परिणाम सबके सामने है। सम्पन्न लोग, सरकारें और नेता यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वे गरीबों के हमदर्द हैं, लेकिन गरीबों को उनपर कोई भरोसा नहीं। उनके प्रति इस अन्याय का लाभ उठाते हुए वामपंथी उग्रवादी अपनी जड़ें जमा चुके हैं और हिंसा एवं आतंक के माध्यम से रेल, सड़क, बिजली और संचार जैसे ढ़ाचों सहित विकास कार्यों के कार्यान्वयन एवं निष्पादन को बाधित करने और क्षेत्र स्तर पर शासी तंत्र को असहाय और निष्प्रभ साबित करने के लिए व्यवस्थित प्रयास कर रहे हैं।

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशस्त्र संघर्ष से उखाड़ने का सी पी आई (माओवाद) का दर्शन हमारे संसदीय लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है और इसे किसी भी कीमत पर रोकने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सरकार ने माओवादियों से कहा है कि वे हिंसा त्याग दें और वार्ता के लिए आगे आएं। लेकिन अतिवादी वामपंथियों ने अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया है, और वे सशस्त्र आंदोलन की अपनी शक्ति पर भारत में शासन चाहते है। वे चुनाव की वर्तमान प्रक्रिया और व्यवस्था पर विश्वास नहीं करते क्योंकि उनका मानना है कि इस व्यवस्था में गरीब और विपन्न वर्ग का उनके बीच से ही संसद में प्रतिनिधित्व संभव नहीं है। इस समय गरीब और विपन्न वर्ग को सिर्फ मतदान देने तक का वास्तविक अधिकार है और संसद या विधान सभा में जा पाने का सैद्धांतिक, कानूनी और महज कागजी अधिकार है। उनका प्रतिनिधित्व करने का भी दावा संपन्न वर्ग के लोग ही कर रहे हैं और वे ही गरीबों के बारे में जिस तरह और जितना सोचते और करते हैं उसी के रहमो करम पर गरीबों और विपन्नों को संतोष करना पड़ता है।

यही कारण है कि देश के कतिपय भागों में विगत कुछ दशकों से अनेक वामपंथी उग्रवादी ग्रुप सक्रिय हैं। एक महत्वपूर्ण घटना में, इनमें से दो ग्रुप-आन्ध्र प्रदेश में सक्रिय पीपल्स वार ग्रुप और बिहार और उससे सटे क्षेत्र में सक्रिय माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का विलय वर्ष 2004 में सी पी आई (माओवादी) के रूप में हुआ। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) विभिन्न वामपंथी उग्रवादी समूहों में सर्वाधिक प्रभावशाली है जो कुल वामपंथी उग्रवादी घटनाओं 90 प्रति शत से अधिक तथा इसके परिणामस्वरुप होने वाली हत्याओं के 95 प्रति शत के लिए जिम्मेदार है।

आन्ध्र प्रदेश में 2008 में उग्रवाद की 92 घटनाएं हुईं जिनमें 46 लोग मारे गये। लेकिन 2009 में इनकी संख्या घटकर 66 हो गयी और 18 लोग ही मारे गये। इस आधार पर कहा जा सकता है कि वहां वामपंथी उग्रवाद नरम हुआ है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अतिवादी वामपंथी राज्य में इस समय अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं घटनाओं को अंजाम देने में नहीं। इसलिए सरकार की चुनौतियां आने वाले दिनों में बढ़ सकती हैं।

बिहार में उग्रवाद बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। यहा ध्यान रहे कि राज्य की सीमा नेपाल से लगती है जहां वापमपंथियों ने तख्ता पलट तक कर दिया। पिछले दिनों खबर आयी थी कि नेपाली वामपंथियों नें भारतीय माओवादियों का समर्थन किया है। वर्ष 2008 में राज्य में वामपंथी उग्रवाद की 164 घटनाएं हुईं जिनमें 73 लोग मारे गये जबकि 2009 मे 232 घटनाओं में 72 के मारे जाने की खबर है।

छत्तीसगढ़ में भी वामपंथी उग्रवाद काफी सक्रिय रहा। वर्ष 2008 में 620 घटनाओं में 242 तथा 2009 में 529 घटनाओं में 290 लोग मारे गये।

झारखंड में वामपंथी उग्रवाद बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जो गंभीर चिंता का कारण बन गया है। वर्ष 2008 में 484 घटनाओं में 207 लोग मारे गये थे जबकि 2009 में 742 घटनाओं में 208 लोगों के मारे जाने की खबर है।

मध्य प्रदेश प्रदेश में 2008 में उग्रवादी हिंसा की 7 घटनाएं हुईँ थी जबकि 2009 में एक ही घटना हुई। इनमें किसी के मारे जाने की खबर नहीं है।

महाराष्ट्र में भी उग्रवाद तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2008 में 68 घटनाओं और 22 मौतों की तुलना में 2009 में 154 घटनाएं और 93 मौतें हुईं।

यही हाल उड़ीसा का रहा। वहां 2008 में 103 घटनाओं में 101 मौतें तथा 2009 में 266 घटनाओं में 67 मौतें हुईं।

अब धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश भी उग्रवादी नक्सली हिंसा की चपेट में आ रहा है। वर्ष 2008 में वहां 4 घटनाएं हुई थीं और उनमें किसी की मौत नहीं हुई थी, लेकिन 2009 में 8 घटनाओं में 2 मौतें हुईं।

पश्चिम बंगाल में भी उग्रवाद अत्यंत तेजी से बढ़ रहा है जबकि वहां वामपंथी शासन ही है। इसका अर्थ यह हुआ कि अतिवादी वामपंथी उन वामपंथियों को भी निशाना बना रहे हैं जो वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के पक्षधर हैं। राज्य में वर्ष 2008 में 35 घटनाओं में 26 लोग मारे गये थे जबकि 2009 में 255 घटनाओं में 158 लोग मारे गये।

अन्य राज्यों में 2008 में 14 घटनाएं हुईं जिनमें 4 लोग मारे गये थे जबकि 2009 में सिर्फ 5 घटनाएं हुईं और किसी के मारे जाने की खबर नहीं है।

सी पी आई (माओवादी), जो वामपंथी उग्रवादी हिंसा की सर्वाधित घटनाओं और हत्याओं के लिए जिम्मेदार प्रमुख वामपंथी उग्रवादी संगठन है, को वर्तमान विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के तहत दिनांक 22 जून, 2009 से इसके सभी गुटों और संगठनों के साथ आतंकवादी संगठनों की अनुसूची शामिल किया गया है।

सरकार का दृष्टिकोण सुरक्षा, विकास, सुप्रशासन द्वारा वामपंथी उग्रवादी गतिविधियों से समग्र तरीके से निपटाने का है, कम से कम घोषित रुप से। लेकिन यह धरातल पर कम ही दिखायी देता है। जो दिखायी देता है वह है उच्चस्तरीय बैठकें और विचार-विमर्श।

वामपंथी उग्रवादी हिंसा के संबंध में विस्तार और प्रवृत्तियों का एक विस्तृत विश्लेषण किया गया है तथा 8 राज्यों में 33 प्रभावित जिलों को विकास योजनाओं और उनकी सघन निगरानी के लिए निर्धारित किया गया है। इन 33 जिलों में से, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा नामक 4 राज्यों के 8 अत्यधिक प्रभावित जिलों को एकीकृत सुरक्षा एवं विकास कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए निर्धारित किया गया है, जिसे बाद में अन्य प्रभावित जिलों में भी लागू किया जाना है।

सरकार मानती है कि वामपंथी उग्रवाद की समस्या से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक पूर्णतया पुलिस एवं सुरक्षा उन्मुखी नीति पर्याप्त नहीं है। उग्रवादियों के विरूद्ध प्रो-एक्टिव एवं सतत् अभियान चलाना जरूरी है और इसके लिए सभी उपाय किए जाने चाहिए जिसमें विकास के लिए तात्कालिक, मध्यावधिक एवं दीर्घावधिक उपाय आवश्यक हैं।

स्थिति की समीक्षा के लिए समीक्षा और अनुवीक्षण तंत्र भी स्थापित किए गए हैं। राजनीतिक, सुरक्षा और विकास के मोर्चे पर वामपंथी उग्रवादी समस्या से निपटने के लिए समन्वित नीति और विशिष्ट उपायों के आकलन के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में संबंधित राज्यों के मुख्य मंत्रियों की एक स्थायी बनायी गयी है।

एकीकृत तरीके से वामपंथी उग्रवादी समस्या से निपटने की नीति के अगले चरण में, विकास एवं सुरक्षा उपायों के लिए समन्वित प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मंत्रिमंडल सचिव के तहत एक उच्चस्तरीय कार्य बल का गठन किया गया है।

जिन राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व मुख्य सचिवों एवं पुलिस महानिदेशकों द्वारा किया गया वहां संबंधित राज्यों के प्रयासों की समीक्षा एवं उनका समन्वय करने के लिए केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक समन्वय केन्द्र की स्थापना करना भी योजना का अंग है।

आसूचना (गुप्तचर) एजेंसियां, केन्द्रीय पुलिस बलों और राज्य पुलिस बलों के वरिष्ठ अधिकारियों सहित विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा), गृह मंत्रालय के अधीन एक कार्यबल वामपंथी उग्रवादी गतिविधियों से निपटने के लिए आवश्यक आप्रेशनल कदमों के ब्यौरों पर और विभिन्न राज्यों के अधिकारियों के बीच यथा आवश्यक समन्वय बनाए रखने के संबंध में विचार-विमर्श भी करता है।

विकास से संबद्ध मंत्रालयों और योजना आयोग के अधिकारियों के साथ अपर सचिव (नक्सल प्रबंधन) गृह मंत्रालय की अध्यक्षता में एक अन्तर मंत्रालय ग्रुप त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में विकास स्कीमों के प्रभावी कार्यान्वयन का भी पर्यवेक्षण कर रहा है।

केन्द्र सरकार मानती है कि वामपंथी उग्रवाद की स्थिति से निपटने की प्राथमिक जिम्मेवारी राज्य सरकारों की होती है और इस उद्देश्य के लिए उन्हें समन्वित प्रयास करने के लिए कहा जा रहा है। राज्य सरकारों को कहा गया है कि वे राज्य पुलिस बल (पुलिस आबादी के संदर्भ में) का संवर्धन करने और मौजूदा रिक्तियों को भरने, खासकर वामपंथी उग्रवादी हिंसा से प्रभावित जिलों और क्षेत्रों में जिला स्तर और थानास्तर पर मौजूदा रिक्तियों को समयबद्ध ढंग
से भरने के लिए समयबद्ध कार्रवाई करें। राज्यों को इन क्षेत्रों में तैनात पुलिस बल के लिए उपयुक्त प्रोत्साहन देने और रोटेशन नीति तैयार करना है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी उन्हें कार्रवाई करना है कि वामपंथी उग्रवादी हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस थानों और बाह्य चौकियों को सुरक्षित पुलिस थाना भवन (परिधि सुरक्षायुक्त), बैरकों, आर्मरी और मैस सुविधाओं के रूप में जरूरी अवस्थापना सुविधाएं मुहैया हों।

राज्य पुलिस के कुछ जवानों को कमांडों/जंगल युद्ध कौशल का प्रशिक्षण देने के लिए राज्य के अंदर ही प्रशिक्षण सुविधाएं स्थापित की जा रही हैं। सेना, केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों और अन्य राज्यों के साथ अंतरिम रूप में समझौते भी किये जा रहे हैं ताकि यह कार्य सम्पन्न किया जा सके।

राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान देने को कहा गया है ताकि उग्रवाद प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, बिजली, राजस्व और अन्य विकास विभागों मुख्य विभागों के क्षेत्रगत एवं मध्यवर्ती स्तर के कार्यकर्ता आम जनता को आसानी से उपलब्ध हो सकें और आम जनता की उन तक पहुंच सुनिश्चित हो सके। इसमें न केवल पदों/रिक्तियों को भरा जाना शामिल है वरन् उनकी तैनाती के क्षेत्र में उनके ठहरने संबंधी व्यवस्थाएं भी सुनिश्चित की जानी है।

सुविचारित रणनीति के तहत एक प्रचार एवं दुष्प्रचार-रोधी अभियान चलाये जाने की भी सरकारी स्तर पर कोशिशें की जा रही हैं जिनमें पत्रकारों पर भी नजर रखी जा रही है, विशेषकर उनपर जो उग्रवादियों से संबंधित खबरें छापते हैं और जो नक्सलियों से सहानुभूति रखते हैं।

आन्ध्र प्रदेश मे ग्रेहाऊण्ड्स की तर्ज पर प्रभावित राज्यों के पुलिस बलों को भी सबल बनाते हुए, विशेषकर बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों द्वारा, पुलिस प्रतिक्रिया को और अधिक सुधारने एवं मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है।

अन्य कदमों में केन्द्र द्वारा केन्द्रीय अर्ध सैनिक बलों (सी पी एम एफ) तथा कमाण्डो बटालियन फॉर रिजोल्यूट एक्शन (कोबरा) को मुहैया कराया जाना; इण्डिया रिजर्व (आई आर) बटालियनों की स्वीकृति करना, घुसपैठ-रोधी एवं आतंकवाद-रोधी (सी आई ए टी) विद्यालयों की स्थापना करना; राज्य पुलिस की आधुनिकीकरण योजना (एम पी एफ स्कीम) के अन्तर्गत राज्य पुलिस एवं उनके आसूचना तंत्र को आधुनिक बनाना तथा उन्नत करना, सुरक्षा संबंधी व्यय (एस आर ई) योजना के अन्तर्गत सुरक्षा संबंधी व्यय करना, वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में विशेष अवसंरचना हेतु योजना के अन्तर्गत मुख्य अवसंरचनात्मक कमियों को पूरा करना, रक्षा मंत्रालय, केन्द्रीय पुलिस संगठनों तथा पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के माध्यम से राज्य पुलिस के प्रशिक्षण में सहायता करना; सूचनाओं का आदान-प्रदान करना; अन्तर-राज्यीय समन्वय की सुविधा करना; विशेष अन्तर-राज्यीय एवं अन्तर-राज्यीय समन्वित संयुक्त कार्रवाईयों में सहायता करना, सामुदायिक पुलिस व्यवस्था एवं नागरिक कार्रवाइयों में सहायता देना तथा विभिन्न केन्द्रीय मंत्रालयों की श्रृंखलाबद्ध योजनाओं के माध्यम से विकास कार्यों में सहायता प्रदान करना शामिल है।

राज्यों को पुलिस आधुनिकीकरण योजना के अंतर्गत आधुनिक हथियार, नवीनतम संचार उपकरण, आवाजाही तथा अन्य अवसंरचना के मामले में निधि प्रदान किया जा रहा है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों को भी कहा गया है कि वे वामपंथी उग्रवादी क्षेत्रों में संवेदनशील पुलिस थानों तथा चौकियों का निर्धारण करें और इस योजना के अंतर्गत उनकी किलेबंदी करें। लेकिन धन का समुचित और समय पर उपयोग नहीं हो पा रहा है जिसके कारण केन्द्र सरकार ने राज्यों को निधि के उपयोगिता स्तर में सुधार लाने को कहा है।

सुरक्षा संबंधी व्यय (एस आर ई) योजना के अन्तर्गत, सुरक्षा बलों का बीमा, प्रशिक्षण तथा संचालनात्मक आवश्यकताओं से संबंधित आवर्ती व्यय के साथ-साथ संबधित राज्य सरकार की समर्पण एवं पुनर्वास नीति के अनुरूप आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलवादी कैडरों, सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, ग्राम रक्षा समितियों द्वारा सुरक्षा संबंधी अवसंरचना तथा प्रचार सामग्री के लिए सहायता प्रदान की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत 60 करोड़ रुपए निर्गत किए गए थे।

आन्ध्र प्रदेश के निजामाबाद जिले; उड़ीसा के देवगढ़, जयपुर, कंधमाल, धेनकनाल और नयागढ़ जिलों तथा झारखण्ड के कुन्ती एवं रामगढ़ जिलों को सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के अंतर्गत शामिल किया गया। एस आर ई स्कीम के अंतर्गत हेलिकॉप्टरों को किराए पर लेने संबंधी संशोधित दिशानिर्देशों को 28 जुलाई, 2009 को एस आर ई समिति द्वारा मंजूरी प्रदान की गई थी। आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश उड़ीसा तथा बिहार द्वारा 6,666 एस पी ओ की भर्ती की आदेशों को जारी किया गया।

जो वामपंथी उग्रवादी हिंसा को त्यागना चाहते हैं और मुख्यधारा में आना चाहते हैं उनके आत्मसमर्पण के लिए राज्यों को बढ़ावा देने हेतु 26 अगस्त, 2009 को वामपंथी उग्रवादियों के समर्पण एवं पुनर्वास संबंधी संशोधित दिशानिर्देश एवं पैकेज जारी किए गए हैं।

आई ई डी/भूमिगत सुरंग के धमाकों के कारण पुलिस कर्मियों की मौतों की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों को पुलिस आधुनिकीकरण योजना के अंतर्गत सुरंग संरक्षित वाहन प्रदान किए गए हैं। उसकी आपूर्ति को ऑर्डेनेंस फैक्ट्री बोर्ड के अध्यक्ष के साथ वार्ता के बाद सरल बना दिया गया है।

आन्ध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम
बंगाल राज्यों में राज्य पुलिस की सहायता करने के लिए इस समय केन्द्रीय अर्ध सैनिक बल की 58 बटालियनें तैनात की गयी हैं। इनमें वर्ष 2009 में शामिल की गई 21 बटालियनें भी हैं जो छत्तीसगढ़ (9), महाराष्ट्र (3), झारखण्ड (5) और पश्चिम बंगाल (4) में तैनात की गयीं।

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों के लिए इण्डिया रिजर्व (आई आर) बटालियनों की स्वीकृति भी दी गयी है जो मुख्यतः अपने स्तर पर सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्र के युवाओं को आयोपार्जक रोजगार प्रदान करने योग्य बनाने की कोशिश करता है।

वामपंथी उग्रवाद के प्रभावित 9 राज्यों को 37 इण्डिया रिजर्व बटालियनें स्वीकृत की गई हैं। प्रत्येक बटालियन में 2 कम्पनियों को कमाण्डो इकाईयों/विशेष बलों के रूप में तैयार करने का प्रावधान भी किया गया है जिसके लिए 6 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वित्तीय सहायता दी गई है जो प्रत्येक आई आर बटालियन हेतु केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए 27.75 करोड़ रुपए की राशि से बिल्कुल अलग है। अब तक 24 आई आर बटानियनों का गठन हो चुका है।

उग्रवाद क्षेत्र में तैनात विशिष्ट बल की 10 बटालियनों को घुसपैठ-रोधी एवं जंगल-युद्ध कार्रवाईयों के लिए प्रशिक्षित एवं सुज्जित किया गया है, जिसे कमाण्डो बटालियन फॉर रिजोल्यूट एक्शन (कोबरा) का नाम दिया गया है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर और उड़ीसा के कोरापुट विशेष व्यस्था की गयी है। शेष 4 बटालियनों के लिए भी पुलिसकर्मियों का चयन कार्य पूरा हो चुका है। मुख्य स्थल योजना के अनुसार, इन्हें झारखण्ड में हजारीबाग, बिहार में गया, छत्तीसगढ़ में जगदलपुर और महाराष्ट्र में भंडारा में तैनात किया जाना है।

असम, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखण्ड में घुसपैठ-रोध, जंगल युद्ध और आतंकवाद के संबंध में राज्य पुलिस कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु प्रति राज्य चार की दर से 20 घुसपैठ-रोधी एवं आतंकवाद-रोधी (सी आई ए टी) विद्यालयों की स्थापना की गई है। अब तक वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 5 राज्यों - बिहार (3), छत्तीसगढ़ (3), झारखण्ड (3) और उड़ीसा (3) में कुल मिलाकर 15 सी आई ए टी विद्यालयों को मंजूरी प्रदान की गयी है तथा 22.50 करोड़ रुपए निर्गत किए गए हैं।

केन्द्र सरकार की सामान्य योजनाओं से अलग विशेष रुप से 2008-09 हेतु किए गए 100 करोड़ रुपए के प्रावधान के साथ-साथ 11वीं योजना अवधि में इस कार्य के लिए 500 करोड़ रुपए का परिव्यय निर्धारित किया गया है। 2008-09 के दौरान आन्ध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा उड़ीसा राज्यों को 9999.92 लाख रुपए की धनराशि निर्गत की गई है। वर्ष 2009-10 के लिए 30 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था।

केन्द्रीय अर्ध सैनिक बलों में भर्ती के मामले में एक निर्देश जारी किया गया है जिसके तहत 40 प्रति शत भर्ती सीमा क्षेत्रों तथा आतंकवाद या वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों से किया जाना है।

कुल 147 पिछड़े जिलों में विकास के लिए 45 करोड़ रुपए प्रति जिले के हिसाब से धनराशि आबंटित की गयी है। इसे अब 250 जिलों में पिछड़ा प्रदेश अनुदान निधि के रूप में बदल दिया गया है।

चूंकि वामपंथी उग्रवादी संकट को विकासात्मक पहलू से भी निपटाया जाना है, केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय सम विकास योजना (आर एस वी आई) के पिछड़े जिलों से संबंधित पहल (बी डी आई) के अंतर्गत आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के 55 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों (तत्कालीन) के लिए 2475 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की गई। इस योजना के अंतर्गत तीन वर्षों के लिए प्रत्येक जिले को 15 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की धनराशि प्रदान की गई थी। इन जिलों को
45 करोड़ रुपए का पूर्ण उपयोग हो जाने के बाद पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बी आर जी एफ) की योजना में अंतरित होना था।

विकास योजनाओं की आयोजना, कार्यान्वयन तथा निगरानी पर विशेष ध्यान देने के लिए 8 राज्यों में 34 प्रभावित जिलों की पहचान की गयी है।

वामपंथी उग्रवाद संबंघी कार्यबल, एल डब्ल्यू ई प्रभावित जिलों में कई तरह की योजनाएं चला रहा है। इनमें उन सभी योजनाओं के नाम गिनाये जा रहे हैं जो अन्य क्षेत्रों में भी चलाये जा रहे हैं।

आठ राज्यों के वामपंथ से प्रभावित 33 जिलों में 10,129 बस्तियों को जोड़ने के लिए अक्तबूर, 2009 तक 25,671 कि.मी लम्बी सड़क के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्टें (डी पी आर) स्वीकृत कर दी गई हैं। राज्य सरकारें, बाकी 5,090 पात्र बस्तियों को जोड़ने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्टें तैयार कर रही हैं। इन सड़कों के लिए 5659.39 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई और 1436.55 करोड़ रुपए का व्यय भी किया गया।

वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बनावाना भी एक कठिन काम है। इसलिए भारत सरकार ने सड़कों को उनकी सुरक्षा की स्थिति के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। 2530 कि.मी सड़क बनावाने के लिए सुरक्षा की जरूरत महसूस की गयी है। राष्ट्रीय राजमार्ग - 16 का निर्माण कार्य (आन्ध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़ने वाली 691 कि.मी. सड़क) इसी कारण सीमा सड़क संगठन को सौंपा गया है।

जंगलों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को मान्यता देने और जहां वे रहते हैं उस भूमि पर कानूनी कब्जा देने का भी प्रावधान किया गया है। वाम उग्रवाद से प्रभावित जिलों में प्राप्त हुए 4,18,872 दावों में से 1,66,885 हकदारी विलेख जारी किए गए हैं।

कुल मिलाकर वामपंथी उग्रवाद प्रभावित 9 राज्यों में हजारों योजनाएं चलायी जा रही हैं और अरबों खर्च किये जा रहे हैं। लेकिन वह धरातल की विपन्नता को दूर करने की बात तो दूर उसे ढक भी नहीं पा रही है।

वामपंथी उग्रवादियों के आत्मसमर्पण-एवं-पुनर्वास संबंधी दिशानिर्देशों को तैयार कर लिया गया है। पुनर्वास पैकेज में अन्य बातों के साथ-साथ तीन वर्षों के लिए 2000 रुपए का वजीफा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, 1.5 लाख रुपए का तत्काल अनुदान और हथियार सौंपने पर प्रोत्साहन राशि शामिल हैं।

आतंकवादी हिंसा (उग्रवाद एवं बगावत सहित) तथा साम्प्रदायिक हिंसा से पीड़ितों को सहायता प्रदान करने की भी एक योजना बनायी गयी है। इसके तहत किसी विशेष घटना में किसी एक परिवार के मृतकों की संख्या पर विचार किए बिना प्रभावित परिवार को 3 लाख रुपए दिए जाने हैं। लेकिन अलग-अलग घटनाओं में हताहत होने पर प्रत्येक मामले में परिवार को सहायता देनी है। घायल होने पर एक लाख रुपये तक का मुआबजा दिया जाना है।

उधर जनता सरकारी कदमों को नाकाफी मानती है और लगातार बिगड़ती स्थिति इस बात का संकेत है कि आगे की डगर कठिन और भयावह है।