लेकिन जाति जनगणना पर प्रबल पक्षधर शरद यादव इस फैसले के सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि जाति जनगणना फरवरी महीने मे उस समय की जानी चाहिए जब जनसंख्या गणक घर घर जाकर लोगों के बारे में जानकारियां इकट्ठी करेंगे।

बायोमेट्रिक फेज में एकत्र जानकारी को वे जनगणना का हिस्सा ही नहीं मानते। उनका कहना है कि वह तो नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर तैयार करने की कसरत है जिसके भविष्य के बारे में अभी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

उस फेज में जाति गणना को लेकर उन्होंने मुख्य रूप से दो आपत्तियां जताई हैं। पहली आपत्ति तो यह है कि उसमें लोगों को कैंप में जाकर जाति की जानकारी देनी होगी, जबकि जनगणना में जानकारी अपने घर पर आए सरकारी कर्मचारी को दी जाती है। कैंप पर जाकर जानकारी देने और घर पर आए कर्मचारी को जानकारी देने में काफी फर्क होता है। कैंप पर सभी लोगों का जाना संभव ही नहीं हो पाता। वे कहते हैं कि कैंप लगाकर मतदाताओं के फोटो खींचने की कसरत पिछले 16 साल से चल रही है, पर अभी तक सभी लोगों के मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाए हैं।

दूसरी आपत्ति उन्हें इस बात को लेकर है कि बायोमेट्रिक फेज में सिर्फ 15 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की ही जानकारी ली जाएगी। जाहिर है उससे कम आयु के लोग उसके रेंज में आएंगे ही नहीं। जबकि जनगणना का मतलब होता है। देश के सभी नागरिको की गणना। जो 20 फरवरी 2011 को पैदा होगा, उसे भी जनगणना में कवर किया जाएगा, जबकि बायोमेट्रिक गणना में 15 साल से ऊपर के ही लोगों को शामिल किया जाएगा।

जाहिर है जाति जनगणना का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। इसके समर्थक सीघे सीघे फरवरी में होने वाले मुंडगणना में सभी लोगों की जाति की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, जबकि सरकार की ओर से बायोमेट्रिक डैटा के साथ जाति की जानकारी इकट्ठा करने की बात की जा रही है। इस मसले पर आने वाले दिनों में राजनैतिक तापमान और भी चढ़ने के आसार हैं, क्योंकि जाति जनगणना के समर्थक नेता जातिगत आंकड़े चाहते हैं और उनका मानना है कि नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर के साथ जाति के मामले को जोड़ देने से जाति का सही आंकड़ा कभी आएगा ही नहीं। (संवाद)