लेकिन अभी तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं हुई है। एक दो के खिलाफ कुछ किया गया है, जिन्हें हटाया गया वे बहुत ही छोटे स्तर के खिलाड़ी थे और वे अपने स्तर से इतने बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम नहीं दे सकते थे। आइपीएल में जब भ्रष्टाचार का मुद्दा सामने आया, तों शशि थरूर को जाना पड़ा, लेकिन इन खेलों में भ्रष्टाचार का आयाम आइपीएल की अपेक्षा कहीं बहुत ज्यादा है, फिर भी मुख्य अपराधी अपने पदों पर कायम हैं।

हालांकि भारतीयों के लिए यह अचरज की बात नहीं है। यहां सभी लोगों को पता है कि सरकार द्वारा करवाए गए काम समय पर समाप्त नहीं होते और बिना भ्रष्टाचार का कोई काम नहीं होता। लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार इतने बड़े पैमाने पर और इतनी मात्रा में हुआ है कि लोग हतप्रभ हैं।

कहा जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर 35 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। शहरी विकास मंत्री के अनुसार 29 हजार करोड़ रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं। भारत की गिनती पहले से ही भ्रष्ट देशों में की जाती रही है। जहां इतनी बड़ी राशि शामिल हो, वहां भ्रष्टाचार का पैमाना कितना बड़ा होगा, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।

केन्द्र सरकार ने अब जाकर हस्तक्षेप करना शुरू किया है। उसे यह काम पहले ही करना चाहिए था। जब पिछले साल यह साफ हो गया था कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों का काम समय से नहीं हो रहा है तो उसी समय उसे इनकी निगरानी प्रारंभ कर देनी चाहिए थी, पर अब जब पानी सिर से ऊपर आ गया है तो उसने आयोजन समिति के ऊपर एक समिति गठित कर दी है। इसके बारे में यह भी नहीं कहा जा सकता है कि देर आयद दुरुस्त आयद।

केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी गलती तो आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करने की थी। आज भ्रष्टाचार की खबरों के मुख्य खलनायक वे ही बने हुए हैं। राष्ट्रमंडल खेलों से देश की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। इसलिए केन्द्र सरकार को शुरू से ही जुड़ा होना चाहिए था, लेकिन आखिरी मौके पर उसने जयपाल रेड्डी के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह बनाया है। लंेकिन उस समूह से कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं पड़ रहा है और कलमाड़ी व उनके अन्य नजदीकी यह कहते देखे जा सकते हैं कि उनके अधिकार समाप्त नहीं हुए हैं।

भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर सरकार कह रही है कि खेलों के आयोजन के बाद इसकी जांच की जाएगी। लेकिन आयोजन की समाप्ति के बाद शायद ही कुछ हो। जैसे जैसे समय बीतेगा, लोगों की स्मृति से भ्रष्टाचार के मामले धुलते चले जाएंगे और सरकार मामले का रफा दफा हो जाने देगी।

खेलों में कितना भ्रष्टाचार होता है इसका पता तो आइपीएल घोटाले में ही केन्द्र सरकार को लग गया था। राष्ट्रमडल खेल तो आइपीएल से कई गुना ज्यादा बड़ा है। जाहिर है इसमें भ्रष्टाचार की गंुजायश आइपील की अपेक्षा कई गुणा ज्यादा थी, फिर भी सरकार ने इसकी उपेक्षा कर दी। पैसे तो केन्द्र सरकार के खजाने से निकले, लेकिन खर्च का दारोमदार शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी पर डाल दिया गया। अब भ्रष्टाचार के आरोपो के दायरे में यही दोनों कांग्रेसी आ रहे हैं।

राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के नाम पर दिल्ली का कायाकल्प किया जाना था, लेकिन समय पर कुछ हुआ नहीं। अब खेल शुरू होने के मात्र 45 दिन ही बचे हैं और दिल्ली की हालत देखकर आज किसी को भी रोना आ सकता है। कनाट प्लेस तो आज भुतहा स्थान दिखाई पड़ रहा है। अच्छे अच्छे निर्माण तोड़ डाले गए हैं और उनकी जगह आनन फानन में ऐसे कमजोर निर्माण हो रहे हैं, जो बरसात के एक झोंके में ही टूटते नजर आ रहे हैं। राष्ट्रमंडल खेल दिल्ली के लिए दुःस्वप्न साबित हो रहा है। (संवाद)