उदाहरण के लिए जम्मू और कश्मीर की ही स्थिति लें, जिसके संबंध में इस तथ्य को कम करके बताया जा रहा है कि पिछले चार वर्षों से राज्य में सीमा पर से आतंकवादियों की घुसपैठ की गतिविधियों में दोगुनी गति आ गयी है।
अलगाववाद, आतंकवाद, और नक्सलवाद, जिनके कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा गंभीर खतरे में पड़ गयी है, पर यदि नजर डालें तो साफ जाहिर होता है कि देश के लगभग सभी राज्य कमोबेश इनकी चपेट में आ गये हैं जिसके कारण भारत का आंतरिक सुरक्षा खर्च बढ़ गया है और उन सभी इलाकों के लिए सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ रहे हैं जहां लोगों का जमावड़ा होता है – जैसे मेला, बाजार, जलसा, मॉल, रेलवे स्टेशन, होटल आदि। सरकारी और गैर सरकारी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों जिनमें औद्योगिक और अनुसंधान के प्रतिष्ठान भी शामिल हैं, के लिए भी सुरक्षा इंतजाम करने पड़ रहे हैं। देश के सभी बड़े शहर इस समय आतंकवादी हिंसा और विध्वंस के खतरे का सामना कर रहे हैं।
कुल मिलाकर आतंकवादी हिंसा और विध्वंस की गतिविधियां संपूर्ण भारत में संगठित तौर पर चल रहीं हैं, लेकिन कुछ क्षेत्र विशेषों में इनका प्रकोप ज्यादा है।
भारत में आतंकवादी हिंसा और विध्वंस के अनेक आयाम हैं। हिंसा और विध्वंस की अनेक गतिविधियों का संचालन विदेशी भूमि से विदेशियों द्वारा किया जा रहा है जिनका उद्देश्य भारत को अस्थिर और कमजोर करना है। दूसरी तरह की गतिविधियां अलगाववादी चला रहे हैं जो भारत से अलग होना चाहते हैं। तीसरी तरह की जेहादी गतिविधियां धर्म विशेष के नाम पर चल रही हैं जो भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य नहीं रहने देना चाहते तथा एक धर्म विशेष का धार्मिक राष्ट्र बनाने पर तुले हुए हैं। चौथी तरह की नक्सली या माओवादी गतिविधियां हैं जो इस देश के अंदर वामपंथी शासन चाहते हैं, लेकिन लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हुए बिना।
भारतीय सुरक्षा बलों को लिए चुनौती बन गयी ये गतिविधियां इस समय देश के तीन हिस्सों में सघन हैं। ये सघन हिंसा और उपद्रव वाले क्षेत्र हैं - जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्य विशेषकर असम और वामपंथी उग्रवाद की पट्टी जो नेपाल की सीमा से लेकर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश।
कश्मीर के परिदृश्य में, हिंसा एवं हताहतों की घटनाओं के मामले में बोधगम्य सुधार पाया गया
है, जो सामान्य स्थिति की और अग्रसर होने का परिचायक तो है, लेकिन इस दिशा में फूंक-फूंककर कदम रखने की आवश्यकता है क्योंकि 2008 की तदनुरूप अवधि की तुलना में नागरिकों एवं सुरक्षा बलों में घटनाओं और हताहतों की संख्या के मामले में बढ़ोतरी के साथ-साथ सीमा पार से घुसपैठ की गतिविधियां एकाएक काफी बढ़ गयी हैं।
पिछले कुछ वर्षों में वामपंथी उग्रवादी हिंसा की बहुलता मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़ उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र में रही है। बड़े-बड़े आंदोलनों और हिंसा तथा विध्वंस की घटनाएं लगातार घट रही हैं जिनके कारण लोक व्यवस्था गड़बड़ाई है और सामान्य जीवन अव्यवस्थित हुआ है।
देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा कुछ अन्य आंदोलनों से भी हुआ लेकिन इन्हें अलग श्रेणी में रखना ही उपयुक्त होगा। ऐसे दो आंदोलनों का विशेष रुप से जिक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा जिनमें से एक पृथक तेलंगाना राज्य के विरोध और समर्थन में आन्ध्र प्रदेश में और दूसरा पृथक
गोरखालैंड की मांग के संदर्भ में पश्चिम बंगाल में हुआ। देश में साम्प्रदायिक स्थिति कमोबेश इस समय नियंत्रण में है और जातिवादी हिंसा और आंदोलन भी छिट-पुट ही रहे है।
वर्ष 2009-10 में देश के सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार द्वारा कई नए उपाय किए गए हैं जिससे कि इसे वैश्विक आतंकवाद से पनपी गंभीर चुनौती का सामना करने योग्य बनाया जा सके। इनमें राष्ट्रीय जांच एजेन्सी (एन आई ए) को कार्यात्मक बनाना, चार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एन एस जी) हबों की स्थापना करना जिससे कि किसी संभावित आतंकी हमले से तीव्र एवं प्रभावी ढंग से निपटना सुनिश्चित हो सके, आसूचना ब्यूरो (आई बी) की क्षमता को बढ़ाना, आई बी में मल्टी-एजेन्सी सेंटर को सुदृढ़ बनाना जिससे कि यह चौबीस घंटे कार्य करने योग्य बन सके तथा तटीय सुरक्षा को मजबूत करना शामिल हैं।
ये उपाय विशेष रूप से नवम्बर, 2008 में मुम्बई में हुए आतंकी हमले के बाद समग्र आन्तरिक
सुरक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए किये गये हैं।
नक्सलवाद के खतरे से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने कई मुख्य पहल की है और नक्सल-प्रभावित राज्यों के साथ कई बार विचार-विमर्श करने के बाद विशेष रूप से प्रभावित राज्यों के द्वि-जंक्शनों एवं त्रि-जंक्शनों पर समन्वित तथा संयुक्त कार्रवाई को गति प्रदान करने के लिए एक संयुक्त कार्य योजना को स्वीकृति प्रदान की।
प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में आन्तरिक सुरक्षा संबंधी मुख्य मंत्रियों का एक सम्मेलन भी 17 अगस्त, 2009 और 7 फरवरी, 2010 को आयोजित किया गया था, जिसमें आन्तरिक सुरक्षा की
स्थिति पर विस्तार से चर्चा हुई थी और प्राथमिक ध्यानाकर्षण वाले क्षेत्रों एवं उपायों को निर्धारित
किया गया था।
इस सम्मलेन के बाद नक्सल प्रभावित राज्यों बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के
मुख्य मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक दिनांक 9 फरवरी, 2010 को कोलकाता में भी हुई थी जिसकी अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री ने की।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने दिनांक 17 फरवरी, 2010 को मुख्य मंत्री, जम्मू ओर कश्मीर तथा एकीकृत मुख्यालय (यूएचक्यू) के साथ सुरक्षा की स्थिति की समीक्षा की।
अनवरत अभ्यास के एक हिस्से के रूप में केन्द्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर सूचनाओं के आदान प्रदान एवं सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता को सुदृढ़ करने और उन्नत करने के साथ-साथ केन्द्रीय एजेंसियों एवं राज्य सरकारों के बीच कार्यात्मक समन्वय बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन समुचित समन्वय का अभाव बना हुआ है।
जो भी हो, इन उपायों में केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों की क्षमता को बढ़ाना; संयुक्त उपक्रम या निजी औद्योगिक उद्यमों में सी आई एस एफ की तैनाती को सक्षम बनाने हेतु सी आई एस एफ एक्ट में संशोधन; चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद तथा मुम्बई में एन एस जी हबों की स्थापना; किसी आकस्मिक और आपातकालीन स्थिति के समय एन एस जी कर्मियों की आवाजाही के लिए एयरक्राफ्ट हासिल करने हेतु डी जी, एन एस जी को कानूनी अधिकार सौंपा जाना; मल्टी-एजेन्सी सेन्टर, सहायक मल्टी-एजेंसी सेन्टर तथा राज्य की विशेष शाखाओं के बीच ऑनलाईन एवं सुरक्षित सम्पर्क शामिल हैं। निगरानी, सुरक्षा, चौकसी एवं अन्य संबंधित उपकरणों की सहायता
देकर राज्य की विशेष शाखाओं (एस एस बी) को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से एक योजना को हाल में स्वीकृत प्रदान की गई है। इस योजना, में नेटवर्कों, कम्प्यूटरों और आंकड़ों के प्रबंधन के लिए सहायता दी जानी है।
केन्द्र सरकार ने विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 की धारा 45 के मामले में एक समीक्षा समिति का गठन किया है। इस अधिनियम की धारा-51 ए के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए विस्तृत प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए एक आदेश भी जारी किया गया है जिससे कि अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के कारण उभरने वाले अध्यादेशों को कानूनी तौर पर निष्फल-सुरक्षित तरीके से पूरा किया जा सके।
राष्ट्रीय जांच एजेन्सी अधिनियम को 31.12.2008 को कानून बनाकर अधिसूचित किया गया तथा
राष्ट्रीय जांच एजेन्सी का गठन कर दिया गया है। इसके महानिदेशक की नियुक्ति हो गई है और एजेन्सी में विभिन्न स्तरों पर 217 अतिरिक्त पद सृजित किए गए हैं। इस एजेन्सी को अनुसूची में वर्णित अधिनियमों के अंतर्गत अपराधों की जांच और अभियोजन के लिए अध्यादेशित किया गया है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के अंतर्गत किए गए अपराध शामिल हैं जिनका अन्तर-राज्यीय और/अथवा अन्तर्राष्ट्रीय आयाम है। यह केन्द्र सरकार के अधीन कार्य करेगी। दिल्ली स्थित एन आई ए मुख्यालय को ‘‘पुलिस थाना’’ के रूप में अधिसूचित किया गया है। कुल 14 मामले एजेन्सी को जांच एवं अभियोजन के लिए सौंपें गए हैं। इन 14 मामलों में से 2 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किया गया है। असम, दिल्ली, केरल और महाराष्ट्र में विशेष अदालतें कायम की गयी हैं। इसके बाद एन आई ए में समूह ‘ग‘ पदों के लिए भर्ती नियमावली को अधिसूचित कर दिया गया है। यू पी एस सी के परामर्श से समूह ‘क’ एवं ‘ख’ पदों की भर्ती के लिए एक बारगी प्रणाली को तैयार कर लिया गया है।
आसूचना ब्यूरो (आई बी) में चौबीसों घंटे सातों दिन के आधार पर एक बहु-एजंसी केन्द्र (एम ए सी) कार्य कर रहा है। दिनांक 31 दिसंबर, 2008 को एक कार्यपालक आदेश जारी किया गया है। जिसके तहत आई बी के अधीन कार्य कर रहे एम ए सी को बाध्य किया गया है कि वह राज्य सरकार/संघ शासित क्षेत्रों की एजंसियों सहित अन्य सभी एजंसियों के साथ सूचनओं का आदान-प्रदान करें। इसी प्रकार अन्य सभी एजेंसियों को बाध्य किया गया है। कि वे एम ए सी के साथ आसूचना का आदान-प्रदान करें। फिर भी समय पर सूचनाओं के आदान प्रदान करने और सूचनाओं की गुणवत्ता अभी भी काफी घटिया है। जहां सही सूचनाएं दी जाती हैं वहां भी घटना घटित होने के बाद सुरक्षा व्यवस्था सक्रिय होती है। इनके अनेक उदाहरण हैं जो अखबारों में छपते रहे हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि सूचनाएं विध्वंसात्मक गतिविधियां चलाने वालों तक भी पहुंच रही हैं।
एस एम ए सी और राज्य की विशेष शाखाओं के साथ ऑन-लाइन और सुरक्षित कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए हार्ड वेयर लगाये जा रहे हैं और इस दिशा में काम भी हो रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सरकार ने 1.11.2009 से जम्म व कश्मीर में प्री-पेड मोबाइल कनेक्शनों
को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है। प्रतिबंध इस आधार पर लगाया गया कि प्री-पेड सिम उपयुक्त सत्यापन किए बिना ही जारी करने के लिए नकली/जाली दस्तावेज का प्रयोग किया जा रहा था। सेवा प्रदानकर्त्ताओं, दूर संचार विभाग (डी ओ टी) और जम्मू और कश्मीर सरकार के पदाधिकारियों के साथ कई बार चर्चा करने के बाद जम्मू और कश्मीर में मोबाइल अभिदाताओं का सख्ती से पुनः सत्यापित किए जाने संबंधी दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं और उसे अधिसूचित करने के लिए उन्हें डी ओ टी को भेजा गया। डी ओ टी ने प्रि-पेड मोबाइल सेवाएं
बहाल करते हुए तदनुसार जम्मू और कश्मीर में मोबाइल अभिदाताओं का पुनः सत्यापन करने संबंधी दिशानिर्देशों को दिनांक 20 जनवरी, 2010 को अभिसूचित किया।
सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार, राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (नेटग्रिड) की स्थापना करने के लिए सैद्धान्तिक रूप से सहमत हो गई है।
और बिगड़ सकती है भारत की आंतरिक सुरक्षा की स्थिति
विशेष संवाददाता - 2010-08-11 12:48
नई दिल्ली। वैसे केन्द्र सरकार का दावा है कि देश के आन्तरिक सुरक्षा की स्थिति पिछले वर्ष काफी हद तक नियंत्रण में रही। लेकिन यदि देश भर के सभी क्षेत्रों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाएगा कि सरकारी आंकड़ों के खेल के आधार पर ही ऐसा कहा जा रहा है जिसमें हताहतों की संख्या कम बतायी गयी है। सरकार की यह घोषणा सम्पूर्ण सच को नहीं बताती।