मिजोरम और सिक्किम में पिछले एक वर्ष से स्थितियां कुछ ठीक होती नजर आ रही है लेकिन मेघालय के कुछ हिस्सों में हिंसा की वारदातें होती रही हैं। वर्ष 2009 में अरूणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में हिंसा की घटनाओं की संख्या में गति बनी रही। त्रिपुरा मे सुरक्षा की स्थिति में वर्ष-दर-वर्ष अत्यधिक सुधार हुआ कहा जा सकता है, इस आधार पर कि वहां हिंसा और उपद्रव की घटनाएं कम होती रही हैं। वर्ष 2008 की तुलना में वर्ष 2009 में नागालैंड में हिंसा की घटनाओं की संख्या में भी कमी हुई है।

असम

लेकिन असम की स्थिति लगातार बिगड़ती गयी। वर्ष 2008 में 387 की तुलना में वर्ष 2009 में असम में हिंसा की घटनाओं की संख्या 424 हो गई। फिर भी, उक्त अवधि के दौरान मारे गए नागरिकों/सुरक्षा बलों की संख्या में काफी कमी आई है। वर्ष 2009 में राज्य में निरन्तर घुसपैठ की रपटें आती। गिरफ्तार, मारे गये और आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों की संख्या राज्य में 1,259 रही।

असम में हिंसा, अपहरण, जान से मारने, धन उगाही, आदि की घटनाएं मुख्य रूप से उत्तरी कछार (एन सी) पर्वतीय जिले में दीमा हलम दाओगाह (जोएल गरलोसा) (डीएचडी) (जे) द्वारा की गई थीं। डी एच डी (जोएल गरलोसा) कैडर विगत 2-3 वर्षों से अलग के एन सी पर्वतीय जिलें में बड़ी संख्या में हिंसा की घटनाओं में लिप्त रहे थे। इस गुट के अध्यक्ष को उनके दो सहयोगियों के साथ 4 जून 2009 को गिरफ्तार कर लिया गया था। तब से ही डी एच डी (जे) के 416 कैडरों ने अपने हथियार डाल दिए और वे निर्धारित शिविरों में रह रहे है। अब इस गुट के साथ वार्तालाप चल रहा है। एन सी पर्वतीय जिले में दीमासास और जेमेई नागाज के बीच वंशीय हिंसा में 70 की जाने गईं, 27 व्यक्ति घायल हुए और 614 मकानों को जला दिया गया। असम सरकार द्वारा स्थापित किए गए राहत शिविरों में रह रहे एन सी पर्वतीय जिलें में वंशीय हिंसा से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की बड़ी तादाद अब अपने घरों को लौट गई है लेकिन कुछ व्यक्ति अभी भी वहां रह रहे हैं।

नवम्बर 2009 में उल्फा के दो नेताओं ने सीमा सुरक्षा के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इसके बाद उल्फा के स्वयंभू प्रमुख अरविन्द राज खोवा, उल्फा के स्वयंभू डिप्टी कमांडर राजू बरूआ को उल्फा के आठ अन्य काडरों सहित 4 दिसम्बर 2009 को सीमा सुरक्षा बल द्वारा बंदी बनाया गया था और असम पुलिस को सौंप दिया गया था।

हालांकि यूनाईटेज लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) की ओर से संगठनात्मक स्तर पर अब तक शांति वार्ता के लिए सरकार से कोई औपचारिक अनुरोध नहीं किया गया है, उल्फा की तथाकथित 28वीं बटालियन, जो मुख्यतः ऊपरी असम में सक्रिय है, ने 24 जून, 2008 से एक पक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी है।

असम के कर्बी अंगलॉग जिलें मे सक्रिय कर्बी उग्रवादी गुट को वर्ष 2001 में यूनाईटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिरिटी के एक वार्ता-विरोधी गुट के रूप में गठित किया गया था, जिसे बाद में कर्बी लांगरी एन.सी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (के एल एन एल एफ) का नाम दिया गया। इस गुट का उल्फा के साथ गठजोड़ था और यह 2007 से 2009 के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा में संलग्न रहा।

जो भी हो, दीफू में असम राज्य सरकार द्वारा आयोजित किए गए एक समारोह में 11 फरवरी, 2010 को कर्बी लांगरी एन.सीहिल्स लिबरेशन फ्रंट (के एल एन एल एफ) के 412 काडरों ने अपने हथियार डाल दिए। इस गुट ने राज्य पुलिस के समक्ष 162 विविध हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक सामग्रियां सौप दी।

लेकिन असम की सबसे बड़ी समस्या बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण बढ़ती गयी है। राज्य के लोगों ने इसके खिलाफ अनेक प्रदर्शन किये और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अवैध प्रवासियों को बांग्लादेश वापस भेजने के लिए गिरफ्तार करने का निर्देश भी राज्य पुलिस को दिया है। इस आदेश पर भी धीमी गति से अमल हो रहा है जिसके लिए प्रशासनिक और राजनीतिक सख्शियतें ही ज्याद दोषी हैं।

हालांकि स्वयं को सक्रिय दिखाते हुए सरकार ने असम में अवैध प्रवासियों विशेषकर बांग्लादेशी नागरिकों को रोकने के लिए कई तरह के उपाय करने के दावे किए हैं। इस संबंध में की गई कार्रवाई का एक मुख्य तत्व असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन आर सी) 1951 को अद्यतन बनाने से संबंधित है जो अपने आप में श्रम साध्य और समय साध्य काम है। इसके तहत भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी किये जाने हैं, जिसमें भी भारी गड़बड़ी की शिकायतें हैं। वैसे नियमावली, 2003 में संशोधन कर दिया गया है ताकि असम सरकार असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अद्यतन कर सके।

फिर भी समस्या का समाधान इसलिए नहीं दिखायी दे रहा क्योंकि केन्द्र सरकार और उसके नेतागण अपनी जिम्मेदारी राज्य पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं तथा राज्य अपनी जिम्मेदारी केन्द्र पर। वोट की राजनीति बदस्तूर जारी है।

मणिपुर

मणिपुर अभी भी बड़ी संख्या में आतंकवादी/बागी गुटों की गतिविधियों की चपेट में है। ये समूह प्रतिस्पर्धी मांगों के साथ वंशीय आधार पर बंटे हुए हैं। यहां हिंसा और विध्वंसात्मक गतिविधियों में मुख्य रुप से मेतेई समहू सक्रिय है।

वर्ष 2008 की तुलना में वर्ष 2009 में राज्य में नागरिकों/सुरक्षा बलों की हताहतों की संख्या में कमी आयी है हालांकि सीमा-पार से घुसपैठ जारी है।

दिनांक 23 जुलाई, 2009 को बी.टी.रोड, इंफाल पश्चिम मे पी एल ए संवर्ग का एक संदिग्ध उग्रवादी चोंगखान संजित और श्रीमती थाके चामे रबिना देवी नामक एक सिविलियन महिला मारी गई थी जिसमें सात पुलिस कर्मियों के संलिप्त होने के कारण उन्हें राज्य सरकार ने निलंबित कर दिया है और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक पीठासीन न्यायाधीश से न्यायिक जांच करवाई गई है। इस मामले में सी बी आई जांच भी प्रारम्भ की गई है।

नागालैंड

नागालैंड में हिंसा मुख्य रूप से विभिन्न दलों के बीच अन्तर-गुटीय झड़पों के रूप में है। प्रमुख बागी दलों यथा नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक मुइवाह) (एन एस सी एन) (आई एम) और नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड (खंपलांग) (एन एस सी एन) के बीच अन्तर-गुटीय हिंसा में वर्ष 2009 के दौरान कमी आयी है जो सुरक्षा बलों द्वारा कार्रवाईयों के बेहतर समन्वय तथा फॉरम फॉर नागा रिकॉनसिलिएशन (एफ एन आर) और नागा समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा हिंसा को समाप्त करने एवं शांति कायम करने के लिए हाथ बढ़ाने के प्रयासों के कारण हुआ।

एन एस सी एन (आई/एम) के साथ शांति की भी पहल हुई है और वार्ता के लिए भारत सरकार ने श्री आर.एस पांडे को भारत के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया है।

पूर्वोत्तर भारत मे पहल

अलग अलग वंशीय दलों की बहुलता और क्षेत्र में परिणामी जटिल परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसे दलों के साथ वार्ता के लिए तैयार है जो चरणबद्ध तरीके से हिंसा को छोड़ने के लिए तैयार हैं। परिणामस्वरूप, जिन दलों ने हिंसा त्यागने की मंशा व्यक्त की और भारतीय संविधान की रूपरेखा के तहत अपनी समस्याओं का शांतिपूर्ण हल चाहा, उन कई ग्रुपों के साथ कार्रवाई स्थगन समझौते भी किए गए।

श्री होरेनसिंह बे, महासचिव के नेतृत्व वाला युनाईटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सालिडेरिटी (यू पी डी एस) का एक भाग आगे आया और उसने हिंसा त्यागने की इच्छा जताई तथा इसने भारत के संविधान के ढांचे के अंदर अपनी समस्याओं का शांतिपूर्वक हल ढूंढने का अनुरोध किया। इस दल के साथ कार्रवाई स्थगन समझौता 1 अगस्त, 2002 से प्रभावी है। यू पी डी एस के साथ हस्ताक्षरित कार्रवाई स्थगन समझौता के सहमत मूल नियमों में सख्त शर्तों के साथ संशोधन किया गया है और यह 31 जुलाई, 2010 तक वैध है।

दीमा हलम दावोगाह (डी एच डी) (नुनिसा ग्रुप) जो असम का एक उग्रवादी गुट है, आगे आया और उसने हिंसा त्यागने की इच्छा जताई और इसने भारत के संविधान के दायरे के अंदर अपनी समस्याओं का शांतिपूर्वक हल ढ़ूंढ़ने का अनुरोध किया है। सुरक्षा बलों और डी एच डी के बीच कार्रवाई स्थगन (एस ओ ओ) पर सहमति हो गई थी और यह 01 जनवरी, 2003 से प्रभावी है। यू पी डी एस के साथ हस्ताक्षरित कार्रवाई समझौता के सहमत मूल नियमों में सख्त शर्तों के साथ संशोधन किया गया है और यह 30 जून, 2010 तक वैध था।

केन्द्र सरकार, असम सरकार और एन डी एफ बी के साथ कार्रवाई स्थगन समझौते पर हस्ताक्षर दिनांक 24 मई, 2005 को किए गए थे और यह 1 जून, 2005 से प्रभावी है। कार्रवाई स्थगन समझौता को समय-समय पर बढ़ाया गया। यू पी डी एस के साथ हस्ताक्षरित कार्रवाई स्थगन समझौता के सहमत मूल नियमों में सख्त शर्तों के साथ संशोधन किया गया है और यह 30 जून, 2010 तक वैध था।

सरकार ने दिनांक 24 जुलाई 2004 से मेघालय में अचिक नेशनल वॉलन्टियर कौंसिल (ए एन वी सी) के साथ कार्रवाई स्थगन समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। अब वह कार्रवाई स्थगन समझौता अनिश्चित अवधि के लिए बढ़ाया गया है। ए एन वी सी ने अपनी मांगे प्रस्तुत की हैं। मांग पत्र पर सचिव (बी एम) के स्तर पर भी त्रिपक्षीय वार्ता की जा रही है।

सरकार ने असम में एन डी एफ बी (वार्ता-समर्थक भाग), यू पी डी एस, डी एच डी, डी एच डी (जे) के साथ और मेघालय में ए एन वी सी के साथ वार्ता करने के लिए दिनांक 04 नवम्बर 2009 को श्री पी.सी हलदर को एक प्रतिनिधि नियुक्त किया है।

मणिपुर में कुकी संगठनों के साथ कार्रवाई स्थगन समझौता (एस ओ ओ) भी हस्ताक्षरित किया है जो 22 अगस्त, 2008 से प्रभावी है और 22 अगस्त, 2010 तक वैध है।

इन संगठनों के संबंध में सहमत मूल नियमों के कार्यान्वयन की आवधिक समीक्षा, भारत सरकार, राज्य सरकार, सुरक्षा बलों और संबंधित संगठनों के प्रतिनिधियों वाले एक संयुक्त निगरानी दल द्वारा की जाती है।

सम्पूर्ण मणिपुर (इम्फाल नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर), नागालैंड एवं असम, अरुणाचल प्रदेश के तिरप और चांगलांग जिले और अरुणाचल प्रदेश और मेघालय राज्यों में 20 कि.मी. की सीमा तक असम के साथ साझा लगती है जिसे 1972 में यथा संशोधित संशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958 के तहत ‘‘अशांत क्षेत्र’’ घोषित कर दिया गया है।

त्रिपुरा के राज्यपाल ने 34 पुलिस थानों के अन्तर्गत सम्पूर्ण क्षेत्र को और 6 पुलिस थानों के अन्तर्गत, ‘‘अशांत क्षेत्र” घोषित कर दिया है।

वर्तमान में असम में सी पी एफ सैन्य यूनिटों हेतु सामान्य प्रभारों के 10 प्रति शत की दर से तैनाती प्रभार वसूला जाता है लेकिन अन्य राज्यों को उनकी खराब संसाधन स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसे प्रभारों की वसूली से छूट प्राप्त है। विभिन्न प्रतिष्ठानों और आधारभूत परियोजनों के सुरक्षा कवर में मदद करने के लिए राज्य सरकारों को भी अतिरिक्त बल उपलब्ध करवाए गए हैं।

भारत सरकार के पास विद्रोह/उग्रवाद से निपटने के लिए राज्य सरकारों के पुलिस बलों को संवर्द्धित और उन्नत बनाने के लिए उनकी मदद की योजना है जिसके तहत सिक्किम सहित पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के लिए 51 इंडिया रिजर्व बटालियनों (आई आर बटालियन) को मंजूरी प्रदान की गयी है। इनमें शामिल हैं; असम के लिए 9, त्रिपुरा के लिए 9, मणिपुर के लिए 9, नागालैण्ड के लिए 7, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम प्रत्येक के लिए पांच-पांच, मेघालय के लिए 4 तथा सिक्किम के लिए 3 बटालियनें। मंजूर की गई 51 बटालियनों में से 42 इंडिया रिजर्व बटालियनों का गठन, सिक्किम सहित पूर्वोत्तर राज्यों में कर दिया गया है।

सुरक्षा संबंधी व्यय (एस आर ई) योजना को केन्द्र सरकार मिजोरम और सिक्किम को छोड़कर क्षेत्र के सभी राज्यों में कार्यान्वित कर रही है। इसके अन्तर्गत इंडिया रिजर्व बटालियनों के गठन, राज्य में तैनात सी पी एफ/सेना को प्रदान किए गए संभार तंत्र, उग्रवादी हिंसा के पीड़ितों को अनुग्रहपूर्वक अदायगी सहानुभूति भुगतान, अभियानों में पी ओ एल (पैट्रोल, तेल और ल्यूब्रीकेन्ट) पर किए गए खर्च का 75 प्रति शत तथा सुरक्षा उद्देश्य के लिए तैनात ग्रामीण गार्डों/ग्रामीण रक्षा समितियों/होम गार्डों को प्रदान किए गए मानदेय, जिनके साथ केन्द्र सरकार/राज्य सरकारों ने अभियानों को निलम्बित रखने हेतु समझौता किया है, के लिए गठित शिविरों पर खर्च केन्द्र सरकार वहन कर रही है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय 01 अप्रैल 1998 से पुनर्वास संबंधी एक योजना को कार्यान्वित कर रहा है। इस योजना को अब संशोधित कर दिया गया है। संशोधित दिशा निर्देश के अनुसारः

- प्रत्येक आत्मसमर्पणकर्ता को 1.5 लाख रुपये का तत्काल अनुदान दिया जाएगा जिसे तीन वर्षों की अवधि के लिए सावधि जमा के रूप में आत्मसमर्पणकर्ता के नाम से बैंक में रखा
जाएगा। इस धनराशि का प्रयोग आत्मसमर्पणकर्ता द्वारा स्वरोजगार हेतु बैंक से ऋण हासिल करते समय कोलेट्रल सिक्यूरिटी/मार्जिन मनी के रूप में किया जा सकता है;

- एक वर्ष की अवधि के लिए 1 दिसम्बर, 2009 से प्रत्येक आत्मसमर्पणकर्ता के वजीफे को 2000 रु. प्रतिमाह से बढाकर 3,500 रु. प्रतिमाह करना। राज्य सरकारें गृह मंत्रालय से संपर्क कर सकती हैं यदि वे लाभार्थियों को एक वर्ष के बाद समर्थन देना अपेक्षित समझती हैं;

- आत्मसमर्पणकर्ताओं को स्वरोजगार हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण का प्रावधान करना।

पिछले आठ वर्षों में कुल 1824.35 करोड़ रुपये की सहायता दी गयी है – असम 1012.81 करोड़, नागालैंड में 278.15 करोड़, मणिपुर में 157.09 करोड़, त्रिपुरा में 305.37 करोड़, अरुणाचल प्रदेश में 24.16 करोड़ रुपये, और मेघालय में 46.77 करोड़ रुपये ई स्कीम के तहत दिये जा चुके हैं।

वर्ष 2005-2009 की अवधि में अनेक उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया – वर्ष 2005 में 555, वर्ष 2006 में 1430, वर्ष 2007 में 524, वर्ष 2008 में 1112 और वर्ष 2009 में 1109 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए भी योजनाएं चला रहा है जिसके तहत अन्य बातों के साथ-साथ निगरानी, संचार, विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं, आदि हेतु आधुनिक उपकरणों की अधिप्राप्ति, हथियार, वाहनों, कम्प्यूटरीकरण, प्रशिक्षण आधारभूत संरचना तथा पुलिस आधारभूत संरचना जैसे कि आवास/पुलिस स्टेशन/बाह्य चौकियों/बैरक आदि के निर्माण हेतु सहायता प्रदान की जा रही है। इस एम पी एफ योजना के अन्तर्गत सभी पूर्वोत्तर राज्य पुलिस बलों का आधुनिकीकरण करने की अपनी अनुमोदित वार्षिक योजना की 100 प्रति शत केन्द्रीय सहायता पाने के हकदार हैं।

वित्तीय वर्ष 2009-10 में इस योजना के अन्तर्गत पूर्वोत्तर के राज्यों को 155.21 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे और निर्गत किए गए थे।

मिजोरम

मिजो ग्रामीणों द्वारा हमला किए जाने के बाद 30,000 से अधिक अल्पसंख्यक ब्रू (रियांग) जनजातीय लोग अधिकांशतः मिजोरम के पश्चिमी घाट से अक्टूबर, 1997 से त्रिपुरा में राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं।

यह अलग बात है कि वर्ष 2005 एवं 2006 में बी एन एल एफ के 195 कैडरों तथा बी एल एफ एम के 857 कैडरों ने मिजोरम सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। उन्हें केन्द्र द्वारा मिजोरम सरकार को अनुदान सहायता प्रदान कर मिजोरम में पुनर्वासित किया गया है।

जहां तक आतंकवादी हिंसा के कारण पलायन कर गये लोगों की वापसी और उनके पुनर्वास का सवाल है उसमें प्रगति नहीं के बराबर है। हालांकि मिजोरम राज्य सरकार ने प्रथम चरण में 12,538 ब्रू प्रवासियों को त्रिपुरा से मिजोरम में प्रत्यर्पित करने और उन्हें राज्य में निर्धारित स्थानों पर पुनर्वासित करने की ईच्छा जाहिर की, त्रिपुरा से मिजोरम में ब्रूरियांग प्रवासियों के प्रत्यर्पण के प्रथम चरण में विलम्ब हो गया क्योंकि ब्रू-बहुल क्षेत्रों में नवम्बर, 2009 में उपद्रवियों द्वारा कुछ ब्रू समुदाय के लोगों की झुग्गियों को जला दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप संदिग्ध ब्रू-आतंकवादियों द्वारा एक मिजो युवक को मार दिया गया था।

हेलिकॉप्टर सेवा

शेष भारत से पूर्वोत्तर भारत के सुदूर क्षेत्रों को जोड़ने के लिए केन्दीय गृह मंत्रालय से आर्थिक सहायता हासिल कर अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में हेलिकॉपटर सेवाएं चालू की गयी हैं। इस समय अरुणाचल प्रदेश में तीन द्वि-ईंजन हेलिकॉप्टर चल रहे हैं।

मेघालय एवं नागालैण्ड राज्यों में प्रत्येक में एक द्वि-ईंजन हेलिकॉप्टर चल रहा है और सिक्किम एवं त्रिपुरा राज्यों में प्रत्येक मे एक एकल-ईंजन हेलिकॉप्टर चल रहा है। सिक्किम सरकार ने राज्य में चल रहे एकल-ईंजन हेलिकॉप्टर के बदले में एक द्वि-ईंजन हेलिकॉप्टर को चलाने की हाल में ही अनुमति प्रदान की है। इसके अतिरिक्त, गृह मंत्रालय ने राज्यपालों, केन्द्र सरकार के मंत्रियों/वरिष्ठ अधिकारियों को पूर्वोत्तर के राज्यों का दौरा करने के लिए सुविधा देने हेतु गुवाहाटी में एक हेलिकॉप्टर को तैनात कर रखा है। इस सेवा का खर्च केन्द्रीय गृह मंत्रालय वहन करता है।

इतना सबकुछ होने के बावजूद पूर्वोत्तर भारत में आंतरिक सुरक्षा खतरे में ही है। देश के अन्दर और सीमा पार विदेशों से अलगाववाद और आतंकवादी हिंसा करने वाले गुटों को सहायता और प्रशिक्षण मिलने की खबरें आती रही हैं।