अब तो पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई नहीं है, जो इस सच्चाई को मानने से इनकार कर रहा है। सच तो यह है कि दोनों के बीच संबंध नंदीग्राम और सिंगूर के आंदोलन के दौरान ही बन गए थे और वे संबंध लगातार बने हुए हैं। दोनों पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं के बीच भी कभी कभी छोटी मोटी झड़प होती हैे। उसके बावजूद दोनों के बीच परस्पर सहयोग का वातावरण भी है।
दोनों पार्टियो के बीच संबंण रहस्यपूर्ण भी बने हुए हैं। दोनों पक्ष सबंध बनाए रखने की कीमत तक अदा करने को तैयार है। माओवादी यदि किसी तृणमूल समर्थक की हत्या कर दे, तो ममता के कान पर जूं नहीं रेंगता। माआवादी लोगों का मुखबिर कह कर मार रहे हैं, लेकिन ममता बनर्जी के मुह से आह तक नहीं निकलती। ज्ञानेश्वरी रेल हादसे में तो 160 लोग मारे गए थे। अब यह साबित हो चुका है कि उस हादसे के लिए माओवादी ही जिम्मेदार थे। लेकिन उस पर भी ममता बनर्जी माओवादियों के खिलाफ अपना मुह नहीं खोल रही है।
अपनी जनसभाओं में ममता माओवादियों को भाई कहकर संबोघित करती हैं और कहती हैं कि भाइयों सीपीएम की तरह हिंसा मत करो। शांति से अपनी मांग लेकर हमारे सामने आआ। हम आपकी समस्याओं को हल कर देंगे। इस तरह की भाषा का वह इस्तेमाल करती हैं जैसे एक बहन अपने बिगड़े हुए भाइयों को सुधरने के लिए प्यार से कुछ समझा रहा हो।
ममता की उस अपील का क्या असर माओवादियों पर पड़ रहा है, यह तो उनके वक्तव्यों से पता नहीं चलता, लेकिन वे जो करते हैं, इससे पता चल जाता है कि भाई लोग ममता की अपील को कितनी गंभीरता से लेते हैं। हां, दीदी की बात सुनने के लिए माआवादी उनकी सभा में जरूर शामिल होते हैं। माओवादी नेता अपने कार्यकर्त्ताओं को ममता की सभाओं में शामिल होने की सार्वजनिक अपील भी जारी करते हैं।
पश्चिम बंगाल की समस्या यह है कि यहां के लोगों को पता है कि माआवादियों का ममता के साथ गठजोड़ है। अघिकांश लोगों को माओवादी हिंसा पसंद भी नहीं है। इसके बावजूद वे ममता बनर्जी के समर्थक बने हुए हैं। सीपीएम की अपील का उनपर कोई असर नहीं पड़ता। ममता की माओवादियों के साथ दोस्ती रहे तो रहे, उनकी असली चिंता पश्चिम बंगाल को सीपीएम के शासन से मुक्त करना है।
जो हाल बंगाल की जनता का है वही कांग्रेस का भी है। कांग्रेस की केन्द्र में सरकार ममता के समर्थन से चल रही है। कहने को तो केन्द्र की सरकार बहुमत में है, लेकिन अपना बहुमत बनाए रखने के लिए यह अपने सभी सहयोगी दलों पर आश्रित है। वह किसी भी सहयोगी दल को नाराज नहीं कर सकती। ममता बनर्जी के पास तो 19 लोकसभा सांसद हैं, भला वह उन्हें कैसे नाराज कर सकती है। इसलिए माओवादियों के साथ उनके संबंध होने के बाद भी वह उनके साथ है। भले ही इसके कारण उसकी अपनी ही छवि खराब क्यों न हो रही हो। (संवाद)
सीपीएम की मुश्किलें
पश्चिम बंगाल में तृणमूल और माओवादियों का गठबंधन
आशीष बिश्वास - 2010-08-16 09:13
कोलकाताः अब तो प्रणब मुखर्जी, पी चिदंबरम और उनकी कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनकी सहयोगी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ माओवादियों का घनिष्ठ संबंध है। इस संबंध को नकारने से कांग्रेस की छवि को नुकसान हो रहा है।