आज राज्य की हालत वही हो गई है, जो 1990 के दशक के शुरुआत में थी। चारों तरफ हिंसा का बोलबाला हो गया है। कर्फ्यू लगा रहता है। आखिर क्यों? इसका पहला कारण तो राज्य में पुराने हालात ही हैं। दशकों से हो रही हिंसा इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। दूसरी कारण अच्छे प्रशासन का अभाव है। तीसरा कारण विकास की कमी है। चौथा कारण बेरोजगारी के कारण युवाओं में बढ़ती हताशा है। और इन सबके अलावा अलगाववादियों के कारनामे हैं, जो राज्य के माहौल को अच्छा होने नहीं देते।

इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण कारण खुद उमर की अनुभवहीनता है। वे अनुभहीन तो हैं ही वे अछी सलाह पर भी ध्यान नहीं देते। सप्ताह के अंत में वे एक बार दिल्ली जरूर आतें हैं, जबकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय अपने राज्य में देना चाहिए। उन्होंने अपने इर्द गिर्द गलत सलाहकार भी पाल रखे हैं। स्थानीय निकायों का चुनाव करने का उनका वायदा अभी भी अधूरा है।

सवाल उठता है कि राज्य की स्थिति को ठीक करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? कुछ लोगों को तो लगता है कि उमर को मुख्यमंत्री के पद से हटा ही दिया जाना चाहिए। वे कहते हैं कि उनके पिता फारुक अब्दुल्ला उनसे बेहतर मुख्यमंत्री साबित होंगे। लेकिन क्या पिता अपने बेटे की जगह लेना चाहेगा? यदि फारूक ने उमर की जगह ली, तो बेटे की राजनैतिक मौत ही हो जाएगी और फारूक ऐसा नहीं करना चाहेंगे। इसलिए यह विकल्प नहीं संभव है।

तो क्या गुलाम नबी आजाद जैसे किसी सुलझे हुए नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए? पर आजाद कांग्रेस के हैं और नेशनल कांफ्रेंस इसके लिए तैयार ही नहीं होगी। एक अन्य विकल्प राष्ट्रपति शासन का है, लेकिन उससे समस्या का समाधान नहीं होगा। कश्मीर जैसी स्थिति में चुनी हुई सरकार ही सही है। जाहिर है उमर को हटाना संभव नहीं है। तो फिर उमर से ही उम्मीद की जानी चाहिए कि वे सूझबूझ के साथ समस्या से निपटें। यही कारण है कि प्रधानमंत्री कार्यालय की रणनीति यही है कि उमर द्वारा ही कश्मीर समस्या का सामना किया जाए। प्रधानमंत्री कार्याला चाहता है कि उमर राज्य के युवाओं से अपना तार जोड़ें और काम करने के अपने तरीके को भी बदलें।

रणनीति चाहे जो भी हो समस्या को राजनैतिक रूप से ही हल करना होगा। इसे कानून व्यवस्था की समस्या मानकर हम इसका समाधान नहीं कर सकते। सेना की सहायता से लोगों को कुचलने और कर्फ्यू लगाने से काम नहीं चलेगा। सड़कों को पर होने वाली हिंसा को ताकत के बल पर कुचलकर समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता। इससे सरकार की साख् नहीं बढ़ने वाली। आंदोलनकारी एक विल्कुल ही नई पीढ़ी के हैं। उनका कोई स्थापित नेता भी नहीं है। एक तरह से उनका आंदोलन एक नेतृत्वहीन आंदोलन है, जो युवाओं की हताशा से पैदा हुआ है। मुख्यमंत्री को उन तक पहुंचना होगा और उनकी हताशा का हल निकालना होगा। (संवाद)