दिल्ली के व्यापारी सलक चंद जैन ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्तर भारतीयों पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के कार्यकर्ताओं के हमले जारी रहने से यह साबित होता है कि राज्य सरकार लोगों की सुरक्षा करने में विफल हुई है।

सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन ने याचिका को स्वीकार कर लिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश भी दे दिया।

याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि उसने उत्तर भारतीयों पर हो हमलों और उनके प्रति हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये।

याचिका में अपील की गयी है कि सर्वोच्च न्यायालय केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 का उपयोग करने का निर्देश दे।

उल्लेखनीय है कि इस अनुच्छेद के तहत केंद्र सरकार किसी भी राज्य सरकार को दिशा निर्देश दे सकती है। इतना ही नहीं, यदि राज्य में कानून और व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाये तो केन्द्र सरकार राज्य सरकार को भंग भी कर सकती है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या केन्द्र सरकार वैसा कर पायेगी? इसका जवाब न में है। इसके पीछे मूल कारण तो राजनीतिक है। महाराष्ट्र में भी उन्हीं राजनीतिक खेमे का शासन चल रहा है जिनका शासन केन्द्र में है।

चाहे जो हो, याचिकादाता ने तो अनुरोध कर ही दिया है।

याचिकादाता ने तो यहां तक कहा है कि एमएनएस की गतिविधियों से देश की एकता और अखंडता को ख़तरा पैदा हो सकता है।

उधर महाराष्ट्र में राज ठाकरे की अगुआई वाली एमएनएस महाराष्ट्र में सभी प्रकार की नौकरियों में मराठियों को प्राथमिकता देने की माँग कर रहा है। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का आरोप है कि उत्तर भारतीय मराठी संस्कृति का सम्मान नहीं कर रहे हैं।

बाहर से महाराष्ट्र में जाकर बसे लोगों के खिलाफ एक लंबे समय से स्थानीय लोगों में आक्रोश का माहौल था। कुछ समस्याएं स्वाभाविक थीं क्योंकि बाहर से लोगों के वहां जाकर नौकरी और काम करने से वहां को लोगों के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं। लेकिन बड़ी समस्या राजनीतिक है और एम एन एस उसका राजनीतिक लाभ उठाने में लगा है। पिछले महीने मामले ने तब तूल पकड़ लिया था जब रेलवे की परीक्षा देने गये उत्तर भारतीय छात्रों पर मुंबई और आस-पास के इलाकों में हमले किये गये और उनके प्रवेश पत्र फाड़ दिए गये।

उसके बाद पटना के छात्र राहुल राज की कथित पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत ने राजनीतिक सरगर्मी तेज़ कर दी। आरोप यह लगाया जा रहा है कि उस छात्र को जब गिरफ्तार करना संभव था तो उसे मार डालना पुलिसकर्मियों के पूर्वाग्रह को ही दर्शाता है।

बिहार के मुख्यमंत्री समेत राज्य के लगभग सभी राजनीति पार्टियों ने आरोप लगाया कि राहुल की मौत पुलिस की एकतरफा कार्रवाई में हुई और पुलिस चाहती तो उसे ज़िंदा पकड़ सकती थी।

इस मुद्दे पर बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (यू) के सांसदों ने संसद से इस्तीफ़ा भी दे दिया है और केन्द्र सरकार की राजनीतिक घेराबंदी शुरु कर दी है। विशेष समस्या राष्ट्रीय जनता दल नेता लालू प्रसाद यादव की है क्योंकि वह केन्द्र की सरकार में भागीदार हैं और संप्रग के घटक दलों की ही वहां सरकार चल रही है।#