय उनको नजरअंदाज कर दिया गया है। उनका आरोप है कि अनुभवहीन और नए लोगों को महत्वपूर्ण पद दे दिए गए हैं।

नेताओं का कहना है कि महिलाओं को भी समिति में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। पार्टी प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित ने यह स्वीकार किया कि समिति से अनेक वरिष्ठ नेताओं को असंतोष है। एक असंतुष्ट नेता आइपी सिंह ने तो पार्टी के दफ्तर में ही हगामा खड़ा कर दिया। उनका कहना था कि पार्टी ने उन लोगों को बड़े पद दे दिए, जिन्होंने चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचाई थी।

दिलचस्प बात यह है कि 38 सदस्यीय सूची में अनेक बड़े नेताओं के बेटे को शामिल किया गया है। लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन को भी इसमें शामिल किया गया है। यहां गौरतलब है कि लालजी टंडन लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद विधानसभा की खाली सीट से अपने बेटे आशुतोष को लड़ाना चाहते थे, लेकिन पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने उनकी बात नहीं मानी और टिकट किसी और को दिया गया। गुस्से में लालजी टंडन ने अपने क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार के लिए प्रचार ही नहीं किया और उसकी हार हो गई। (संवाद)